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Showing posts from January, 2016

जानलेवा पढ़ाई

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लगातार बढ़ रहे हैं छात्र-छात्राओं द्वारा आत्महत्या करने के मामले मां-बाप की अपेक्षाओं के चलते गहरे मानसिक दवाब में जी रहे हैं किशोर 2014 में 2403 छात्र-छात्राओं ने फेल होने के डर से मौत को गले लगाया गाज़ियाबाद के मशहूर कॉलेज से बीटेक कर रही रितुपर्णा की दिनचर्या देखें- सुबह 8 बजे वो सोकर उठती है और 9 बजे तक तैयार होकर, नाश्ता वगैरह करके कॉलेज चली जाती है। लौटते हुए लगभग साढ़े चार-पांच बज जाते हैं। आने के तुरंत बाद रितु खाना खाकर सो जाती है और इसके बाद रात को नौ बजे उठकर सुबह चार बजे तक ‘ शांति में ’ पढ़ाई करती है। सुबह चार बजे सोने के बाद वो सीधे आठ बजे स्कूल जाने के समय पर उठती है। इम्तहान के दिनों में यह रुटीन बदल जाता है, कॉलेज से 12-1 बजे तक आ जाने के बाद रितु 5 बजे तक दिन में भी पढ़ाई करती है।  यहीं नहीं छुट्टी के दिन रितुपर्णा स्पेशल क्लासिस के लिए अपने सर के पास भी जाती है। जब हमने उससे पूछा कि इतनी ज्यादा पढ़ाई करने की क्या आवश्यकता है जबकि यह कोई आईआईटी या मेडिकल की तैयारी नहीं है, तो उसका कहना था कि कॉलेज की पढ़ाई और कोर्स बहुत ज्यादा है। ...

वो इस्लाम और मुसलमानों के लिए कुछ भी नहीं लिख सकते, क्योंकि लेखकों को भी अपनी जान की परवाह है ..एक लेखक का साक्षात्कार

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सुनने में अजीब लग सकता है, लेकिन यहीं सच है। अभी हाल ही में मशहूर निर्माता-निर्देशक करन जौहर ने बयान दिया है कि देश में फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन एक मज़ाक बन कर रह गया है। हम उनकी बात से इत्तिफाक तो नहीं रखते लेकिन यह ज़रूर मानते हैं कि कुछ मामलों में फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन बिल्कुल भी लागू नहीं होता। जी हीं डंडे की मार और जान जाने के डर से कुछ क्षेत्रों में सारी 'फ्रीडम ऑफ स्पीच' की हवा निकल जाती है। और यह निषेध क्षेत्र है 'इस्लाम'। यह हम नहीं कह रहे, यह कहना है एक लेखक का। मशहूर लेखक अजय कंसल जो धर्म की  उत्पत्ति  के ऊपर लिखी गई अपनी किताब "द इवॉल्यूशन ऑफ गॉड (The Evolution Of Gods- The scientific Origin of Divinity and Religion)" को लेकर चर्चा में हैं, और जिनकी किताब अमेज़न ई-बुक की बेस्टसेलर्स में से एक बनी हुई है, और जिसका हिन्दी अनुवाद "मनुष्य ने देवताओं को बनाया" विवादों और विरोध के चलते बाज़ार से वापस लिया जा चुका है..,  भी यह मानते हैं कि लेखकों के लिए इस्लाम के खिलाफ लिखना आसान नहीं हैं, क्योंकि लेखकों को भी अपनी जान प्यारी है।  क्या कहती ...