करोड़ो खर्च होने के बावजूद रोजी-रोटी के लिए भटक रहे हैं कोसी बाढ़ पीड़ित लाखों बेघर
कभी कहीं पढ़ा था कि जब कोई आपदा आती है तो वह पुरानी जड़ों को उखाड़कर नए निर्माण के रास्ते साथ लेकर आती है। प्राकृतिक आपदा, युद्ध या किसी त्रासदी में लाखो लोग जान से हाथ धोते है, घर उजड़ते हैं तो यह भी सच है कि इसमें बहुत से लोगों के महल भी खड़े हो जाते हैं। आप सोच रहे होंगे मैं यह क्यों कह रही हूं... दरअसल आज मैं ऐसी ही एक आपदा और उससे हुई तबाही और निर्माण की कहानी आपको सुनाने जा रही हूं।
कोसी नदी का नाम सुना है। उत्तर भारत में रहने वाले लोग शायद इस नदी से अनजान हों लेकिन पूर्वी भारत के बाशिंदे, खासकर बिहार के लोग इससे अच्छी तरह परिचित होंगे। और आपको अगर याद हो तो आज से ठीक पांच साल पहले, आज ही के दिन (18 अगस्त 2008 को) कोसी नदी पर बना बांध टूट गया था जिससे बिहार के पांच जिलों सुपौल, मधेपुरा, सहरसा, अररिया और पूर्णिया के साढ़े नौ सौ से अधिक गांव पूरी तरह से पानी में डूब गए थे। लाखों लोग बेघर हो गए थे। सैकड़ो लोगों ने अपनी जान गंवाई थी और कई हज़ारों की संख्या में मवेशी बह गए या मर गए थे। इतनी भयंकर तबाही हुई थी कि यहां के लोग आज भी वह दिन याद करके सिहर उठते हैं।
लेकिन हमारा उद्देश्य उस तबाही के मंजर को याद करना नहीं है। बल्कि उस तबाही के बाद की तबाही की कहानी आप तक पहुंचाना है।
कोसी नदी के बांध के टूटने के बाद बिहार के इन जिलों में जो नुकसान हुआ था उसकी अनुमानित कीमत 14,800 करोड़ रुपए आंकी गई थी। इसके अतिरिक्त जो किसान और खेत पूरी तरह बर्बाद हो गए उनका कोई निश्चित लेखा जोखा नहीं है सिर्फ अनुमान है और यह सरकारी अनुमान कैसे होते हैं यह चूंकि हम सभी जानते हैं इसलिए उस अनुमान को यहां देकर हम बाढ़ की भेंट चढ़े बिहारवासियों का अपमान नहीं करना चाहते।
सरकार ने क्या किया-
कोसी नदी द्वारा मचाई गई इस तबाही के बाद हमारी सरकार चुप नहीं बैठी। तुरंत बिहार के बाढ़ प्रभावित जिलों के लिए राहत पैकेज की घोषणा की गई। विश्व बैंक से भी मदद ली गई और सेना के साथ साथ बहुत सी समाज सेवी संस्थाए भी बाढ़ के कारण विस्थापित हुए किसानों और ग्रामवासियों के पुनर्वास और राहत के लिए आगे आईं। सरकार ने 2900 करोड़ की राशि दी और विश्व बैंक से मिली हुई राशि लगभग 6,100 करोड़ रुपए की थी जिसका उपयोग बाढ़ से प्रभावित हुए सवा तैंतीस लाख (33.29 लाख) लोगों की ज़िंदगी वापस पटरी पर लाने के लिए किया जाना था।
हो गया लेकिन हज़ारो समाज सेवी संस्थाओ, बालू उठाने और घर बनाने वाले ठेकेदारों, सरकारी बाबूओं, अभियंताओ, लोक निर्माण विभाग के कर्मचारियों, मंत्रियों, जमाखोरों और भ्रष्टाचारियों के जीवन का निर्माण हुआ है। जो राहत राशि किसानों के लिए थी उससे इन लोगों ने जमकर राहत उठाई है और कईयो ने तो अपने लिए महल तक खड़े कर लिए हैं।
