भारत के भविष्य से खिलवाड़ करने वाले असली अपराधी कौन हैं?



भारत देश के बच्चों की पढ़ाई, उन्हें योग्य बनाने से लेकर उनसे कई महत्वपूर्ण प्रवेश परीक्षाएं दिलवाने का काम सीबीएसई करती है। पूरे देश में स्कूलों को मान्यता देना, विभिन्न कक्षाओं के लिए कोर्स निर्धारित करना, स्कूलों के ऑडिट करना, किताबें और स्टडी मैटीरियल तैयार करवाना.. जैसे बहुत से महत्वपूर्ण काम इस एकमात्र संस्था के जिम्मे हैं । साथ ही सीबीएसई दुनिया की सबसे बड़ी एक्ज़ाम्स आयोजित कराने वालीं एकमात्र संस्था है जो पूरे देश के सीबीएसई स्कूलों में दसवीं और बारहवीं की परीक्षाएं आयोजित कराने के अलावा नेट (NET), नीट (NEET), आईआईटी जी (JEE) और सीटेट (CTET) जैसी प्रतियोगी/प्रवेश परीक्षाओं का आयोजन भी कराती है।

 यानि कम शब्दों में कहें तो भारत के बच्चों का भविष्य, पढ़ाई, करियर सबकुछ इस सीबीएसई संस्था के हाथों में हैं जोकि एचआरडी मिनिस्ट्री के अन्तर्गत आती है। यहां सीबीएसई की महिमा का गुणगान यूंही नहीं किया गया है। इसके पीछे कई कारण है। पर पहले आज के दो सबसे ज्वलंत सवालों को देखते हैं:

पहला सवाल- प्राइवेट स्कूलों द्वारा लगातार मनमाने ढंग से बढ़ाई जा रही फीस, एनसीईआरटी की किताबें ना लागू करके प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें लागू करना और उन्हें स्कूल में ही खोली गई दुकानों में  दस-बीस गुने दामों पर बेचा जाना वो भी बिना रसीद दिए.. इन सब के लिए असल में कौन ज़िम्मेदार है?

दूसरा सवाल- बोर्ड परीक्षाओं, प्रतियोगी परीक्षाओं और प्रवेश परीक्षाओं के समय पेपर लीक होने और नकल करवाने के लिए सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी किस की बनती है?

पिछले साल बिहार के सीबीएसई स्कूल टॉपरों का मामला सामने आया था जिन्हें नकल करवाकर टॉपर बनाया गया था। और अब हाल में नीट परीक्षा में नकल करवाने का मामला सामने आया है, जिसमें नकल करवाने वाले गैंग ने उस बक्से का ताला तोड़कर प्रश्नपत्रों की फोटो खींची जो कि सीबीएसई द्वारा बख्तरबंद गाड़ी में विभिन्न सेंटरों पर भेजे जा रहे थे। गैंग चलाने वालों को यह तक पता होता था कि किस रोल नंबर पर कौन से सेट का पेपर आएगा। उस पेपर के हिसाब से उत्तर लिखकर प्रवेश पत्र के ज़रिए अभ्यर्थियों तक पहुंचाए जाते थे और इस तरह नकल का खेल चलता था जिसके लिए एक-एक छात्र से लाखों रुपए वसूले जाते थे।

कभी सीटेट का पेपर लीक होता है, कभी सीबीएसई बोर्ड का। नीट परीक्षाओं में भी जमकर धांधली हो ही रही है।  बहुत ही सुनियोजित और व्यवस्थित तरीके से पेपर लीक करके छात्रों को पास कराने वाला यह गिरोह काम करता है। और उतने ही सुनियोजित तरीके से काम करता है पब्लिक स्कूल माफिया, जो पैरेन्ट्स द्वारा लगातार आवाज़ उठाए जाने के बावजूद और मीडिया तक में इस मामले की चर्चा के बावजूद आजतक अनछुआ है। अभी तक स्कूलों पर कोई कार्यवाई नहीं हुई है।

