सुपरमार्केट के एन्ट्री गेट से लेकर बिलिंग काउन्टर तक, हर कदम पर फैला होता है ग्राहकों को फंसाने के लिए बुनी गईं मनोवैज्ञानिक तरकीबों का जाल जिससे आप ज्यादा से ज्यादा खरीददारी करने के लिए प्रेरित हो सकें... सुपरमार्केट के लुभावने ऑफर्स और कस्टमर फ्रेंडली माहौल के पीछे का कड़वा सच...






आपके साथ कई बार ऐसा होता होगा ना, जब आप कुछ निश्चित राशि लेकर, और घर के सामान की लिस्ट बनाकर विशाल, बिग बाज़ार, सस्ता बाज़ार, ईज़ी डे या रिलायंस जैसे सुपरमार्केट जाते हैं.., और जब वापस आते हैं तो बहुत सारे पैसे खर्च करके बहुत सारी चीज़े खरीद लाते हैं। आटा लेने जाते हैं, लेकिन साथ में चिप्स, बटर, चॉकलेट्स, मैगी और सूप खरीद लाते हैं। 200 रुपए का सामान लेने जाते हैं और 2000 रुपए का सामान लेकर आ जाते हैं.. और जब कोई आपसे पूछता है कि तुम तो केवल दालें लेने गए थे, इतना सारा सामान कैसे ले आए, तो आप कहते हैं कि यार ऑफर में सस्ता मिल गया आगे काम आ जाएगा...।

 यकीन जानिए ऐसा करने वाले आप अकेले नहीं, अगर आप अपने जानने वाले मित्रों से पूछेंगे तो वो भी यहीं कहेंगे कि उनके साथ भी कुछ ऐसा ही होता है वो खरीदने कुछ और जाते हैं और खरीद कुछ और लाते हैं या फिर जितना सोच कर जाते हैं उससे दोगुना-चौगुना खर्च करके आते हैं।
इसे हम इम्पल्सिव बाइंग या हिन्दी में कहें तो प्रेरित या जल्दबाज़ी की खरीददारी कहते हैं। यह वो खरीददारी है, जिसके बारे में आपने सोचा नहीं होता लेकिन सुपरमार्केट जाकर वहां के माहौल और ऑफर्स से प्रेरित होकर आप यह खरीददारी कर लेते हैं। भले ही बाद में आप खुद को कोसते रहते हैं कि यार इतने पैसे खर्च हो गए, क्या ज़रूरत थी यह सब सामान लाने की... और अधिकतर समय तो आप सस्ते के लालच में ऐसा सामान ले आते हैं, जिसका कोई इस्तमाल ही नहीं होता।

पर हम आपको बता दें, इसके लिए खुद को कोसने की जरूरत बिल्कुल नहीं है। क्योंकि इस तरह की खरीददारी में आपका नहीं उन सुपरमार्केट्स का दोष है जो ग्राहकों के मनोविज्ञान को ध्यान में रखकर बेहद बारीकी से ऐसी रणनीतियां बनाते हैं जो सीधे आपकी जेब पर असर करती हैं और आपको ज्यादा से ज्यादा पैसे खर्च करने के लिए यानि इम्पल्सिव बाइंग के लिए प्रेरित करती हैं। आपको पता भी नहीं चलता और आप बड़ी आसानी से ग्राहक की मानसिकता पर असर करने वाली इन चालबाज़ियों का शिकार बन जाते हैं और खुशी-खुशी व्यर्थ की चीज़े या ज्यादा सामान खरीद कर चले आते हैं।
मनोवैज्ञानिक सिंद्धातों पर आधारित यह तरकीबें पूरे सुपरमार्केट का हिस्सा होती हैं। जी हां, आपको जानकर हैरानी होगी कि सुपरमार्केट के चटख एक्सटीरियर से लेकर अंदर सजाए गए उत्पादों के काउंटर, ट्रॉली की उपलब्धता, पीले या लाल रंगों के ऑफर बैनर्स और यहां तक कि वहां का शांत और सुरम्य वातावरण सबकुछ इसी मार्केटिंग रणनीति का हिस्सा है जो आपको हर हाल में ज्यादा से ज्यादा पैसे खर्च करने के लिए उकसाता है। याद रखिए पार्किंग लॉट में घुसते ही यह माइंडगेम्स शुरू हो जाते हैं जो बिलिंग काउंटर तक चलते है। हर हिस्सा केवल और केवल इसलिए सज्ज होता है कि आपको पैसे खर्च करने के लिए प्रेरित कर सके।


