शैतानी गुणों वाली सब्ज़ियां माने जाते हैं प्याज और लहसुन...

  • बहुत से लोग क्यों नहीं खाते प्याज और लहसुन
  • क्या हैं इसके पीछे की धार्मिक और पौराणिक मान्यताएं
  • क्या यह शैतानी गुणों को बढ़ावा देने वाली सब्ज़ियां हैं?
बहुत से धर्मों को मानने वाले लोग प्याज और लहसुन खाना पसंद नहीं करते। आपके घरों या जान-पहचान वालो में भी ऐसे लोग होंगे जो प्याज-लहसुन नहीं खाते होंगे। लेकिन क्या आपने कभी यह जानने की कोशिश की कि ऐसा क्यों हैं। अगर आप अपने घर में दादी, नानी या किसी अन्य बुज़ुर्ग से, जो इन्हें ना खाते हों, इस बारे में पूछेंगे तो अधिकतर लोगों का यहीं जवाब होगा कि- अब हमसे यह मत पूछो कि क्यों नहीं खाते, बस जैसा हमारे बड़ो ने बता दिया वो हम कर रहे हैं। वो लहसुन प्याज नहीं खाते थे, हम भी नहीं खाते। लेकिन लहसुन और प्याज नहीं खाने के पीछे असल वजह क्या है यह आपको शायद कम ही लोग बता पाएंगे। हमने भी जब इस सवाल का जवाब खोजा तो रोचक जवाब मिले। प्याज व लहसुन जैसी वो सब्ज़िया जिनमें इतने रोग प्रतिरोधक गुण होते हैं, को लोगो द्वारा खाए योग्य नहीं माने जाने के पीछे जो कारण निकल कर आए वो धार्मिक भी हैं, पौराणिक भी और वैज्ञानिक भी।
पहले तो आपको यह बता दें कि सिर्फ वैष्णव धर्म में ही नहीं बल्कि और भी कई धर्मों में प्याज और लहसुन को शैतानी गुणों वाली, शैतानी दुर्गंध वाली, गंदी और प्रदूषित सब्ज़िया माना जाता है। प्राचीन मिस्त्र के पुरोहित प्याज और लहसुन  को नहीं खाते थे। चीन में रहने वाले बौद्ध धर्म के अनुयायी भी इन सब्ज़ियों को खाना पसंद नहीं करते। हमारे वेदों में बताया गया है कि प्याज और लहसुन जैसी सब्ज़ियां प्रकृति प्रदत्त भावनाओं में सबसे निचले दर्जे की भावनाओं जैसे जुनून, उत्तजेना और अज्ञानता को बढ़ावा देकर किसी व्यक्ति द्वारा भगवद् या लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग में बाधा उत्पन्न करती हैं, व्यक्ति की चेतना को प्रभावित करती हैं इसलिए इन्हें नहीं खाना चाहिेए।
भगवान कृष्ण के उपासक भी प्याज और लहसुन नहीं खाते क्योंकि यह लोग वहीं सब्ज़िया खाते हैं जो कृष्ण को अर्पित की जा सकती हैं, और चूंकि प्याज और लहसुन कभी भी कृष्ण को अर्पण नहीं किए जाते इसलिए कृष्ण भक्त इन्हें नहीं खाते।

 प्याज और लहसुन की उत्पत्ति से जुड़ी पौराणिक और दंतकथाए-

प्याज और लहसुन ना खाए जाने के पीछे सबसे प्रसिद्ध पौराणिक कथा यह है कि समुद्रमंथन से निकले अमृत को, मोहिनी रूप धरे विष्णु भगवान जब देवताओं में बांट रहे थे तभी दो राक्षस राहू और केतू भी वहीं आकर बैठ गए। भगवान ने उन्हें भी देवता समझकर अमृत की बूंदे दे दीं। लेकिन तभी उन्हें सूर्य व चंद्रमा ने बताया कि यह दोनों राक्षस हैं। भगवान विष्णु ने तुरंत उन दोनों के सिर धड़ से अलग कर दिए। इस समय तक अमृत उनके गले से नीचे नहीं उतर पाया था और चूंकि उनके शरीरों में अमृत नहीं पहुंचा था, वो उसी समय ज़मीन पर गिरकर नष्ट हो गए। लेकिन राहू और केतु के मुख में अमृत पहुंच चुका था इसलिए दोनों राक्षसो के मुख अमर हो गए (यहीं कारण है कि आज भी राहू और केतू के सिर्फ सिरों को ज़िन्दा माना जाता है)। पर भगवान विष्णु द्वारा राहू और केतू के सिर काटे जाने पर उनके कटे सिरों से अमृत की कुछ बूंदे ज़मीन पर गिर गईं जिनसे प्याज और लहसुन उपजे। चूंकि यह दोनों सब्ज़िया अमृत की बूंदों से उपजी हैं इसलिए यह रोगों और रोगाणुओं को नष्ट करने में अमृत समान होती हैं पर क्योंकि यह राक्षसों के मुख से होकर गिरी हैं इसलिए इनमें तेज़ गंध है और ये अपवित्र हैं जिन्हें कभी भी भगवान के भोग में इस्तमाल नहीं किया जाता। कहा जाता है कि जो भी प्याज और लहसुन खाता है उनका शरीर राक्षसों के शरीर की भांति मज़बूत हो जाता है लेकिन साथ ही उनकी बुद्धि और सोच-विचार राक्षसों की तरह दूषित भी हो जाते हैं।

