Sunday, 7 December 2025

वास्तविक नहीं अति-वास्तविक दुनिया में जी रहे हैं हम

फ्रांस के विचारक जॉन बॉड्रिलार्ड (Jean Baudrillard) ने 1981 में एक किताब लिखी थी - सिम्यूलेक्रा एण्ड सिम्यूलेशन। उनका कहना था कि मीडिया हमें असली दुनिया नहीं दिखाता, बल्कि एक असल दुनिया के सिम्बल्स के साथ बनाई गई एक नकली चमक-दमक वाली दुनिया दिखाता है जिसे हम “हाइपर-रियल” या अति-वास्तविक दुनिया कह सकते हैं। यह इतनी परफेक्ट और आकर्षक होती है कि लोग असली दुनिया और इस नकली दुनिया में फर्क भूल जाते हैं। असली चीज़ धीरे-धीरे गायब हो जाती है, सिर्फ़ उसकी नकल रह जाती है, जिसे बॉड्रिलार्ड “सिम्युलेक्रा” कहते हैं। लगभग 2 साल पहले हमने डीयू के स्टूडेन्ट्स पर एक रिसर्च की थी जिसमें यह जानने की कोशिश की गई थी कि मीडिया से भरी इस दुनिया में आज के युवा इन तीन चीजों को कैसे देखते हैं- 1- खुद की पहचान और प्राथमिकताएं 2- खुशी का मतलब 3- दुनिया की समझ इस रिसर्च में जो नतीजे आए, वो हैरान करने वाले थे। और सबसे अहम बात यह कि इस रिसर्च में शामिल लगभग सारे युवाओं की सोच एक ही तरह की थी। युवाओं के लिए इन तीनों चीज़ो का मतलब बदल गया है। पहले लोगों के लिए खुद की पहचान का मतलब असली ज़िंदगी, रिश्ते और उनके सपने थे। लेकिन अब उनकी पहचान परफेक्ट बॉडी और लक्ज़री लाइफस्टायल है और यहीं प्राथमिकताएं भी हैं। पहले खुशी का मतलब था अपनों के साथ समय बिताना, सुकून और शान्ति की ज़िन्दगी, और अब खुशी का मतलब नया फोन, ब्रांडेड कपड़े, विदेश ट्रिप, लाइक्स और फॉलोअर्स हो गए हैं। दुनिया को समझने के लिए भी अब लोग खुद का अनुभव या किताबें नहीं, बल्कि न्यूज़ चैनल और सोशल मीडिया देखते हैं। इसलिए दुनिया के किसी भी विषय पर एक मास सोच बनती है, मास कल्चर का जन्म होता है जिसमें ओरिजिनेलिटी या ओरीजनल कल्चर के लिए कोई जगह नहीं। बल्कि अगर कोई ओरीजिनल होना चाहता है, तो लोग उसे हेय दृष्टि से देखते हैं। उदाहरण के लिए आजकल की शादियां और त्यौहारों के सेलिब्रेशन देख लीजिए। जिनका मतलब केवल अच्छे कपड़े पहनना, सुन्दर दिखना, अच्छा खाना-पीना और जितना हो सके दिखावा करना रह गया है जिससे एक मीडिया अनुकूल छवि बन सके। पारम्परिक रीति-रिवाज़, रस्में और नैतिकताएं बहुत पीछे छूट गई हैं। तभी आजकल हर सेलिब्रेशन एक सा ही दिखता है- मास प्रोडक्ट की तरह। मीडिया और विज्ञापन जो चमकदार नकली दुनिया बनाते हैं। हम उस नकली दुनिया को ही असली मानकर जीने लगते हैं। यहीं बॉड्रिलार्ड का सिम्यूलेशन वर्ल्ड है जिसमें हम सब फिलहाल जी रहे हैं।

Wednesday, 17 September 2025

मिस्टर एन्ड मिसेज 55: गुरुदत्त साहब की विविधता का नायाब नमूना


'तुम दो मिनट रुको मैं अभी शादी करके आती हूं'

'क्या बात है, आजकल आदमी से ज्यादा टेनिस की अहमियत हो गई है'

'तुम्हें खाने को रोटी नहीं मिलती तो बिस्किट क्यों नहीं खाते.. बिस्किट!'

