और महाराजा रीसाइकिल सिंह की आंखे खुल गईं...
यूं तो डस्टबिनाबाद और रीसाइक्लाबाद दोनों ही राज्य पास पास थे। एक
दूसरे के पड़ौसी। लेकिन रीसाइक्लाबाद राज्य के महाराजा रीसाइकिल सिंह को डस्टबिनाबाद
राज्य और वहां के नागरिक- जो डस्टबिन कहलाते थे, बिल्कुल नहीं भाते थे।
रीसाइक्लाबाद के लोग हमेशा ही डस्टबिनाबाद राज्य को खुद से कमतर और बेकार माना
करते थे और उन्हें यह हरगिज़ पसन्द नहीं था कि उनके यहां से कोई भी डस्टबिनाबाद के
लोगों से दोस्ती करे।
दूसरी तरह डस्टबिनाबाद के नरेश कूड़ामल एक नम्र, भावुक एवं अच्छे दिल
के इंसान थे जिन्हें अपने राज्य और प्रजा से बेहद प्यार था। उनका राज्य था भी अच्छा
जिसके तीन तरफ कूड़े के ऊंचे पहाड़ थे और एक तरफ रीसाइक्लाबाद की सीमा। हालांकि
खुद के राज्य को लेकर पड़ौसी राज्य रीसाइक्लाबाद का नज़रिया उन्हें कभी पसंद नहीं
आया लेकिन फिर भी वो कुछ कहते नहीं थे। हमेशा खुश रहते थे। पृथ्वी के अन्य लोग जब भी डस्टबिनाबाद के पास से गुज़रते तो बड़ी हिकारत भरी नज़रों से उस राज्य को देखा करते थे। कोई उन्हें पसंद नहीं करता था। लेकिन इस सबके बावज़ूद नरेश कूड़ामल प्रसन्न रहते और अपने काम में लगे रहते।
पर एक दिन हद हो गर्ई।
नरेश कूड़ामल को पता चला कि रीसाइक्लाबाद राज्य के राजा अपनी सीमा पर सौ मीटर ऊंची
दीवार बनवा रहे हैं जिससे डस्टबिनाबाद राज्य से सम्पर्क पूरी तरह समाप्त हो जाए। नरेश कूड़ामल ने अपना जो दूत इस दीवार बनवाने का कारण जानने के लिए रीसाइक्लाबाद
भेजा था, वो भी रोते-रोते वापस आया था और कुछ भी बताने से इनकार कर रहा था। तब नरेश कूड़ामल ने स्वयं जाकर महाराज रीसाइकिल सिंह से बात करने की ठानी।
राज्य की
सीमा पर पहुंचकर उन्होंने महाराज रीसाइकिल सिंह को पैगाम भिजवाया। इस पर महाराज
रीसाइकिल सिंह खुद वहां आए और नाक-भौं सिकोड़कर नरेश कूड़ामल से बोले- हमें आपके
साथ रहने का कोई शौक नहीं है नरेश कूड़ामल। अपने आपको देखिए, हमेशा आपसे बदबू आती
रहती है। आपके पूरे राज्य से भी कूड़े की गंदी बदबू आती है, कभी सड़े फलों की, कभी
फफूंद लगे खाद्य पदार्थों की, कभी कीचड़ की तो कभी सीलन की। आपके यहां पूरी पृथ्वी
के लोग कूड़ा फेंकने आते हैं। जबकि हमारे यहां के नागरिक और राज्य साफ सुथरे है।
यहां आपको केवल टूटी प्लास्टिक की बोतलें, कागज़, कपड़े और ऐसी चीज़े मिलेंगी
जिनसे कम से कम बदबू नहीं आती। और आपके यहां पहुंची चीज़ों का तो कोई उपयोग भी
नहीं होता जबकि हमारे नागरिकों को रीसाइकिल करके फिर से काम में लाया जाता है। हम
आपसे बहुत बेहतर हैं इसलिए हमें आपका पड़ौसी बनना मंजूर नहीं और इसलिए हम दोनों
राज्यों के बीच दीवार बनवा रहे हैं, कहते हुए महाराज रीसाइकिल सिंह तुनकते हुए
वहां से चले गए।
उस दिन नरेश कूड़ामल को बहुत ज़्यादा दुख हुआ। आखों से आंसू बहने लगे।
वो सोचने लगे कि मुझे प्रकृति ने ऐसा बनाया है तो इसमें मेरा क्या दोष। मैं और
मेरे देश के नागरिक क्या इतने बुरे हैं कि कोई उनसे दोस्ती तक करना पसंद नहीं
करता..? वो जाकर
डस्टबिनाबाद के राजगुरु, तेज़वान ऋषि डस्टबिनानंद से मिले और बिलखते हुए सारी बात
उन्हें बताई।
सारी बात सुनकर राजगुरु डस्टबिनानंद ने नरेश कूड़ामल को शांत किया और उन्हें
महाराजा रीसाइकिल सिंह समेत सभी पृथ्वीवासियों को भी सबक सिखाने और अपने राज्य का महत्व समझाने के लिए एक