ये होते हैं ग्राहकों की मानसिकता प्रभावित कर उन्हें खर्चा करने के लिए उकसाने वाले निर्दयी माइंडगेम्स


1-       एन्ट्री गेट यानि रिलेक्सिंग ज़ोन, खरीददारी के लिए जोश भरने वाला ज़ोन- जैसे ही आप सुपरमार्केट में प्रवेश करते हैं आपको ऊपर से ठंडी ताज़ी हवा के झोंके मिलते हैं। यह एयरी डीकम्प्रेशन ज़ोन होता है। प्रवेश द्वार के सामने ही ताज़े खाने के सामान, बेकरी प्रोडक्ट्स या फिर सुगंधित फूलों के काउंटर होते हैं। जो आपको रिलैक्स फील कराते हैं और आपमें सुपरमार्केट से खरीददारी करने के लिए जोश भर देते हैं। आप वहां ज्यादा से ज्यादा रुकना चाहते हैं। ध्यान रखिए आप अभी अभी खरीददारी करने घुसे हैं, आपके पास पैसे भी हैं और अब आपका मूड भी अच्छा हो गया... बस और क्या चाहिए हो गई खरीददारी की शुरूआत।

2-       स्टेटस सिंबल से जुड़ी है सुपरमार्केट की लोकेशन- भारत जैसे देश में जहां लोग सुपरमार्केट से खरीददारी करने को स्टेटस सिंबल मानकर चलते हैं, उनको ठगना और भी आसान होता है। भई कौन नहीं चाहेगा कि अपने पास वाली दुकान से एक एक चीज़ मांग कर लेने की बजाय और दुकानदार से एक एक चीज़ की मूल्य पूछने की बजाय आप को एयरकंडीशन्ड सुपरमार्केट में खुद सामान चुनने और देखने की आज़ादी मिले और फिर ट्रॉली में सामान लेकर पार्किंग तक जाने की तो बात ही और है। मॉल में जाकर खरीददारी करना स्टेटस सिंबल होता है जिसके कारण लोग अपने पड़ौस की सालों पुरानी दुकाने छोड़ कर सब्ज़ी तक सुपरमार्केट से खरीद कर लाते हैं।

3-       पार्किंग लॉट से शुरू हो जाती है मार्केटिंग- अगर आपने कभी ध्यान दिया हो तो जब किसी मॉल में सुपरमार्केट होता है तो अक्सर उसका एक एन्ट्री और एक्जिट गेट पार्किंग से ही होता है। और वहीं सामने सेल और ऑफर्स के चटख रंगों के बैनर लगे रहते हैं जिन्हें आप चाहकर भी नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते और वहीं से ये आपके मन में सुपरमार्केट में खरीददारी के लिए प्रेरणा जगाना शुरू कर देते हैं। कई सुपरमार्केट कुछ खास कीमत की खरीददारी पर पार्किंग मुफ्त करने का ऑफर देते हैं। यह भी ग्राहकों को सुपरमार्केट में आने के लिए प्रेरित करने का तरीका होता है। बस आप एक बार किसी तरह यहां पहुंच जाएं, फिर तो आपकी जेब ढीली होनी तय हैं।

4-       बाहरी दीवारें दूर से आकर्षित करने वाले शोख रंगों की और अंदर होता है सौम्य रंग का इंटीरियर- सुपरमार्केट के एक्सटीरियर और इंटीरियर दोनों ही ग्राहकों को लुभाने के हिसाब से तैयार किया जाते हैं। बाहर की तरफ हमेशा चटख या वॉर्म रंग जैसे- लाल, पीले या नीले रंग इस्तमाल किए जाते हैं जो दूर से दिखाई देते हैं, और लोगों को अपनी ओर खींचते हैं। जबकि अंदर के माहौल को रिलैक्सिंग और खुशनुमा बनाने के लिए सौम्य रंगों का इस्तेमाल किया जाता है जिससे लोग वहां ज्यादा रुकना चाहें। अंदर के काउंटर पर बैनर्स हमेशा पीले या चटख रंगों के होते हैं जिन पर ऑफर्स लिखे होते हैं और आप की नज़र ना चाहते हुए भी उन पर पड़ जाती है।  

