कहां गया ऊंच-नीच का पापड़ा, इक्कड़ दुक्कड़ की गोटी और पिट्ठू तोड़ने वाली गेंद... "एक शब्दकृति बचपन के खेलों के नाम"

कम्प्यूटर गेम्स और वीडियो गेम्स के इस ज़माने में हमारे बच्चों को शायद वो खेल कभी खेलने को ना मिलेंजिन्हें कभी हम सभी बचपन में खेला करते थे और जो धीरे-धीरे गायब होने लगे हैं। तब हमारे पास आज के बच्चों जैसी टीवी और कम्प्यूटर की सुविधा नहीं थी और ना ही रिमोट वाले अनगिनत खेल। सो जब चाहा, अपने दोस्तों के साथ इकट्ठा हुए और किसी के भी घर के सामने, पेड़ की छांव तले, आंगन में, पार्क में या बगीचों में यह खेल खेल लिए।

यह मज़ेदार इनडोर और आउटडोर खेल बहुत रचनात्मक होते थे और इनको खेलने के लिए चाहिए होते थे चार-पांच दोस्त या सहेलियां, खुला मैदान या घर की छत और सामान के रूप में पत्थर की गिट्टियां, गेंदे, डंडे, कंचे, कागज़- पैंसिल या खड़िया जैसी साधारण सी चीज़े। आज ऐसे ही कुछ खेलों को याद करते हैं जिनके साथ हमारे बचपन की प्यारी यादें जुड़ी है और जिन्हें खेलने का सौभाग्य शायद हम अपने बच्चों को ना दे पाएं...

ऊंच-नीच का पापड़ा




यह खेल ऐसी जगह खेला जाता था जहां सीढ़ियां या पत्थर या कोई भी ज़मीन से थोड़ी ऊंची जगह मौजूद हो। नीची जगह को 'नीच' और ऊंची जगह को 'ऊंच' कहते थे। पुकाई में हारा बच्चा डैन होता था। सब उससे पूछते थे ऊंच मांगी या नीच। डैन 'ऊंच' या 'नीच' में से एक जगह मांग लेता था। यदि डैन ने 'नीच' मांगी तो वो जगह उसकी हो जाती थी और बाकी लोग 'ऊंच' पर खड़े हो जाते थे और बार-बार डैन की 'नीच' पर खड़े होकर उसे चिढ़ाते थे.... "हम तुम्हारी नीच पर रोटिया पकाएंगे".... डैन उन्हें पकड़ने के लिए भागता था। अगर कोई "नीच" पर है और डैन ने उसे छू दिया तो अगला डैन वो बनता था।


गुट्टे

मुझे विश्वास है हर महिला ने अपने बचपन में यह मज़ेदार खेल ज़रूर खेला होगा। रंग-बिरंगे पांच लकड़ी के गुट्टों या पत्थर के चौरस टुकड़ो से खेला जाने वाला यह खेल इतना रोचक होता है कि पहले घंटो-घंटो लड़कियां और यहां तक कि उनकी मम्मियां और चाची, ताईयां भी चबूतरे या छत के किसी कोने में बैठकर गुट्टे खेला करती थीं। कई बार तो लड़कियों को यह कहकर डांटा जाता था "गुट्टे खेलने की उमर हैं यह तेरी..., पूरे दिन गुट्टे खेलती रहती है... "। इस खेल में हाथों में गुट्टे उछाल-उछाल कर पकड़ने होते थे और जितनी देर में गुट्टा उछल रहा है उतनी देर में ही अन्य गुट्टों को कोटरी, डिब्बी या पुल के नीचे से निकाला जाता था। अब तो खैर यह गुट्टे मिलने बंद हो गए हैं पर पहले हाट या बाज़ारों में रंग बिरंगे लकड़ी या लाख के गुट्टे खूब मिला करते थे और लड़कियां अपनी सहेलियों के साथ उन्हें खेलने के लिए बड़ा सहेज कर रखती थी। यू ट्यूब पर यह वीडियो मिला है इसे देखिए और गुट्टों का आनंद लीजिए।

