सृष्टि के कण कण में बस शिव ही शिव हैं
श्रावण भगवान शिव की आराधना का मास है। संस्कृत में ‘शि’ का अर्थ है कल्याणकारी और ‘व’ का अर्थ है दाता। यानि शिव शब्द से आशय है - कल्याण को देने वाला। शिव पुराण में शिव को अजन्मा माना जाता है, मतलब जिसका जन्म नहीं हुआ। जो हमेशा से थे और रहेंगे। जिनकी ना कोई शुरूआत है और ना ही अन्त। लेकिन विष्णु पुराण के अनुसार शिव की उत्पत्ति भगवान विष्णु के माथे के तेज़ से हुई है। और तेज़ से उत्पन्न होने के कारण ही भगवान शिव हमेशा योग मुद्रा में रहते हैं। हिन्दू महीनों के नाम नक्षत्रों पर हैं। और श्रावण नक्षत्र का स्वा मी चन्द्रमा है जो भगवान भोलेनाथ के मस्तक पर विराजमान है। इस समय सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश करते समय बारिश होती है और हलाहलधारी भगवान शिव को ठण्डक मिलती है इसलिए श्रावण मास उनका प्रिय महीना है और सोमवार प्रिय वार। शीश पर सोम यानि चंद्रमा को धारण करने की वजह से ही सोमवार को उनकी पूजा का खास महत्व है। यह भी माना जाता है कि चंद्रमा की पूजा करने से वो खुद भगवान शिव तक पहुंचती है। त्रिदेवों में शिव जी का रूप सबसे अलग और अनूठा है। वो सृष्टि के संहारक भी है और सृष्टि के जीवो और...