Posts

Showing posts from 2019

सृष्टि के कण कण में बस शिव ही शिव हैं

Image
श्रावण भगवान शिव की आराधना का मास है। संस्कृत में ‘शि’ का अर्थ है कल्याणकारी और ‘व’ का अर्थ है दाता। यानि शिव शब्द से आशय है - कल्याण को देने वाला। शिव पुराण में शिव को अजन्मा माना जाता है, मतलब जिसका जन्म नहीं हुआ। जो हमेशा से थे और रहेंगे। जिनकी ना कोई शुरूआत है और ना ही अन्त। लेकिन विष्णु पुराण के अनुसार शिव की उत्पत्ति भगवान विष्णु के माथे के तेज़ से हुई है। और तेज़ से उत्पन्न होने के कारण ही भगवान शिव हमेशा योग मुद्रा में रहते हैं। हिन्दू महीनों के नाम नक्षत्रों पर हैं। और श्रावण नक्षत्र का स्वा मी चन्द्रमा है जो भगवान भोलेनाथ के मस्तक पर विराजमान है। इस समय सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश करते समय बारिश होती है और हलाहलधारी भगवान शिव को ठण्डक मिलती है इसलिए श्रावण मास उनका प्रिय महीना है और सोमवार प्रिय वार। शीश पर सोम यानि चंद्रमा को धारण करने की वजह से ही सोमवार को उनकी पूजा का खास महत्व है। यह भी माना जाता है कि चंद्रमा की पूजा करने से वो खुद भगवान शिव तक पहुंचती है। त्रिदेवों में शिव जी का रूप सबसे अलग और अनूठा है। वो सृष्टि के संहारक भी है और सृष्टि के जीवो और...

वेटिकन की कब्रें खोदकर ढूंढा जा रहा है 36 साल पहले गायब हुई इमैन्युएला को, सुलझने की बजाय और उलझ रही है मिस्ट्री

Image
Truth is stranger than fiction- "सच कहानी से ज़्यादा अजीब होता है"। दुनिया के सबसे छोटे देश 'वेटिकन सिटी' में मिस्ट्री और थ्रिल से भरी ऐसी ही कहानी घट रही है। यह कहानी है 'इमैन्युएला ऑरलैन्डि' की, जो 36 साल पहले गायब हो गई थी और जिनकी तलाश लगातार नए राज़ सामने ला रही है। -शुरूआत किरदारों से करते हैं। इमैन्युएला ऑरलैन्डि की कहानी के अहम किरदारों में हैं उनके मरहूम पिता जो वेटिकन चर्च के क्लर्क थे। इमैन्युएला के बड़े भाई 'पीट्रो ऑरलेन्डो' जो फिलहाल साठ साल के हैं और अब तक उनकी  खोज जारी रखे हुए हैं और 'वेटिकन सिटी' जिसके आस-पास पूरी इन्वेस्टिगेशन घूमती है। -इमैन्युएला का पूरा परिवार वेटिकन सिटी में रहता था। 22 जून 1983 को 15 साल की इमैन्युएला, सेंट्रल रोम में म्यूज़िक क्लास लेने गई थी। और कभी नहीं लौटी। -वेटिकन सिटी से जुड़े परिवार का मामला था लिहाजा बड़े स्तर पर खोज की गई। हालांकि वेटिकन अथॉरिटीज़ ने जांच में ज़्यादा सहयोग नहीं दिया। इमैन्युएला नहीं मिली। - इस दौरान ऑरलेन्डि परिवार को बहुत सारे अज्ञात कॉल्स और खत मिले। कभी मानव ...

मेरी दुआएं उनके लिए जिन्होंने नाममुकिन को मुमकिन करने का हौसला दिया.....

Image
आखिरकार चुनावों का ऐलान हो गया है। परीक्षा की घड़ी आ गई है। कयास हम कितने भी लगा लें पर रिज़ल्ट आने से पहले नहीं कहा जा सकता कि टॉपर कौन होगा। इसलिए बात उन बातों की जो कयासों से परे हैं। 2014 में जब नई सरकार सत्ता में आई थी तो उसे चुनने का कारण मनमोहन सरकार की नाकामियां थी, लगातार बढ़ रही अराजकता थी, दिन पर दिन खुल रहे घोटाले थे, बढ़ती महंगाई थी, अपराध और बेरोजगारी का बढ़ता ग्राफ था और देश में जगह-जगह हो रहे बम धमाके थे। पाकिस्तान जब चाहे तब हमें आंखे दिखाता था और हमारे सैनिकों के सिर तक काट कर ले जाता था। मोदी सरकार सत्ता में आई तो बदलाव आया। आज महंगाई काबू में है, अराजकता पर लगाम है, जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में कहीं कोई बम नहीं फटा। घोटाले नहीं हुए। हां, राफेल स्कैम पर बात करना बेमानी है क्योंकि उसकी सच्चाई सब जानते हैं, भले ही मानें ना। कुम्भ इतने भव्य स्तर पर हुआ। और उसमें सबकुछ हुआ सिवाय भगदड़ में लोगों के मरने के, जो अब से पहले कभी नहीं हुआ था। घोटाले करके विदेश में बस जाने के दिन लद गए। अब तो हाल यह है कि लोग विदेश भागने के बाद भी भारत सरकार के डर में जीते ...

बधाई....???????????

Image
परम्पराएं धर्म की बैकबोन होती हैं। ये वो नियम-कायदे हैं, जिनके कारण वो धर्म, बाकियों से अलग बनता है। और जिन नियमों से किसी को नुकसान नहीं पहुंचता और जो उस धर्म को मानने वालेआराम से मान रहे हैं, उन पर आघात करने का मतलब उस धर्म को आघात पहुंचाना है। उस वकील नौशाद अहमद खान को बधाई, जिन्होंने लॉर्ड अयप्पा को मानने वाली उन महिलाओं की बेचैनी समझी जो सबरीमाला के दर्शन करना चाहती थीं और जिनकी अगुआई में वकीलों ने पीआईएल फाइल की। हालांकि उनमें एक भी लॉर्ड अयप्पा का भक्त नहीं था या थी। उस महिला एक्टिविस्ट रेहाना को भी  बधाई , जिसने डिवोटी ना होने के बावजूद सबरीमाला मन्दिर तक पहुंचने के लिए 'हिंसक' भक्तों की भीड़ से लड़ाई की। उन सभी फेमिनिस्टों को भी  बधाई , जो शायद कभी भी सबरीमला नहीं जाएंगी लेकिन जिन्होंने अपनी सोशल मीडिया दीवारों के ज़रिए यह जताया कि लॉर्ड अयप्पा के मन्दिर में जाने की अनुमति मिलना, महिला और पुरुषों के बीच इक्वेलिटी लाने के लिए अत्यधिक ज़रूरी है। बधाई  के पात्र वो दो महिलाएं भी हैं, जो अयप्पा डिवोटी तो नहीं हैं लेकिन जिन्होंने महिलाओं के हक की लड़ाई लड़ी औ...