एमबीए करने के बाद चार दोस्तों ने लाखों की नौकरी छोड़ कर खोली गन्ने के रस की दुकान, पूरे भारत में गन्ने के रस के प्रति जागरूकता लाने और गन्नावाला कैफे श्रंखला स्थापित करने की चाह...
अंकित, विकास, संदीप और अमित (बांए से दाएं)“क्या? गन्ने का रस !!!! सबसे पहले आप हरी भरी गीली घास के मैदान का स्वाद महसूस करते हैं... उसके बाद मिठास धीरे-धीरे जेहन और स्वाद में उतरती है ..यह ना गरिष्ठ है और ना बिल्कुल सादा... यह रंगीला और चमकदार भी नहीं है... 300 मिलीलीटर के गिलास में कोई आकर्षण नहीं छिपा है... आप कभी इसके आदी नहीं बनेंगे.. यह सॉफ्ट ड्रिंक से कहीं ज्यादा बेहतरी से आपकी प्यास बुझाता है और इसमें प्राकृतिक चीज़ों के अलावा और कुछ भी नहीं..यह गर्ल-नेक्स्ट-डोर-पेय है” – (www.gannnawala.in से)
गन्ने के रस का ऐसा विवरण आपने आज तक कहीं भी नहीं पढ़ा होगा। एक कवि की कविता की भांति गन्ने के रस का ऐसा वर्णन केवल वहीं कर सकते हैं जिन्होंने गन्ने के रस को अपने जीवन का आधार बनाया हो। जी हां, यहां हम बात कर रहे हैं ‘जी’ से ‘गन्नेवाले’ रायपुर निवासी- संदीप जैन, विकास खन्ना, अमित अग्रवाल और अंकित सरावगी नाम के चार मित्रों की, जिन्होंने एमबीए की डिग्री हासिल करने के बाद लाखों के सालाना पैकेज पर लगभग एक वर्ष तक नौकरी की और फिर अपनी-अपनी नौकरियां छोड़कर अपने ही गृह नगर रायपुर में गन्ने के रस का कैफे खोलने का निश्चय किया।
मिलिए गन्नेवालों से -
1- संदीप जैन- आरआईटी, रायपुर से इंजीनियरिंग और एफएसएम दिल्ली से एमबीए उत्तीर्ण, फिलहाल छत्तीसगढ़ की एक इंडस्ट्री में कार्यरत
2-विकास खन्ना- टीए पाई मैनेजमेंट इन्स्टीट्यूट, मनिपाल से एमबीए और सीएफए इंस्टीट्यूट से उत्तीर्ण, पूर्व में सिटी ग्रुप में इन्वेस्टमेन्ट एनालिस्ट रह चुके हैं
3-अमित अग्रवाल- सिंबयोसिस, पुणे से एमबीए उत्तीर्ण, पूर्व में जे पी मोर्गन में एनालिस्ट रह चुके हैं
4- अंकित सरावगी- प्रोटॉन बिजनिस स्कूल इंदौर से एमबीए उत्तीर्ण, रोहा डाईकैम मुम्बई में जॉब कर चुके हैं।
अपने आश्चर्य से खुले मुखों को बन्द कीजिए। और सुनिए इन गन्नेवालों की कहानी। 25 से 26 साल की उम्र के यह चारों दोस्त नामचीन संस्थानों से एमबीए करने के बाद लाखों के सालाना पैकेज पर अलग अलग नौकरी कर रहे थे। लेकिन कुछ नया करने की चाह और अपने गृह नगर में अपने परिवारों के साथ जिंदगी गुज़ारने की हसरत ने इन्हें एक रचनात्मक और मौलिक बिजनिस को शुरु करने की प्रेरणा दी।
‘गन्नेवाले’ संदीप जैन बताते हैं “ हम चारों सालेम स्कूल में एक साथ पढ़े हैं। बचपन के दोस्त हैं। हम सभी अलग अलग जॉब कर रहे थे। कुछ समय पहले जब मिले, तो हमने अपने शहर में ही कुछ करने की बात पर विचार किया और चूंकि हम सबको खाने-पीने का बहुत शौक है तो इससे जुड़ा बिजनिस शुरु करने की ही सोच रहे थे और तभी हमारे दिमाग में यह गन्नावाला कैफे शुरु करने का आईडिया आया”।
और आखिरकार काफी सोच-विचार और अपनी-अपनी नौकरियों से कमाई बचत से इन्होंने इसी वर्ष फरवरी में रायपुर की समता कॉलोनी में अपना पहला ‘गन्नावाला कैफे’ खोल लिया। चूंकि संदीप इस काम के साथ छत्तीसगढ़ की इंडस्ट्री में कार्यरत हैं और बाकी तीनों दोस्त साथ-साथ अपने- अपने घरेलु बिजनिस को भी संभाल रहे हैं, इनके अभिभावकों को भी इनके द्वारा नये और कदरन रिस्की बिजनिस को शुरु करने पर कोई परेशानी नहीं हुई।
