वो मास्टर स्प्रेयर बनना चाहता है ताकि एक दिन में पांच घरों में पेस्टिसाइड्स का छिड़काव कर सकें और उसकी तन्ख्वाह साढ़े पांच हज़ार से आठ हज़ार रुपए हो जाए... 'एक पेस्ट कंट्रोलर की कहानी'
कुछ ऐसे लोग होते हैं जिन्हें हम शायद लोगों में गिनते ही नहीं। वो भीड़ का हिस्सा भी नहीं होते, बल्कि शायद उनका किनारा होते हैं... भीड़ में सबसे पीछे खड़े लोग जिन्हें भीड़ में भी जगह नहीं मिलती... यह कहानी भी ऐसे ही इंसान प्रदीप की है.. जिनकी इस दुनिया में उपस्थिति को हमने कभी शायद एक सोच भी नहीं बख्शी होगी... 19 साल का प्रदीप, लक्ष्मी नगर दिल्ली की एक पेस्ट कंट्रोल कंपनी में काम करता है- और एक महीने में लगभग 78 घरों में ज़हरीले पेस्टिसाइड्स, इन्सेक्टिसाइड्स और अन्य दवाईयों का छिड़काव करता है, यानि रोज़ लगभग 2 से ज्यादा घरों में। 'पेस्टिसाइड स्प्रेयर' बनना प्रदीप का सपना कभी भी नहीं था। वो तो मधुूबनी, बिहार के अपने गांव से दिल्ली इसलिए आया था कि कहीं चपरासी या कोई और छोटी मोटी नौकरी करके अपनी गुजर कर सके और अपने मां-बाप के पास पैसा भेज सके। 17 साल का प्रदीप यहां अपने एक दूर के रिश्तेदार के भरोसे चला आया था जो कहीं चपरासी की ही नौकरी करता था। प्रदीप जब यहां आकर अपने उस रिश्तेदार से मिला तो हकीकत पता लगी। पता चला कि वो तो दरअसल पेस्ट कंट्रोल कंपनी में काम करता है और घरवा...