विशुद्ध ऊर्जा का रूप हैं विचार... और सोच पर टिकी हैं खुशियां....?

क्या हम खुद अपने भाग्य के निर्धारक हैं? क्या खुश रहना या दुखी रहना पूरी तरह से हमारे हाथ में है? क्या परिस्थितियों का इसमें कोई हाथ नहीं? क्या हम चाहे तो सिर्फ अच्छी सोच रखकर विपरीत परिस्थितियों को अपनी ओर कर सकते हैं और खुश रह सकते हैं.....?
कुछ समय पहले जब मैं काफी तनाव से गुज़र रही थी, मेरी एक दोस्त ने मुझे एक प्रसिद्ध किताब के बारे में बताया.."सीक्रेट्स"... और उसे पढ़ने के लिए कहा। किताब तो खैर मैं नहीं पढ़ पाई लेकिन उस किताब के बारे में काफी कुछ पढ़ा और जो वो किताब कहती है काफी हद तो वो मेरे समझ में आ गया। जब मैंने उसके बारे में सोचा तो मुझे काफी बाते सही लगी। मैंने जाना कि दरअसल हम ही अपनी खुशी और दुख के ज़िम्मेदार हैं। और जो हम इस दुनिया को देते हैं हमें वहीं वापस मिलता है.....। इन निष्कर्षों से पहले मैं यह बताना चाहती हूं कि उस किताब के ज़रिए क्या बातें मैंने जानी और समझी...

1. हमारी सोच दरअसल विशुद्ध ऊर्जा होती है। जो कुछ भी हम सोचते हैं वो मन के द्वारा निस्तारित ऊर्जा का रुप होता है जो हमारे द्वारा इस यूनिवर्स में पहुंचती है। अगर हम कुछ अच्छा सोचते हैं तो पॉजिटिव एनर्जी यानि धनात्मक ऊर्जा का प्रवाह करते हैं और अगर कुछ बुरा सोचते हैं नैगेटिव एनर्जी यानि ऋणात्मक ऊर्जा इस यूनिवर्स को देते हैं।

2. न्यूटन के क्रिया प्रतिक्रिया नियम के अनुसार हम जो भी देते है हमें उतने ही बल से वहीं चीज़ वापस मिलती है। मतलब अगर हमने नेगेटिव एनर्जी इस यूनिवर्स को दी तो यूनिवर्स उतने ही फोर्स से उतनी ही नेगेटिव एनर्जी हमें वापस करता है और अगर हम पॉजिटिव ऊर्जा इस यूनिवर्स को दें तो बदले में हमें भी पॉजिटिव ऊर्जा ही मिलती है।

3. जिसे हम भगवान कहते हैं वो दरअसल यह ब्रह्मांड है जो हर पल हमारे हमारे शरीर के और हमारी सोच के साथ सामंजस्य में रहता है, या यूं कहें कि कम्यूनिकेट करता रहता है...ऊर्जा का आदान प्रदान और प्रवाह एक तरफ से दूसरी तरफ लगातार चलता रहता है और इस तरह हम लगातार ब्रह्मांड से जुड़े रहते हैं।

4. हमारी सोच चूंकि ऊर्जा का रूप है इसलिए वो ऊर्जा को आकर्षित करती है। अगर हम यह सोचकर दुखी होंगे कि हमारा जीवन परेशानियों से भरा है, या हमारे पास सीमित साधन हैं तो यूनिवर्स में ऐसी ही एनर्जी जाएगी और वो हमें नेगेटिवली ही रिस्पॉन्ड करेगा और दरअसल हमें परेशानियां ही देगा। लेकिन इसके विपरीत अगर हम यह सोचना शूरू कर दें कि हम तो सर्वसम्पन्न हैं और हमारे जीवन में खुशियां हैं तो हमारी सोच के रूप में पॉजिटिव एनर्जी इस यूनिवर्स में जाएगी और बदले में हमें खुशियां ही मिलेंगी।