फीस बढ़ाया जाना बदस्तूर जारी है, पैरेन्ट्स को लूटना बदस्तूर जारी है। एनसीईआरटी की किताबें आजतक सारे सीबीएसई स्कूलों में लागू नहीं हो पाई हैं। क्योंकि अगर लागू हो भी जाती हैं तो वो उपलब्ध नहीं होती। सवाल यह भी हैं कि ऐसा क्यों होता हैं, क्यों एनसीईआरटी की किताबें बिक्री के लिए उपलब्ध नहीं कराई जाती या उन्हें जानबूझ कर कम संख्या में छापा जाता है ताकि स्कूल इनकी अनुपलब्धता का तर्क देकर अपने हिसाब से नए पब्लिशर्स की किताबें लागू कर सकें। और सबसे बड़ी बात क्यों सीबीएसई के सुयोग्य ऑडिटर्स स्कूलों में चल रही वो गड़बड़ियां नहीं देख पाते जो साधारण इंसानों को भी दिखाई दे जाती हैं?

अब आते है असली मुद्दे पर। यहां सीबीएसई की बात क्यों की गई? जब स्कूल मनमाने ढंग से फीस बढ़ाते हैं तो हम उसकी ज़िम्मेदारी स्कूल माफिया पर डाल देते हैं, स्कूल की मैनेजमेंट कमेटियों पर डाल देते हैं जिनके हाथ बहुत लम्बे कहे जाते हैं। वहीं परीक्षाओं में पेपर लीक होने के मामले में, नकल कराए जाने के मामले में हम दोष संबंधित स्कूलों के लोगों, डॉक्टरों, इंजीनियरों, टीचरों और गैंग के लोगों पर मढ़ देते हैं। लेकिन कभी सोचा हैं कि इसके असली दोषी कौन हैं। कौन हैं वो लोग जिनकी वजह से स्कूलों की मनमानी बंद नहीं हो पाती, परीक्षाओं में नकल होती हैं और एनसीईआरटी की किताबें सीबीएसई स्कूलों में लागू नहीं हो पाती। क्यों  सीबीएसई द्वारा कराए जाने वाले रिक्रूटमेन्ट में खुले तौर पर रिश्वतखोरी चलती है?

जब सबसे बड़ी अथॉरिटी सीबीएसई है तो पहला दोष किसका हुआ? पर्चा अगर सीबीएसई से निकलने वाली गाड़ी से लीक हो रहा है तो दोष किसका है ? ज़ाहिर है सीबीएसई का, फ़िर हम कैसे सीबीएसई को इस मामले से पाक साफ छोड़ सकते हैं। अगर धांधली हुई है तो इसमें पूरी तरह से ना सही, कहीं ना कहीं सीबीएसई शामिल है। अगर सीबीएसई से मान्यता पाने वाले पब्लिक स्कूल अपनी मनमानी कर रहे हैं तो इसमें सीबीएसई कैसे बच सकती है। कार्यवाई अगर होनी चाहिए तो सबसे पहले सीबीएसई पर होनी चाहिए। जांच अगर होनी चाहिए तो सबसे पहले शुरूआत सीबीएसई से होनी चाहिए। तभी मामले को सुधारा जा सकता है।

ना तो फीस बढ़ोत्तरी के विरोध में भीड़ जुटाकर डीएम, सीएम के चक्कर काटने से कुछ होगा और ना ही पर्चा लीक गैंग की धड़पकड़ से कुछ हासिल होने वाला है। पुलिस चाहे तो इन मामलों को कुछ समय में निपटा सकती है। बस जांच की शुरूआत सही होनी चाहिए। हाथ सही कल्प्रिट पर जाना चाहिए। जो सीबीएसई है और उसकी सरमाएदार एचआरडी मिनिस्ट्री है, जो प्रकाश जावड़ेकर जी के हाथ में हैं, जो कि मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं।

और अंत में मुझे पता नहीं क्यों बार-बार मोदी जी द्वारा संसद में दिया गया वो बयान भूलता ही नहीं है कि रेनकोट पहन कर बाथरूम में नहाने की कला कोई डॉक्टर साहब से सीखे....।

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