इन आपदा पीड़ितो के लिए पैसों की कमी नहीं है लेकिन ईमानदारी से उन पैसों को सही जगह और ज़रूरतमंदों के लिए इस्तमाल करने के प्रयास की ज़रूर कमी है। और यहीं वजह है कि विस्थापितों की मदद के लिए आए पैसे ठेकेदारों और भ्रष्टाचारियों का बैंक बैलेंस तो मज़बूत कर गए जबकि कोसी आज भी वहीं है और उससे प्रभावित लोग रोज़ी रोटी और ठिकाने की तलाश में अपना घर छोड़कर जाने को मजबूर हैं।
(यह रिपोर्ट मूलतः प्रभात खबर, रांची के संवाददाता पुष्य मित्र जी की है जिसे मैंने सिर्फ अपने शब्दों में लिखा है)
2008 में बिहार की कोसी नदी का तटबंध टूटने से आई बाढ़ की तस्वीर |
कोसी नदी का नाम सुना है। उत्तर भारत में रहने वाले लोग शायद इस नदी से अनजान हों लेकिन पूर्वी भारत के बाशिंदे, खासकर बिहार के लोग इससे अच्छी तरह परिचित होंगे। और आपको अगर याद हो तो आज से ठीक पांच साल पहले, आज ही के दिन (18 अगस्त 2008 को) कोसी नदी पर बना बांध टूट गया था जिससे बिहार के पांच जिलों सुपौल, मधेपुरा, सहरसा, अररिया और पूर्णिया के साढ़े नौ सौ से अधिक गांव पूरी तरह से पानी में डूब गए थे। लाखों लोग बेघर हो गए थे। सैकड़ो लोगों ने अपनी जान गंवाई थी और कई हज़ारों की संख्या में मवेशी बह गए या मर गए थे। इतनी भयंकर तबाही हुई थी कि यहां के लोग आज भी वह दिन याद करके सिहर उठते हैं।
लेकिन हमारा उद्देश्य उस तबाही के मंजर को याद करना नहीं है। बल्कि उस तबाही के बाद की तबाही की कहानी आप तक पहुंचाना है।
कोसी नदी के बांध के टूटने के बाद बिहार के इन जिलों में जो नुकसान हुआ था उसकी अनुमानित कीमत 14,800 करोड़ रुपए आंकी गई थी। इसके अतिरिक्त जो किसान और खेत पूरी तरह बर्बाद हो गए उनका कोई निश्चित लेखा जोखा नहीं है सिर्फ अनुमान है और यह सरकारी अनुमान कैसे होते हैं यह चूंकि हम सभी जानते हैं इसलिए उस अनुमान को यहां देकर हम बाढ़ की भेंट चढ़े बिहारवासियों का अपमान नहीं करना चाहते।
सरकार ने क्या किया-
कोसी नदी द्वारा मचाई गई इस तबाही के बाद हमारी सरकार चुप नहीं बैठी। तुरंत बिहार के बाढ़ प्रभावित जिलों के लिए राहत पैकेज की घोषणा की गई। विश्व बैंक से भी मदद ली गई और सेना के साथ साथ बहुत सी समाज सेवी संस्थाए भी बाढ़ के कारण विस्थापित हुए किसानों और ग्रामवासियों के पुनर्वास और राहत के लिए आगे आईं। सरकार ने 2900 करोड़ की राशि दी और विश्व बैंक से मिली हुई राशि लगभग 6,100 करोड़ रुपए की थी जिसका उपयोग बाढ़ से प्रभावित हुए सवा तैंतीस लाख (33.29 लाख) लोगों की ज़िंदगी वापस पटरी पर लाने के लिए किया जाना था।
हुआ क्या
369 राहत शिविर लगाए गए, कई सौ करोड़ की राशि दी गई और हज़ारो टन गेंहूं भूखे और बेघर लोगों की क्षुधा शान्ति के लिए दिया गया। इतने इंतज़ाम के बाद आज पांच साल बाद कोसी नदी की बाढ़ से प्रभावित हुए सभी नहीं तो कम से कम आधे से ज्यादा लोगों का तो जीवन सुधर ही जाना चाहिए था। ज़िंदगी वापस पटरी पर लौट आनी चाहिए थी। लेकिन हुआ बिल्कुल उलट...- -आज तक बाढ़ के दौरान क्षतिग्रस्त हुए या पूरी तरह से टूट चुके 2,36,632 लाख घरों में से सिर्फ 12,000 घरों का ही पुनःनिर्माण हो सका है।