पोशम पा


यह मज़ेदार खेल कुछ बच्चे आज भी खेलते हैं। इसमें दो लीडर होते हैं जो जाकर अपने-अपने सीक्रेट नाम रखते हैं और फिर आकर हाथों का ट्राइंगेल बनाकर गाते हैं.. " पोशम पा भई पोशम पा, डाकियों ने क्या किया, सौ रुपए की घड़ी चुराई। अब तो जेल में जाना पड़ेगा। जेल की रोटी खानी पड़ेगी, जेल का पानी पीना पड़ेगा..." बाकी सब लोग ट्रांइगेल के नीचे से निकलते हैं। अंत में जो बच्चा बच जाता है, उसे लीडर पकड़कर एक तरफ ले जाकर अपना सीक्रेट नाम बताकर पूछते थे कि तुम क्या मांगते हो और वो बच्चा जिस भी लीडर का सीक्रेट नाम लेता है, उसकी टीम में आ जाता है। इसी तरह एक एक करके दोनों टीमें बन जाती है और अंत में टग ऑफ वॉर की तरह दोनों टीमें एक दूसरे को खींचती थी। जिस टीम ने दूसरी टीम के सारे लोगों को अपनी तरफ खींच लिया वो जीत गई।


एक सहेली

यह मुख्य तौर पर लड़कियों का खेल है। इसमें एक लड़की डैन बनती थी और दोनों हाथों से आंखे बन्द करके बीच में बैठ जाती थी। बाकी लड़कियां उसके चारों तरफ गोला बनाकर घूमते हुए गाती थीं..- "एक सहेली रो रही थी, धूप में बैठी रो रही थी। उसका साथी कोई नहीं, चलो सहेली उठकर आओ, अपना साथी ढूंढ लो।" इसके बाद गोले में से एक लड़की आकर डैन को चपत मारकर भाग जाती थी और डैन को सभी लड़कियों में से उसे पहचानना होता था। अगर डैन ने सही पहचान लिया तो अगला डैन पहचानी गई लड़की बनती थी वरना वापस डैन को ही गोले के बीच में बैठना पड़ता था।


गोला चमार खाई, पीछे देखो मार खाई


यह खेल आप सभी ने ज़रूर खेला होगा, जिसमें सभी लोग एक गोले में बैठते हैं और डैन हाथ में रुमाल लेकर सबके पीछे गोल-गोल दौड़ता है। दौड़ते हुए वो एक बच्चे के पीछे रूमाल डाल देता है। अगर बच्चे को पता चल गया तो वो रूमाल उठाकर डैन को मारता है और अगर डैन के दोबारा घूम कर आने तक उस बच्चे को पता नहीं चला तो डैन उस रुमाल को उठाकर उस बच्चे को मारता है। इस खेल में चीटिंग भी खूब होती है, जब सामने बैठे बच्चे आखों के इशारे से अपने दोस्तों को बता देते हैं कि रूमाल तेरे पीछे फेंका गया है।

इक्कड़-दुक्कड़/ लंगड़ी टांग


यह एक और प्रसिद्ध खेल जिसके लिए सड़क चलते-चलते भी गिट्टियों पर नज़र रहती थी। और जहां कोई अच्छा, चिकना और समतल पत्थर मिला उसे हम इक्कड़-दुक्कड़ की गोटी बनाने के लिए संभाल कर रख लिया करते थे। घर के आंगन, बरामदे, चबूतरे या छत पर खेला जाता था लंगड़ी टांग का यह खेल।
 इस खेल में खड़िया या चॉक से एक से लेकर आठ तक खाने बनाए जाते थे। दो टीमें बटती थीं। और हर टीम के एक खिलाड़ी को एक गोटी एक खाने में फेंककर बाकी खानों पर लंगड़ी टांग से चलकर आना होता था और वापस आकर उसी खाने से गोटी उठानी होती थी। अगर बीच में खिलाड़ी गिर गया या गोटी नहीं उठा पाया, या फिर गोटी सही खाने पर नहीं गई तो वो आउट हो जाता था और दूसरी टीम को मौका मिलता था। इस तरह एक-एक करके सारे खानों में गोटिया डालनी और उठानी होती थी।
जिस खिलाड़ी या टीम ने सारे खाने पार कर लिए उसे किसी एक खाने पर गोटी फेंककर उस खाने पर अपना घर बसाने का मौका मिलता था। एक बार घर बस गया तो विरोधी टीम उस घर पर गोटी नहीं फेंक सकती और ना ही उस पर पैर रख सकती है। बल्कि विरोधी टीम को उसे लंगड़ी टांग से ही लांघ कर पार करना होता है। प्रत्येक घर बसने के बाद गेम फिर से एक नंबर से शुरू होता है। अंत में जिस खिलाड़ी या टीम के ज्यादा घर होते हैं वो जीत जाता है। इस खेल में बहुत घर मैंने भी बनाए हैं :-)


