शरीर की दुर्गति, धार्मिक विश्वास और अंगो के दुरुपयोग का डर रोकता है अंगदान करने से


आजकल अंग दान को लेकर काफी प्रचार किया जा रहा है। लोगों को अंगदान के प्रति जागरूक किया जा रहा है कि मरने के बाद भी आपका शरीर औरो के काम आ सकता है, आप मर कर भी अमर हो सकते हैं.. वगैरह, वगैरह... लेकिन सच्चाई यही है कि अंग दान को लेकर अभी बहुत से डर और भ्रांतिया लोगों के दिमाग में है। नेत्रदान के लिए तो लोग फिर भी तैयार हो जाते हैं, लेकिन अंग दान को लेकर अभी भी लोगों में झिझक है, और यह झिझक सिर्फ पुरानी विचारधारा के लोगों में ही नहीं, बल्कि युवा पीढ़ी में भी है। जहां पुरानी पीढ़ी के लोग इस बात में विश्वास करते हैं कि मरने के बाद पूरे शरीर का दाह संस्कार नहीं किए जाने पर आत्मा मुक्त नहीं होती, वहीं नई पीढ़ी के लोगों को यह डर सताता है कि उन्होंने अगर अपने अंग दान कर भी दिए तो कहीं ऐसा ना हो कि उनकी बिक्री की जाए। ऐसे बहुत से डर हैं जो लोगो को अंगदान करने से रोकते हैं।


मुक्ति ना मिलने का डर
बहुत से बुज़ुर्ग लोगों का कहना है कि अंगदान करना ग़लत है। हमारे धर्म में ऐसा नहीं होता। मरने के बाद अगर पूरे शरीर का दाह संस्कार ना हो तो, मनुष्य की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती। मुक्ति के लिए ज़रूरी है कि पूरे शरीर को अग्नि के हवाले किया जाए ना कि उसमें से अंग निकाल लेने के बाद खोखले शरीर को। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि अगर हम अंगदान के बाद बिना किसी अंग के जलाए जाएंगे तो अगले जनम में हमें वो अंग नहीं मिलेगा। आगरा की एक गृहणी साठ वर्षीया कान्ता गुप्ता साफ कहती हैं, कि भैया हमारे धर्म में यह सब नहीं चलता। हमारे यहां पूरा शरीर अग्नि को समर्पित किया जाता। हम तो अपना अंगदान नहीं करेंगे। अगर और लोगों के अंग खराब हैं, या काम नहीं करते तो यह भगवान की मर्ज़ी है लेकिन मैं अपने धर्म के विरुद्ध जाकर मरने के बाद अपने शरीर के अंगो को दान नहीं करूंगी, मुझे मुक्ति नहीं मिलेगी।

शरीर की दुर्गति का डर
लोगों के मन में शरीर की दुर्गति का भी डर है। लोगों का मानना है कि एक बार मरने के बाद यदि शरीर तुरंत अंगदान के लिए चला गया तो उसके बाद पट्टियों से बंधा और खोखला शरीर वापस आता है। शरीर की यह दुर्गति मरने वाला भले ही ना देख पाएं लेकिन उसके रिश्तेदारों के लिए अपने मृत संबंधी को ऐसी हालत में देखना आसान नहीं होता। फिर जो मर चुका है वो शरीर पूज्यनीय हो जाता है जिसके सभी रिश्तेदार दर्शन करने आते हैं। अब अगर शरीर चीड़ फाड़ के बाद वापस आएगा तो लोग मृत शरीर का दर्शन करने में भी हिचकेंगे। आई टी कंपनी में इंजीनियर सौरभ सबरवाल कहते हैं कि मैं तो इस ख़याल से ही बुरा महसूस करता हूं कि मेरे किसी मृत रिश्तेदार के शरीर की ऐसी हालत हो कि उसके शरीर को काटा जाए और वो पूरा सफेद पट्टियों में बंधा हुआ घर आए, फिर मैं अपने शरीर की ऐसी हालत के बारे में तो सोच भी नहीं सकता।

अंगो के दुरुपयोग का डर
युवा पीढ़ी के वो लोग, जो अंगदान द्वारा बहुत से ज़रूरतमंद लोगों को ज़िंदगी दिए जाने और खुद के अमर हो जाने की भावना का सम्मान करते हैं, इस डर से अंगदान करने से हिचकते हैं कि कहीं उनके अंगों को निकालने
के बाद उनका दुरुपयोग ना किया जाए। जेएनयू में एमए की छात्रा सोनाक्षी गोयल का कहना है कि अगर हम अंगदान कर भी दें, तो इसकी क्या गारंटी है कि हमारे अंग ज़रूरतमंद लोगों को ही लगाए जाएंगे। यह तो सभी जानते हैं कि आजकल हर चीज़ का धंधा होता है चाहे वो दान किया गया खून हो, आंखे हो या फिर शरीर के अन्य अंग। हम तो अपने अंग दान कर दें और वो ज़रूरतमंद या किसी गरीब व्यक्ति को ना मिलें बल्कि डॉक्टर उन्हें बेचकर अपनी जेब गर्म करे तो हमारे अंगदान का क्या फायदा। इस तरह तो हम उसकी दुकान चलाने में मदद करेंगे ना कि किसी की जान बचाएंगे।

 

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