- -लगभग पांच लाख हेक्टेयर कृषि भूमि में कोसी नदी द्वारा बाढ़ के समय लाया गय़ा रेता भरा पड़ा है जिसे अभी तक साफ नहीं किय़ा गया और किसान खेती नहीं कर पा रहे हैं।
- -जो सड़के बाढ़ से टूटी थी वो अभी तक नहीं बनाई गईं हैं।
- -प्रभावित इलाकों में सरकार की किसी भी योजना को पूरी तरह लागू नहीं किये जाने के कारण खेतिहर मजदूर और किसान अपना घर और गांव छोड़ कर दूसरे राज्यों में जाने को मजबूर हैं। रोज़ाना बिहार के सहरसा जिले से निकलने वाली जनसेवा एक्सप्रेस इन्हीं बाढ़ प्रभावित इलाकों के लोगों से भरी हुई होती है जो रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों में जाकर दिहाड़ी मजदूर बन रहे हैं।
- - बहुत से गांवों में सिर्फ बुज़ुर्ग दंपत्ति ही रह गए हैं क्योंकि उनके बेटे-बहू, हर तरफ से निराश होकर दूसरे क्षेत्रों या राज्यों में रोज़ी-रोटी कमाने की फिराक में निकल गए हैं।
- -और सबसे महत्वपूर्ण बात 2008 में कोसी के तटबंध टूटने के कारणों को जानने के लिए जो कमेटी बनाई गई थी उसकी रिपोर्ट आज तक नहीं आई है।
किनका हुआ निर्माण-
कोसी नदी जो बाढ़ लेकर आई थी उससे बिहार के 6 जिलों के लाखो ग्रामवासियों का जीवन भले ही नष्टहो गया लेकिन हज़ारो समाज सेवी संस्थाओ, बालू उठाने और घर बनाने वाले ठेकेदारों, सरकारी बाबूओं, अभियंताओ, लोक निर्माण विभाग के कर्मचारियों, मंत्रियों, जमाखोरों और भ्रष्टाचारियों के जीवन का निर्माण हुआ है। जो राहत राशि किसानों के लिए थी उससे इन लोगों ने जमकर राहत उठाई है और कईयो ने तो अपने लिए महल तक खड़े कर लिए हैं।
इन आपदा पीड़ितो के लिए पैसों की कमी नहीं है लेकिन ईमानदारी से उन पैसों को सही जगह और ज़रूरतमंदों के लिए इस्तमाल करने के प्रयास की ज़रूर कमी है। और यहीं वजह है कि विस्थापितों की मदद के लिए आए पैसे ठेकेदारों और भ्रष्टाचारियों का बैंक बैलेंस तो मज़बूत कर गए जबकि कोसी आज भी वहीं है और उससे प्रभावित लोग रोज़ी रोटी और ठिकाने की तलाश में अपना घर छोड़कर जाने को मजबूर हैं।
आंकड़ों में कोसी की तबाही और पुर्नवास
- 18 अगस्त 2008- कोसी का तटबंध टूटने से बिहार के 6 जिलों में बाढ़
- 530 लोग और 19,323 मवेशी मरे (सरकारी आंकड़ा)
- 33.29 लाख लोग और 9,97,344 मवेशी बाढ़ से प्रभावित हुए
- कुल नुकसान- 14,800 करोड़
- केंद्र सरकार से मिली सहायता- 2900 करोड़
- विश्व बैंक से मिला कुल राहत फंड- 6,100 करोड़
- अभी तक बने घर- सिर्फ 12,000
- 14,129.70 एकड़ ज़मीन पर अभी भी बालू जमा है
- गांवों में लगभग 66 फीसदी आबादी बुज़ुर्ग दंपत्तियों की। युवा ग्राम वासी पत्नी-बच्चों के साथ काम की तलाश में अन्य राज्यों में निकल गए हैं
- 2008 में कोसी के तटबंध टूटने के कारणों को जानने के लिए गठित कमेटी की रिपोर्ट अब तक नहीं आई
- मिली राशि का कोई अता-पता नहीं
(यह रिपोर्ट मूलतः प्रभात खबर, रांची के संवाददाता पुष्य मित्र जी की है जिसे मैंने सिर्फ अपने शब्दों में लिखा है)
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