5-       ट्रॉली का रोल बहुत अहम् है-  
   सुपरमार्केट में आपकी आसानी के लिए उपलब्ध ट्रॉली वास्तव में आपको ज्यादा शॉपिंग के लिए प्रेरणा देती है। आसानी से आप इसके साथ पूरे मार्केट में घूम सकते हैं, इसमें छोटे बच्चों के बैठने की भी सुविधा होती है, आप पर्स वगैरह भी रख सकते हैं और इसका बड़ा साइज़ आपको इसे पूरा भरने के लिए प्रेरित करता रहता है। आपके हाथ खाली हुए, आप हर चिंता से मुक्त हुए तो बस शॉपिंग करे जाएं।


6-       रोज़मर्रा की चीज़े और दुग्ध उत्पाद रखे जाते हैं आखिरी के काउंटर्स पर- आपके ज़रूरत की महत्वपूर्ण चीज़े, रोजमर्रा का सामान जिसे खरीदने के लिए ही अक्सर आप बिग बाज़ार या रिलायन्स या किसी अन्य सुपर मार्केट जाते हैं, वो दरअसल सबसे आखिरी के कोनों में रखी जाती हैं, ताकि उन तक पहुंचने से पहले आप पूरे सुपरमार्केट का चक्कर लगा सकें, आपकी नज़र में हर ऑफर आ जाए और आप दूसरी चीज़ों की खरीददारी भी कर लें।

7-       आई लेवल पर रखे सामानों का महत्व- सुपरमार्केट में अलग अलग काउंटर्स पर सामान रखने के लिए भी बाकायदा रणनीति बनाई जाती है। इसके लिए आई लेवल का बहुत महत्व होता है। आई लेवल यानि वो ऊंचाई जहां आपकी नज़र सबसे पहले जाती है। वो मसल याद है ना- जो दिखता है, वो बिकता है..। जी हां इसी तर्ज पर सुपरमार्केट आई लेवल को बाई लेवल मान कर चलते हैं। महंगे सामान और ब्रांडेड उत्पाद जिन्हें सुपरमार्केट ज्यादा से ज्यादा बेचना चाहते हैं इन आई लेवल की रैक्स पर रखे जाते हैं जैसे मैगी, जूस, मूस्ली पावर, नए और महंगे उत्पाद आदि। पोषक और अच्छे सामान लेकिन जो कदरन सस्ते हों, वो बीच की रैक्स पर होते हैं। बल्क में सामान सबसे ऊपर और सबसे ज्यादा मांग वाले, कम प्रॉफिट देने वाले और सस्ते सामान नीचे की रैक्स पर या कई बार अन्य ब्रांडेड सामानों के पीछे छिपे रहते हैं। भूलिए मत चलते चलते सबसे नीचे की रैक में से झुक कर सामान निकालना या फिर उनमें सामान ढूंढना अक्सर मुश्किल होता है और लोग अक्सर आई लेवल पर प्रदर्शित सामानों की शानदार पैकेजिंग या ऑफर से प्रभावित होकर उन्हें ही खरीद लाते हैं।


8-       बच्चों के आई लेवल का महत्व- विक्रेताओं के लिए बच्चों के आई लेवल का भी बहुत महत्व हैं। बच्चों के आई लेवल पर अक्सर चॉकलेट, बिस्किट्स, केक्स, खिलौने या अन्य सामान रखे जाते हैं जिन्हें देखकर बच्चे अपने माता-पिता से उन्हें खरीदने की ज़िद करते हैं और उन सामानों की आसानी से बिक्री हो जाती है।


