जनता को कमअक्ल समझने वाले ध्यान दें...



चुनावों के नतीजे आ चुके हैं। शायद अब विपक्षी नेताओं और खासकर खुद को तुर्रम खां समझने वाले पत्रकारों को समझ आए कि आज की जनता निर्णय लेना जानती है, बेआवाज़ लाठी से जवाब देना जानती है।
मुझे उम्मीद है कि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में भाजपा की ज़बरदस्त जीत और पंजाब में अकाली दल और भाजपा गठबंधन की करारी हार के बाद पत्रकार और नेता यह कहना छोड़ देंगे कि ऐसा पोलेराइजेशन के कारण हुआ या गधे के बयानों के कारण हुआ या मार्केटिंग के कारण हुुआ, या भाजपा की बेहतर रणनीति के कारण हुआ या फिर कार्यकर्ताओं की मेहनत के कारण हुआ... या फिर इसलिए हुआ क्योंकि भाजपा ने सवर्णों के साथ दलितों औऱ जाटवों का भी दिल जीता, मायावती के लोगों को तोड़ लिया..... यह कारण और इस तरह के बहाने ज़िम्मेदार पत्रकारों और नेताओं के लिए वो 'सिल्क रूट' बन चुके हैं जिन पर चलकर उन्हें लगता है कि वो हर हाल में नतीज़ों तक पहुंच ही जाएंगे।
आंखे खोलिए महोदय और कम से कम अब तो जनता की समीक्षात्मक प्रवृत्ति और निर्णय क्षमता पर विश्वास करना सीखिए। जनता ना तो गूंगी है, ना बहरी है और बेवकूफ तो बिल्कुल नहीं.... जो आपकी स्पूनफीडिंग को बड़े आराम से निगल लेगी। यह सोशल मीडिया का दौर है। कोगनीटिव डिसोनेन्स थ्योरी के लागू हो चुके होने का दौर है।
अभी भी अगर आप यह कहेंगे कि जनता जातिवाद के नाम पर वोट देती है, खुद को लुभाने के लिए की जा रही लोकलुभावन योजनाओं पर वोट देती हैं या लहर पर वोट देती है तो एक बार फिर इन चुनावों के नतीजों को देख लीजिए। अगर ऐसा होता तो केवल यूपी और उत्तराखंड में ही नहीं पंजाब में भी बीजेपी-अकाली दल को जीत मिलती। गोवा और मणिपुर में भी क्लीन स्वीप होता। लेकिन ऐसा नहीं है।
आप लोग कुछ भी कह लें, लेकिन सारे लोग जान चुके हैं कि एक के बाद नेताओं ने हमेशा जात-पात के नाम पर उन्हें उल्लू ही बनाया है। कभी दलितों, कभी जाटवों तो कभी हिन्दु-मुसलमानों के नाम पर हमेशा उन्हें बांटते ही आए हैं...।आज की तारीख में जनता काम को वोट देती है, विकास को वोट देती है, ईमानदारी, साफ छवि और काम करने की क्षमता और इच्छा रखने वालों को वोट देती है। लीडर का निर्णय टफ भी हो तो उनके हित के लिए होना चाहिए,यह जनता जान गई है। सबके विकास के साथ ही उनका विकास संभव है यह जनता समझ चुकी है।
अब समझने की बारी उन लोगों की है जो अपनी दिमागी थ्योरियों को जनता का मिजाज समझने की भूल करते हैं और अपने पक्षपाती निर्णयों को जनता का निर्णय मानने की गलती..।

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