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विश्व की सबसे प्रिमिटिव जीवित सभ्यता को अकेला छोड़ दीजिए, क्योंकि यही यह चाहते हैं..

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अंडमान निकोबार के इर्द गिर्द बिखरे छोटे-बड़े लगभग 500 द्वीप समूहों में एक है नॉर्थ सेंटीनल आईलैंड। बंगाल की खाड़ी में बसा एक छोटा सा द्वीप जो क्षेत्रफल में मैनहैटेन के लगभग बराबर है। घने दुर्गम जंगलों से भरे और रेतीले तट से घिरे इस नितान्त निर्जन नज़र आने वाले द्वीप के मूल निवासी है सेंटीनल आदिवासी, जो करीब 65,000 सालों से यहां रह रहे हैं। 65,000 सालों का मतलब समझते हैं आप- यानि पृथ्वी पर आए अंतिम हिम युग से भी 35,000 साल पहले से, उत्तरी अमेरिका से मैमथ के गायब होने से 55,000  साल पूर्व और प्राचीन मिस्र के लोगों द्वारा गीज़ा में बनाए गए पिरामिडों से 62,000 साल पहले से सेंटीनल्स, इस द्वीप के निवासी हैं। इन्हें अफ्रीका के प्रथम मनुष्यों का प्रत्यक्ष वंशज माना जाता है। कुछ एन्थ्रोपॉलोजिस्ट इन्हें पाषाण युग का सदस्य मानते हैं। विश्व की सबसे प्रिमिटिव जीवित इन्सानी सभ्यता ने, विकसित समाज द्वारा इनसे सम्पर्क किए जाने की हर कोशिश को नकारा है। सेंटीनल्स इन कोशिशों का स्वागत तीर और भालों की बौछारों से करते हैं। यह आदिवासी आग तक जलाना नहीं जानते। यह समुद्री मछलियों, जीवों और जंगली फलो

कश्मीरी पन्डितों पर हुए हर अन्याय का दस्तावेज है 'रिफ्यूजी कैम्प'

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उनको देखकर मैं भी चुप था, मेरा नम्बर अब आया। मुझको देखकर आप भी चुप हैं, अगला नम्बर आपका है। रिफ्यूजी कैम्प को पढ़ने के बाद एक यहीं ख़याल है जो बार-बार आता है, कि काश उस समय, उसी वक्त सबने साथ मिलकर चन्द आतंकियों के खिलाफ एकजुटता दिखा दी होती तो कश्मीर सही मायनों में सब्ज शादाब होता। ना कश्मीरी पन्डित विस्थापित होते और ना ही वहां के मुसलमान आतंक के ज़हर से भरी फिज़ा में सांस लेने को मजबूर होते। लेखक आशीष कौल, जो कि खुद 1989 में कश्मीर के विस्थापित रहे हैं और जिन्होंने हर मंज़र को अपनी आंखों से देखा है, हर दर्द को महसूस किया है, ने उस समय के हालातों को बेहद सजीवता से  किताब के पन्नों में उतारा है। यह कहानी से ज़्यादा लेखक की भावनाओं का लेखन है।  रिफ्यूजी कैम्प की कहानी 1984 के कश्मीर से शुरू होती है जब घाटी में अमन का दौर था। कश्मीरी पन्डितों और मुसलमानों के बीच दोस्तियां भी थी औेर मोहब्बत भी। यह वो समय था जब कश्मीरी पन्डित रसूख के साथ वादी में रहते थे। फ़िर सरकार बदली और वक्त भी धीरे-धीरे बदलने लगा। वादी में आतन्कियों की बसावट होने लगी। हालात बदलने लगे। रिश्तों की गर्मी, सर्द