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बधाई....???????????

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परम्पराएं धर्म की बैकबोन होती हैं। ये वो नियम-कायदे हैं, जिनके कारण वो धर्म, बाकियों से अलग बनता है। और जिन नियमों से किसी को नुकसान नहीं पहुंचता और जो उस धर्म को मानने वालेआराम से मान रहे हैं, उन पर आघात करने का मतलब उस धर्म को आघात पहुंचाना है। उस वकील नौशाद अहमद खान को बधाई, जिन्होंने लॉर्ड अयप्पा को मानने वाली उन महिलाओं की बेचैनी समझी जो सबरीमाला के दर्शन करना चाहती थीं और जिनकी अगुआई में वकीलों ने पीआईएल फाइल की। हालांकि उनमें एक भी लॉर्ड अयप्पा का भक्त नहीं था या थी। उस महिला एक्टिविस्ट रेहाना को भी  बधाई , जिसने डिवोटी ना होने के बावजूद सबरीमाला मन्दिर तक पहुंचने के लिए 'हिंसक' भक्तों की भीड़ से लड़ाई की। उन सभी फेमिनिस्टों को भी  बधाई , जो शायद कभी भी सबरीमला नहीं जाएंगी लेकिन जिन्होंने अपनी सोशल मीडिया दीवारों के ज़रिए यह जताया कि लॉर्ड अयप्पा के मन्दिर में जाने की अनुमति मिलना, महिला और पुरुषों के बीच इक्वेलिटी लाने के लिए अत्यधिक ज़रूरी है। बधाई  के पात्र वो दो महिलाएं भी हैं, जो अयप्पा डिवोटी तो नहीं हैं लेकिन जिन्होंने महिलाओं के हक की लड़ाई लड़ी और रात