गन्नावाला कैफे में साफ सुथरे ढंग से निकाला जाने वाला शुद्ध और पोषक गन्ने का रस लोगों को तेज़ी से अपनी तरफ खींचने लगा। यह कैफे युवाओं, वृद्धों और आस पास के निवासियों में इस कदर लोकप्रिय हुआ कि दो महीने के अंदर ही, 2 मई 2014 को, इन दोस्तों ने लोगों की बेहद मांग पर रायपुर के कटोरा तालाब इलाके में इसकी दूसरी शाखा भी खोल ली। उनके इस मौलिक और रचनात्मक बिजनिस आईडिया को लोग बेहद पसंद कर रहे हैं और उन्हें पूरे देश से फ्रेंचाइज़ी के ऑफर मिल रहे हैं।
गन्ने के रस के ढेर सारे फ्लेवर मौजूद
चारों दोस्तों ने लोगो को विविध स्वाद उपलब्ध कराने के लिए इंटरनेट पर रीसर्च और एक्सपेरिमेंट करके गन्ना रस के नए फ्लेवर ईजाद किए हैं जैसे- निंबूड़ा, क्लासिक, अदरकी, लप टप, जलजीरा, झाल रस, चटपटा, ग्लोरोमिंट और मिलीभगत। यहां स्नैक्स के तौर पर गन्ने की शुद्ध, छिली हुई गंडेलिया भी मौजूद हैं जिन्हें इन्होंने नाम दिया है ‘गिलीपुट।’ रेगुलर ग्लास 20 रुपए और जम्बो गिलास 30 रुपए का मिलता है। यहीं नहीं, 30 रुपए देकर आप इस कैफे में अपना खुद का फ्लेवर भी बना सकते हैं।
संदीप बताते हैं कि उनके यहां साफ सफाई का खास खयाल रखा जाता है। गन्ना रस निकालने वाले कर्मचारी साफ-सुथरे रहते हैं और हमेशा कैप और दास्ताने पहनकर काम करते हैं। गन्नारस की शुद्धता और पोषण बरकरार रखने के लिए, गन्नावाला कैफे में गन्ने का रस निकालकर उसमें बर्फ नहीं मिलाई जाती, बल्कि पहले गन्ने को डीप फ्रीज़र में रखकर ठंडा किया जाता है और फिर उसका रस निकाला जाता है। जिससे रस ठंडा रहता है और उसमें बर्फ मिलाने की ज़रूरत नहीं पड़ती।
जैविक गन्ने का इस्तमाल
गन्नावाला कैफे में रासायनिक खेती से उपजे गन्नों की जगह, जैविक खेती से उगाए गए गन्नों का इस्तमाल किया जाता है। संदीप के अनुसार इन्होंने अंबिकापुर में एक किसान से करार किया है जो पूरे साल जैविक खेती द्वारा उगाई गई गन्ने की फसल इन्हें उपलब्ध कराएगा। भविष्य में इनकी खुद भी गन्ने की खेती करने की योजना है।
सर्दी में गन्ना रस की चाय और सूप शुरू करने की योजना
गन्नावाला कैफे का बिजनिस केवल सीज़नल ना रह जाए, इसके लिए भी इनके पास योजनाएं हैं। संदीप बताते हैं कि वैसे तो गन्ने का रस बहुत पोषक होता है और पूरे साल इसे पीना चाहिए, लेकिन चूंकि सर्दियों में ठंडे गन्ने के रस की मांग कुछ कम हो जाती है इसलिए सर्दियों में इनकी गन्ने रस की चाय और सूप शुरू करने की योजना है।
पूरे देश से मिल रहे हैं फ्रेंचाइजी के ऑफर-
आज जब पूरे देश के लोग यह जानते हुए भी कि सॉफ्ट ड्रिंक अच्छी नहीं होती, उसी से अपनी प्यास बुझाते हैं, क्योंकि उनके पास कोई और विकल्प नहीं है, ऐसे में गन्नावाला कैफे के रूप में इन चारों दोस्तों ने एक नया, बेहतर और पोषक विकल्प प्रस्तुत किया है। जिसे लोग काफी पसंद कर रहे हैं। अब तक ठेलों और गंदगी से भरपूर जगहों पर प्रोसेस किया जाना वाला गन्ने का जूस लोग चाहकर भी पी नहीं पाते थे, वहीं गन्नावाला कैफे ने यह समस्या भी हल कर दी है। और शायद यहीं वजह है कि गन्नावाला कैफे की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है और पूरे देश से लोग इनकी फ्रेंचाइज़ी पाने के क्वेरीज़ रहे हैं।
पूरे देश में खोलेंगे गन्नावाला कैफे चेन
क्या इस बिजनिस से उन्हें प्रॉफिट हो जाता है, इस सवाल के जवाब में संदीप कहते हैं कि -लोग हमें इतना पसंद कर रहे हैं कि हम आसानी से रोज़ सैकड़ों गिलास गन्ने का रस बेच लेते हैं। दो महीने के अन्दर ही हमने दूसरा कैफे खोला है और अब हम पूरे देश में गन्नावाला कैफे की चेन खोलना चाहते हैं, बिना प्रॉफिट और लोगों की पसंद के यह कहां मुमकिन है?
(गन्नावाला कैफे की फ्रेंचाइज़ी संबंधी जानकारी के लिए देखें साइट- www.gannawala.in )
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