5. अगर हम चाहें तो सिर्फ पैसे के बारे में सोचकर और विश्वास रखकर कि हम सम्पन्न हैं, सम्पन्न बन सकते हैं। जिस तरह समान चीज़े समान चीज़ों को आकर्षित करती हैं, उसी तरह खुशी और सम्पन्नता की सोच खुशियों  और धन को, जबकि दुख और गरीबी की सोच दुखों और विपन्नता को आकर्षित करती है।

6.भाग्य, दुर्भाग्य और कुछ नहीं हमारी सोच और इस सोच के रूप में जैसी ऊर्जा हम ब्रह्मांड को दे रहे हैं, उसी का खेल है। कितनी ही बार ऐसा होता है कि हम अच्छा सोचते हैं और हमारे साथ दरअसल अच्छा हो जाता है और कितनी ही बार सबकुछ अच्छा होते जाने पर भी एक विपरीत बात दिमाग में आ जाने पर हमारे साथ गलत हो जाता है।

7. यह समस्त ब्रह्मांड और इसमें व्याप्त हर एक चीज़ ऊर्जा का बहुत बड़ा भंडार है और इससे ही हमें ऊर्जा मिलती है। बात सिर्फ इतनी सी है कि हम अपनी सोच के रूप में कौन सी ऊर्जा की कामना इस ब्रह्मांड से कर रहे हैं। धन, गरीबी, भाग्य, दुर्भाग्य, बीमारियां... यह सबकुछ और कुछ नहीं, हमारी अपनी सोच का आविर्भाव या प्रत्यक्षीकरण अथवा अंग्रेजी में कहें तो मैनिफेस्टेशन है। जो हमने मांगा वो हमें मिल गया.....।

इच्छाशक्ति या डिटरमिनेशन इसे ही कहते हैं। जिस समय हमारे मन में किसी चीज़ को पाने की प्रबल इच्छा होती है तो हम बार बार उसी के बारे में सोचकर यह ऊर्जा ब्रह्मांड को भेजते हैं और ब्रह्मांड उस चीज़ को हमसे मिलाने की कोशिश में लग जाता है...। और अगर थोड़ा गूढ़ होकर सोचे तो बात सारी विश्वास पर आकर टिकती है। विश्वास है तो सबकुछ है और विश्वास नहीं तो कुछ भी नहीं।

आपको शायद घुमाने वाली बातें लगें, लेकिन यह वो महत्वपूर्ण बातें हैं जिनका जीवन में महत्व तब पता चलता है जबकि आप उन पर अमल करना शुरू कर देते हैं। पहले तो मुझे इन बातों पर यकीन नहीं हुआ लेकिन जब मैंने इनपर अमल करके पॉजिटिव सोच रखनी शुरू की तो यकीन मानिए मेरे साथ दरअसल अच्छा होना शुरू हो गया।

हममें से कोई भी विश्वास के साथ नहीं कह सकता कि यह बातें सच हैं और इनका कोई असर किसी पर होता है लेकिन यह भी सच है कि पॉजिटिव सोच रखने के बहुत फायदे हैं। यह शायद हर इंसान ने महसूस किया होगा कि हर चीज़ चाहे वो अच्छी हो या बुरी, सभी के दो पहलू होते हैं। और अगर हम ध्यान से और बिना बायस हुए देखें तो इन दोनों पहलूओं को देख सकते हैं। यहां बात सिर्फ बुरे पहलू को नज़रअंदाज़ करके अच्छे पहलू पर ध्यान देने की है। और यह कोई मुश्किल काम नहीं। जो हो चुका है उसे तो हम नहीं बदल सकते लेकिन जो हुआ है उसके धनात्मक पहलू पर अपनी सोच रूपी ऊर्जा को केन्द्रित करने से अगर कुछ अच्छा हो जाए तो कोशिश करने में क्या हर्ज है...




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