चक चक चलनी, पल्ले घर मंगनी/ कॉर्नर-कॉर्नर

यह खेल एक कमरे, आंगन या बरामदे में खेला जाता था। इसमें पांच लोग खेलते थे। पांचों बीच कमरे या आंगन के बीचों-बीच जमा होकर एक-दो-तीन कहकर भागते थे। और जल्दी से जल्दी आंगन के चारों कोनों में खड़े हो जाते थे। जो किसी कोने में खड़ा होने से रह गया वो डैन। डैन हर कोने में जाता है और बाकी साथी उसको बोलते हैं "चक चक चलनी, पल्ले घर मंगनी"। बीच-बीच में कोने में खड़े साथी भाग-भाग कर कोने आपस में बदलते हैं, इस दौरान अगर डैन ने कोई कोना ले लिया तो जिसका कोना गया वो डैन बन जाता है।

गिट्टीफोड़ या पिट्ठू


यह बेहद मज़ेदार खेल हैं जो दो टीमें खेलती हैं। पत्थर के ऊपर पत्थर रखकर पिट्ठू बनाया जाता है और पहली टीम का एक खिलाड़ी गेंद मारकर वो पिट्ठू तोड़ता है। अब दूसरी टीम को यह पिट्ठू वापस जमाना होता है। इस बीच पहली टीम के खिलाड़ी दूसरी टीम के खिलाड़ियों को गेंद से मारने की और पिट्ठू दोबारा तोड़ने की कोशिश करते रहते हैं। अगर बॉल की मार से बचकर दूसरी टीम ने पिट्ठू वापस जमा लिया तो वो जीत जाती है। इस खेल को खेलने के लिए भी बड़ी ज़ोर -शोर से पिट्ठू की पत्थर तलाशे जाते थे। और एक बार खेल लिए जाने के बाद वो पत्थर फेंके नहीं जाते थे बल्कि उन्हें संभाल कर रखा जाता था ताकि अगली बार पिट्ठू बनाया जा सके।

हम आते हैं, हम जाते हैं ठंडे मौसम में 

फिल्म तवायफ में इस खेल पर एक गाना फिल्माया गया है। दो टीमें इसे खेलती हैं। और दोनों एक के बाद एक गाते हैं "हम दूर देश से आए हैं, हम ठंडी सड़क से आए हैं, तुम किसको लेने आए हों, हम इसको लेने आए हैं.." दूसरी टीम एक खिलाड़ी का नाम लेती है, और उसे अपनी तरफ खींचने की कोशिश करती है। टग ऑफ वॉर की तरह खेल चलता है। और अंत में जिस तरफ ज्यादा खिलाड़ी होते है, उसकी टीम विजयी होती है।  

विश-अमृत

इसमें खेल में एक डैन होता है जो बाकी लोगों को छूने की कोशिश करता है। वो जिसे छू कर 'विष' बोलता है, उसे वहीं बैठ जाना पड़ता है। फिर वो खिलाड़ी तब तक नहीं भाग सकता जब तक कि कोई दूसरा खिलाड़ी आकर, बैठे हुए खिलाड़ी के सिर पर हाथ रखकर "अमृत" ना बोल दे। अमृत बोलने के बाद वो खिलाड़ी जि़ंदा हो जाता है और फिर से भागने लगता है। अगर डैन ने सारे खिलाड़ियों को "विश" कर दिया तो जो सबसे पहले विष हुआ था वो डैन बनता है। आजकल इस खेल का एक नया वर्जन निकला है "बर्फ-पानी"। डैन ने जिसे छू लिया वो बर्फ और दूसरे खिलाड़ी ने छूआ तो पानी।

