मछली जल की रानी है, आलू-कचालू बेटा कहां गए थे....दादी नानी के ज़माने की यह कविताएं कहीं खो ना जाएं..
- मछली जल की रानी है, जीवन उसका पानी है, हाथ लगाओगे डर जाएगी, बाहर निकालोगे मर जाएगी....,
- चंदा मामा दूर के पूए पकाए भूर के, आप खाए थाली में, मुन्ने को दें प्याली में...
- आलू -कचालू बेटा कहां गए थे, बंदर की टोकरी में सो रहे थे, बंदर ने लात मारी रो रहे थे, मम्मी ने प्यार किया हंस रहे थे...,
- आज सोमवार है चूहे को बुखार है, चूहा गया डॉक्टर के, डॉक्टर ने लगाई सुई, चूहा बोला उई उई उई...
- मम्मी की रोटी गोल-गोल, पापा का पैसा गोल-गोल, दादा का चश्मा गोल-गोल...
- उठो लाल अब आंखे खोलो, पानी लाई हूं मुंह धोलो...
- वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो, सामने पहाड़ हो, सिंह की दहाड़ हो...
- बुन्देले हरबोलो के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मरदानी वो तो झांसी वाली रानी थी...
- फूलो से तुम हंसना सीखो और भौंरो से गाना, पेड़ो से तुम सीखो बच्चो फल आते ही झुक जाना...
लेकिन अब शायद हमारे बच्चों के साथ ऐसा ना हो क्योंकि हमारे बच्चों की किताबों से यह कविताएं या तो बिल्कुल ही गायब हो चुकी हैं या कहीं कहीं इक्का दुक्का दिखती हैं। आज स्कूलों और किताबों का स्वरूप तो बदला ही है, कोर्स का स्वरूप भी बदल गया है और बदल गई है ज़माने से चली आ रही हिन्दी की कहानियां और कविताएं भी जिन्हें हम भारतीय लोग अपने बचपन में पढ़ते और सीखते थे। लेकिन अब चूंकि हर पब्लिक स्कूल अपने स्तर के हिसाब से अलग अलग किताबें लेकर आता है तो उनमें कविताएं भी बिल्कुल अलग होती हैं।
खासतौर पर अगर आप अपने ही बच्चों की हिंदी की किताबें देखेंगे तो उनमें आपके ज़माने की कविताएं सिरे से गायब मिलेंगी।आज इन कविताओं की अलग से सीडी निकलती है या फिर इन्हें नेट पर पढ़ा जा रहा है या यह कविताएं बच्चों को उनके मां-बाप या बाबा-दादी सिखा रहे हैं। लेकिन जिस तेज़ी से घर छोटे हो रहे हैं, संयुक्त परिवारो की प्रथा खत्म हो रही है और मांएं भी बाहर जाकर काम कर रहीं हैं, वो समय दूर नहीं जब मां बाप भी बच्चों को यह कविताएं सिखा नहीं पाएंगे और यह कविताएं लुप्त हो जाएंगी।
हैरानी की बात यह है कि इंग्लिश की नर्सरी राइम्स और प्रसिद्ध कविताओं जैसे जैक एंड जिल.., जॉनी जॉनी यस पापा..., हम्पटी डम्पटी, चब्बी चीक्स.., ट्विकंल ट्विंकल लिटिल स्टार... आदि के साथ ऐसा नहीं हुआ हैं यह कल भी बच्चों की अंग्रेज़ी किताबों का हिस्सा थी, आज भी हैं और शायद हमेशा रहेंगी। ढूंढे से भी नहीं मिलेंगी तो बस हिन्दी की वो कविताएं जिन्हें हम बचपन से गुनगुनाते आएं हैं।
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