 इन दोनों सब्जि़यों को मांस के समान माना जाता है इसके पीछे भी एक कथा है। प्राचीन समय में ऋषि मुनि पूरे ब्रह्मांड के हित के लिए अश्वमेध और गोमेध यज्ञ करते थे जिनमें घोड़े अथवा गायों को टुकड़ों में काट कर यज्ञ में उनकी आहूति दी जाती थी। यज्ञ पूर्ण होने के बाद यह पशु हष्ट पुष्ट शरीर के साथ फिर से जीवित हो जाते थे। एक बार जब ऐसे ही यज्ञ की तैयारी हो रही थी तो एक ऋषिपत्नी जो की गर्भवती थी, को मांस खाने की तीव्र इच्छा हुई। कुछ और उपलब्ध ना होने की स्थिति में ऋषिपत्नी ने यज्ञाहूति के लिए रखे गए गाय के टुकड़ो में से एक टुकड़ा बाद में खाने के लिए छिपा लिया। जब ऋषि ने गाय के टुकड़ो की आहूति देकर यज्ञ पूर्ण कर लिया तो अग्नि में से पुनः गाय प्रकट हो गई। पर ऋषि ने देखा की गाय के शरीर के बाएं भाग से एक छोटा सा हिस्सा गायब था। ऋषि ने तुरंत अपनी शक्ति से जान लिया कि उनकी पत्नी ने वह हिस्सा लिया है। अब तक उनकी पत्नी भी सब जान चुकी थी। ऋषि के क्रोध से बचने के लिए उनकी पत्नी ने वह मांस का हिस्सा उठा कर फेंक दिया। लेकिन यज्ञ और मंत्रो के प्रभाव के कारण टुकड़े में जान आ चुकी थी। इसी मांस के टुकड़े की हड्डियों से लहसुन उपजा और मांस से प्याज। इसलिए वैष्णव अनुयायी प्याज और लहसुन को सामिष भोजन मानते हैं और ग्रहण नहीं करते।
तुर्की में भी इन सब्जियों को प्रयोग ना करने के पीछे एक दंतकथा प्रचलित है। कहा जाता है कि जब भगवान ने शैतान को स्वर्ग से बाहर फेंका तो जहां उसका बांया पैर पड़ा वहां से लहसुन और जहां दायां पैर पड़ा वहां से प्याज उगी।
जैन धर्म को मानने वाले लोग भी प्याज और लहसुन नहीं खाते लेकिन इसके पीछे वजह यह है कि यह दोनों जड़ें हैं और जैन धर्म में माना जाता है कि अगर आप किसी पौधे के फल, फूल, पत्ती या अन्य भाग को खाओ तो उससे पौधा मरता नहीं है लेकिन चूंकि प्याज और लहसुन जड़े हैं इसलिए इन्हें खाने से पौधे की मृत्यू हो जाती है।
इसके उत्तेजना और जुनून बढ़ाने वाले गुणों के कारण चीन और जापान में रहने वाले बौद्ध धर्म के लोगों ने कभी इसे अपने धार्मिक रिवाज़ो का हिस्सा नहीं बनाया। जापान के प्राचीन खाने में कभी भी लहसुन का प्रयोग नहीं किया जाता था।

 आयुर्वेद में प्याज-लहसुन

भारत के प्राचीन औषधि विज्ञान आर्युवेद में भोज्य पदार्थो को तीन श्रेणियों में बांटा जाता है- सात्विक, राजसिक और तामसिक। अच्छाई और सादगी को बढ़ावा देने वाले भोज्य पदार्थ, जुनून और उत्तेजना बढ़ाने वाले भोज्य पदार्थ और तामसिक यानि अज्ञानता या दुर्गुण बढ़ाने वाले भोज्य पदार्थ।प्याज और लहसुन राजसिक भोजन के भाग हैं जो लक्ष्य सिद्धि, साधना और भगवद् भक्ति में बाधा डालते हैं इसलिए लोग इन्हें खाना पसंद नहीं करते।
हांलाकि यह भी सच है कि वनस्पति विज्ञान के अनुसार एलियम कुल की ये सब्ज़ियां रोग प्रतिरोधक क्षमता भी देती हैं। प्याज जहां गर्मी के लिए अच्छा होता है वहीं लहसुन में अत्यधिक एंटीबायोटिक गुण होते हैं।


........................................................................................................














Comments

  1. We are urgently in need of KlDNEY donors for the sum of $500,000.00 USD,(3 CRORE INDIA RUPEES) All donors are to reply via Email for more details: Email: healthc976@gmail.com

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

सृष्टि से पहले सत् नहीं था, असत् भी नहीं, छिपा था क्या, कहां किसने ढका था....: ऋगवेद के सूक्तों का हिन्दी अनुवाद है यह अमर गीत

क्या आपने बन्ना-बन्नी, लांगुरिया और खेल के गीतों का मज़ा लिया है. लेडीज़ संगीत का मतलब केवल डीजे पर डांस करना नहीं है..

भुवाल रियासत के सन्यासी राजा की कहानी, जो मौत के 12 साल बाद फिर लौट आयाः भारत के इतिहास में जड़ा अद्भुत, अनोखा और रहस्यमयी सच