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Showing posts from March, 2017

जनता को कमअक्ल समझने वाले ध्यान दें...

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चुनावों के नतीजे आ चुके हैं। शायद अब विपक्षी नेताओं और खासकर खुद को तुर्रम खां समझने वाले पत्रकारों को समझ आए कि आज की जनता निर्णय लेना जानती है, बेआवाज़ लाठी से जवाब देना जानती है। मुझे उम्मीद है कि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में भाजपा की ज़बरदस्त जीत और पंजाब में अकाली दल और भाजपा गठबंधन की करारी हार के बाद पत्रकार और नेता यह कहना छोड़ देंगे कि ऐसा पोलेराइजेशन के कारण हुआ या गधे के बयानों के कारण हुआ या मार्केटिंग के कारण हुुआ, या भाजपा की बेहतर रणनीति के कारण हुआ या फिर क ार्यकर्ताओं की मेहनत के कारण हुआ... या फिर इसलिए हुआ क्योंकि भाजपा ने सवर्णों के साथ दलितों औऱ जाटवों का भी दिल जीता, मायावती के लोगों को तोड़ लिया..... यह कारण और इस तरह के बहाने ज़िम्मेदार पत्रकारों और नेताओं के लिए वो 'सिल्क रूट' बन चुके हैं जिन पर चलकर उन्हें लगता है कि वो हर हाल में नतीज़ों तक पहुंच ही जाएंगे। आंखे खोलिए महोदय और कम से कम अब तो जनता की समीक्षात्मक प्रवृत्ति और निर्णय क्षमता पर विश्वास करना सीखिए। जनता ना तो गूंगी है, ना बहरी है और बेवकूफ तो बिल्कुल नहीं.... जो आपकी स्पूनफीड

मीडिया की एजेंडा सेटिंग थ्योरी का शिकार बन रहे हैं हम... और हमें मालूम तक नहीं

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हांलाकि देश में इस समय इतने ज़्यादा ज़रूरी मुद्दे हैं कि ग़ैरज़रूरी मुद्दों पर बहस की गुंजाइश नहीं होती लेकिन क्या किया जाए यह मीडिया का दौर है जहां उसी बात की बात होती है जिसे मीडिया हवा देता है, उन महत्वपूर्ण मुद्दों की नहीं जिन्हें मीडिया दबा देता है। मास कम्यूनिकेशन की पढ़ाई कर चुके साथियों को इसकी जानकारी होगी। साल 1972 में मैक्सवेल मैककॉम्ब्स और डोनाल्ड शॉ  ने एक थ्योरी दी थी - एजेंडा सेटिंग थ्योरी। जिसके अनुसार मीडिया केवल खबरें ही नहीं दिखाता बल्कि चुनिंदा खबरों के ज़रिए यह एजेंडा भी सेट करता है कि जनता किस चीज़ को महत्वपूर्ण मानकर उसके बारे में ज्यादा से ज्यादा सोचे और बात करें। और ऐसा किया जाता है उस चुनिंदा खबर को सबसे ज्यादा समय और कवरेज देकर। एजेंडा सेटिंग थ्योरी के द्वारा मीडिया और न्यूज़रूम स्टाफ ना केवल यह तय करते हैं कि कौन सी खबर को महत्व मिलना चाहिए बल्कि जनता के बीच और मुद्दों को गौण भी बना देते हैं। यह भी तय कर देते हैं कि जनता को क्या सोचना चाहिए। तो हुज़ूर आंखे खोलिए। आज की तारीख में इस एजेंडा सेटिंग थ्योरी का जमकर इस्तमाल हो रहा है। किसानों की आत्मह