तरकीब बताई। इसे सुनकर नरेश कूड़ामल की आंखे चमक उठीं।
दूसरे दिन से डस्टबिनाबाद के नागरिकों ने काम करना बंद कर दिया। उन्होंने
जगह जगह जाकर कूड़ा जमा करना रोक
दिया और हड़ताल पर बैठ गए। डस्टबिनाबाद राज्य के
गेट बंद कर दिए गए। अब वहां ना कोई आ सकता था और ना ही वहां से कोई बाहर जा सकता
था। नतीजा, कुछ ही समय में पूरी पृथ्वी त्राहि-त्राहि कर उठी।
लोगों को अपने घर का
कूड़ा डालने के लिए डस्टबिन मिलने बंद हो गए। कुछ समय तक तो लोगों ने अपने घरों
में कूड़ा इकट्ठा किया लेकिन जब उसकी मात्रा बढ़ने लगी, तो लोग सड़कों पर कूड़ा
फेंकने लगे। और धीरे-धीरे घरों, सड़कों, पुलों, नालों, दुकानों, दालानों... सब जगह
कूड़ा ही कूड़ा दिखने लगा। कूड़ा जमा करने के लिए डस्टबिन थे नहीं, डस्टबिनाबाद
राज्य के गेट बंद थे तो लोग वहां कूड़ा फेंकने नहीं जा सकते थे, इसलिए हर जगह बस
कूड़ा ही कूड़ा बिखरा दिखने लगा...।
उधर अब रीसाइक्लाबाद की रौनक भी घटने लगी थी। जब
कूड़ा डस्टबिनाबाद नहीं पहुंचता था, तो वहां के लोग रीसाइकिल करने लायक चीज़े रीसाइक्लाबाद
भी नहीं पहुंचा पाते थे।
पृथ्वी के अन्य लोग भी चारों तरफ बिखरे कूड़े की बदबू से इतने परेशान
थे कि अब चारों तरफ फैले कूड़े से रीसाइकिल हो सकने वाले कूड़े को छांटने की
हिम्मत किसी में नहीं बची थी। रीसाइक्लाबाद वीरान हो गया। उसके यहां की
फैक्ट्रियां बन्द हो गईं।
पृथ्वी के लोगों को जब डस्टबिनाबाद द्वारा की जा रही
इस हड़ताल का कारण पता चला तो उन्हें अपनी सोच पर तो पछतावा हुआ ही साथ ही उन्होंने पानी पी-पीकर रीसाइक्लाबाद के लोगों को
कोसना शुरू कर दिया सो अलग।
अब महाराज रीसाइकिल सिंह की आंखे खुली। उन्हें अपनी गलती समझ में आ
चुकी थी। उस दिन उन्होंने जाना कि उनका राज्य तभी आबाद रहेगा जब डस्टबिनाबाद आबाद
रहे। क्योंकि अगर कूड़ा होगा तभी रीसाइक्लिंग के लिए चीज़े होंगी।
यहीं नहीं वो
यह भी समझ गए कि केवल डस्टिनाबाद की वजह से ही पूरी पृथ्वी साफ सुथरी है, अगर
डस्टबिनाबाद नहीं होगा तो हर तरफ गंदगी का साम्राज्य होगा। यह तो डस्टबिनाबाद और
नरेश कूड़ामल की महानता थी कि पूरी पृथ्वी साफ सुथरी रहे इसलिए उन्होंने खुद के
राज्य और नागरिकों द्वारा कूड़ा संभालने का काम खुशी-खुशी करना स्वीकारा था।
उसी समय महाराज रीसाइकिलसिंह, नरेश कूड़ामल से मिलने डस्टबिनाबाद
पहुंचे। सीमा पर बन रही दीवार का काम तुरंत रुकवा दिया गया और बनी हुई दीवार को
तुड़वाने का काम शुरू हो गया। महाराज रीसाइकिल सिंह ने नरेश कूड़ामल के सामने हाथ
जोड़कर माफी मांगते हुए कहा- महाराज मुझे क्षमा करें। अब मुझे समझ में आया है कि
दुनिया में हर चीज़ का अपना महत्व है, डस्टबिन का भी। आप की वजह से ही मेरा राज्य
रीसाइक्लाबद आबाद है। मुझे अपना मित्र स्वीकारें।
नरेश कूड़ामल ने महाराज रीसाइकिल सिंह को गले लगा लिया और दोनों मित्र
बन गए। महाराज रीसाइकिल सिंह की आंखें खुल चुकी थी और पृथ्वी के अन्य लोगों को भी अपनी गलती का अहसास हो गया था।
डस्टबिनाबाद के नागरिकों ने
फिर से अपना काम मुस्तैदी से संभाल लिया। कुछ ही दिनों में पूरी पृथ्वी साफ हो गई
और रीसाइक्लाबाद की रौनक भी लौट आई। इस घटना के बाद कभी किसी ने फिर डस्टिनाबाद और
उसके नागरिकों के बारें में कुछ गलत सोचने या कहने का दुस्साहस नहीं किया।
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