रुमाल छू

यह खेल बिल्कुल फिल्म हम आपके हैं कौन में सलमान और माधुरी के बीच जूते उठाने के लिए हुइ लड़ाई की तरह खेला जाता है। दो टीमें बनती हैं। आमने सामने टीमें खड़ी होती हैं और बीच में एक गोला खींचकर उसके अन्दर रुमाल रखा जाता है। दोनों टीमें अपने पास से एक एक खिलाड़ी भेजती हैं जिन्हें वो रुमाल उठा कर लाना होता है। अगर रुमाल उठा कर भागते समय दूसरे खिलाड़ी ने उसे छू लिया तो वो आउट। जिस टीम ने ज्यादा बार रुमाल उठाया वो जीत गई।

शेकमताड़ी

यह बड़ा खतरनाक खेल है जिसमें बड़ी गेंदे पड़ती हैं। लड़कों का पसंदीदा खेल। इस खेल में डैन पर खिलाड़ी ताब़ड़तोड़ गेंदे मारते हैं और डैन को बचना होता है। अगर किसी खिलाड़ी की गेंद डैन को ना लगकर किसी और को लग गई तो अगली बार वो डैन बनता है।

राजा-वज़ीर-चोर सिपाही



यह चार लोगों के बीच खेला जाने वाला एक रोचक इनडोर गेम है। आप सबने यह मजेदार गेम ज़रूर खेला होगा। चार पर्चियां बना कर उन पर राजा, वजीर, चोर, सिपाही लिखते हैं। चारों खिलाड़ी एक-एक पर्ची उठाते हैं और फिर जो राजा बनता है वो पूछता है "मेरा वज़ीर कौन"। जिसके पास वज़ीर की पर्ची आती है वो कहता है "राजा का वज़ीर मैं"... और फिर राजा आदेश देता है "चोर सिपाही का पता लगाओ"।  अगर वज़ीर ने सही पता लगा लिया तो उसको अंक मिलते हैं और गलत पता लगाया तो उसके अंक चोर को मिल जाते हैं। गर्मी की दोपहरों में, घरों में बैठकर इस खेल को खेलने का मज़ा ही अलग है।

लड़का-लड़की-शहर- सिनेमा



यह एक और मज़ेदार इनडोर गेम है जिसे दो या दो से ज्यादा लोग खेलते हैं। सभी लोग एक खाली पेज लेकर उस पर लड़का, लड़की, शहर और सिनेमा नाम से चार खानें खींच लेते हैं। अब एक खिलाड़ी कोई भी एक अक्षर या एल्फाबेट बोलता है और बाकी खिलाड़ियों को जल्दी-जल्दी उसी अक्षर से शुरू होने वाले एक लड़के का नाम, एक लड़की का नाम, एक शहर का नाम और एक फिल्म का नाम लिखना होता है। जिसने सबसे पहले लिख लिया वो स्टॉप बोलकर खेल खत्म कर देता है। इसी तरह एक-एक करके सबको अक्षर बोलने होते हैं। अंत में वो जीतता है जिसने सबसे ज्यादा नाम लिखे होते हैं। इस खेल को अंग्रेजी में " नेम-प्लेस-एनिमल-थिंग" के नाम से भी खेला जाता है।

इनके अलावा भी  डंडे से गिल्ली उड़ाने वाला खेल "गिल्ली डंडा", कंचे से कंचे पर निशाने लगाने वाला "कंचे का खेल", रंगो की चीज़े छूकर आने के लिए खेला जाने वाला "टिप्पी टिप्पी टॉप", लंगड़ी टांग से खेले जाने वाले  "नारियल, स्टापू", और छिपने और पीठ पर हाथ मार कर थप्पा बोलकर खिलाड़ियों को ढूंढे जाने वाले "आई स्पाई" और कान में शब्द बोलने वाले "कानफूसी" जैसे बहुत सारे खेल हैं, जिन्हें हम बचपन में खेला करते थे। बहुत सारे खेल नए नामों से आज के बच्चे खेल रहे हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी है जो सिर्फ हमारी यादों में जिन्दा हैं।



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