"तो आप एक पैरासाइट हैं जो खुद नहीं कमाते लेकिन अपने दोस्त की कमाए पैसों से काम चलाते हैं,.., जी नहीं मैं वो इंसान हूं जो गुरबत में इधर-उधर हाथ फैलाने की बजाय अपने दोस्त से उधार लेना ज्यादा बेहतर समझता हूं"।

यह कुछ ऐसे डायलॉग्स हैं जो 1955 में आई गुरुदत्त- मधुबाला की क्लासिक कॉमेडी 'मिस्टर एंड मिसेज़ 55' देख चुकने के बहुत समय बाद भी आपके दिमाग में गूंजते रहेंगे और आपको गुदगुदाते रहेंगे। और यह तो केवल बानगी भर है, यह ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म इतनी मज़ेदार और रोचक है कि इसे देखना शुरू करने के बाद आप रुक नहीं सकते, और ना ही पूरी फिल्म के दौरान कहीं भी ऐसा लगता है कि हम 60 साल पुरानी फिल्म देख रहे हैं।

आधुनिकता और परम्परा का संगम अनिता यानि मधुबाला, हाज़िरजवाब, टैलेंटेड लेकिन गुरबत का मारा कार्टूनिस्ट प्रीतम यानि गुरुदत्त, हिटलर आंटी सीता देवी यानी ललिता पवार, मज़ाकिया लेकिन सच्चा दोस्त जॉनी वॉकर और गाल में गढ्ढों और बड़ी बड़ी आंखों वाली जूली यानि यास्मीन..... ओ पी नय्यैर का मधुर संगीत, विटी डायलॉग्स और जबरदस्त स्टोरी.... यह फिल्म नहीं देखी तो क्या देखा।

आप भले ही गुरुदत्त की क्लासिक फिल्मों में प्यासा और कागज़ के फूल को शुमार करते हों, लेकिन मिस्टर एंड मिसेज 55 को देखकर पता चलता है कि गुरुदत्त केवल ट्रेजेडी के ही नहीं कॉमेडी के भी किंग थे। छोटे-छोटे डॉयलॉग्स में बड़ी बाते कह देना कोई गुरुदत्त से सीखे।

फिल्म की कहानी कुछ इस तरह है कि सीता देवी जो कि अनिता की आंटी है, महिलाओं की आज़ादी की पक्षधर हैं और वो शादी को महिलाओं की गुलामी का कारण मानती हैं, तलाक कानून की पक्षधर हैं और उनका मानना है कि महिला, मां बाप से मिली जायदाद के कारण या नौकरी वगैरह करके खुद खाने कमाने में सक्षम है तो उसे शादी के बधंन में बंधकर पति की गुलामी करने से गुरेज करना चाहिए और अगर किसी वजह से उसकी शादी हो गई है तो उसे तलाक लेकर इस गुलामी से आजाद हो जाना चाहिए। यही वजह है कि वो अपनी बिन मां-बाप की भतीजी अनिता की शादी भी नहीं करना चाहती। लेकिन अफसोस अनिता के पिता और सीता देवी के भाई अनिता को जायदाद देने की शर्त यह रखते हैं कि उसके 21 साल तक शादी हो जानी चाहिए। ना चाहते हुए भी केवल जायदाद हासिल करने के लिए सीता देवी को अनिता की कॉन्ट्रेक्चुअल शादी प्रीतम (गुरुदत्त) से करानी पड़ती है लेकिन साथ ही वो यह शर्त रख देती है कि प्रीतम अनिता से कभी नहीं मिलेगा और वो जब चाहेंगी प्रीतम को अनिता को तलाक देना पड़ेगा। बेचारा प्रीतम, अनिता को चाहते हुए भी उससे दूर रहने को मजबूर है... आगे कहानी क्या मोड़ लेती है इसके लिए अगर फिल्म ही देखी जाए तो बेहतर है।

वास्तविक नहीं अति-वास्तविक दुनिया में जी रहे हैं हम

फ्रांस के विचारक जॉन बॉड्रिलार्ड (Jean Baudrillard) ने 1981 में एक किताब लिखी थी - सिम्यूलेक्रा एण्ड सिम्यूलेशन। उनका कहना था कि मीड...