9-       बैनर्स और सैम्पल स्टेशन- कई बार सुपरमार्केट्स में बड़े बैनर्स और सैम्पल स्टेशन लगे होते हैं जो लोगों को नई चीज़ आज़माने और फिर उन्हें खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं। एक बार उपभोक्ता की नज़र में एक काउंटर आ जाता है तो वो अपने आप ही अन्य काउंटर और उस पर लिखे ऑफर देखते हुए चलता है और अपने मनमाफिक चीज़ खरीदने की कोशिश करता है। कई बार तो अगर किसी चीज़ की ज़रूरत ना भी हो तो केवल ऑफर्स कारण उपभोक्ता अपने आप उस सामान की ज़रूरत बना लेता है और उसे खरीद लेता है। और अगर वो उस वक्त खरीद ना भी पाएं, तो मनोविज्ञान के तहत वो ऑफर आपके दिमाग में बैठ जाता है और आप उसे कई बार घर जाकर भी भूलते नहीं हैं और अगली बार उसे खरीदने आते हैं या किसी और को उसे खरीदने के लिए भी सलाह दे सकते हैं।


10-   एक्ज़िट गेट और बिलिंग काउंटर है सबसे प्रॉफिटेबल क्षेत्र-  जब आप सुपरमार्केट में घुसे अच्छा माहौल देखकर आपका मूड बन गया और आपने जी भर कर खरीददारी कर ली, लेकिन बिलिंग काउंटर पर जब आप थके हुए होते हैं तो आपको सामने दिखते हैं बहुत सी चॉकलेट्स, चिप्स, स्नैक्स आदि चीज़ों के ऑफर जो आपको लास्ट मिनिट की इम्पल्सिव खरीददारी के लिए प्रेरित करते हैं और आप सोचते हैं कि चलो यह भी खरीद लेते हैं। एक्जिट गेट या पेमेन्ट काउन्टर पर लगी लाइन वाला हिस्सा सबसे प्रॉफिटेबल हिस्सा माना जाता है। यहीं वो जगह है जहां चॉकलेट्स, चिप्स या अन्य कम शेल्फ लाइफ वाले आइटम्स डिस्प्ले में लगे रहते हैं। लाइन में खड़े जब आप बोर हो रहे होते हैं तो इन उत्पादों को देखते और खरीदते हैं। यह पूरी तरह जबरदस्ती की खरीददारी होती है। क्योंकि आप केवल पैसे देने के लिए लाइन में लगे हैं और जितना खरीदना था, खरीद चुके हैं, लेकिन फिर भी इन सामानों को खरीदते हैं।

11-   सुपरमार्केट का साइज़ और भीड़ है महत्वपूर्ण- सुपरमार्केट का साइज़ और उसमें उपस्थित भीड़ भी बहुत महत्व रखती है। ज्यादा भीड़ में लोग कम घूमते हैं और कम सामान खरीदते हैं जबकि कम भीड़ होने पर लोग ज्यादा खरीदारी करते हैं। इसलिए सुपरमार्केट का साइज़ बड़ा होना बहुत ज़रूरी है।

12- चालबाज़ियों से भरे सेल और लुभावने ऑफर्स-  कभी आपने सुपरमार्केट के ऑफर्स पर ध्यान दिया हैयहां अधिकतर सेल लगी होती है या फिर इनके ऑफर इस कुछ इस तरह से होते हैं-
-दो के साथ एक फ्री
-दो चीज़े खरीदने पर तीसरी चीज़ पर 50 फीसदी का डिस्काउन्ट
-2000 रुपए की खरीददारी पर एक किलो चीनी फ्री
-पांच हज़ार रुपए की खरीददारी पर 10 प्रतिशत का एक्सट्रा डिस्काउन्ट
-एक कुर्ता 300 रुपए में जबकि 2 कुर्ते केवल 500 रुपए में...
-एक्सचेंज ऑफर- पुराना लाएं और नए पर 20 फीसदी की छूट पाएं..




अगर आप ध्यान दें तो पाएंगे कि इन सब ऑफर्स पर आपको फायदा तब मिलता है जब आप एक निश्चित रकम खर्च करते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर आप केवल एक कुर्ता खरीदने आए हैं तो यहां यह ऑफर देखकर कि आप को दो कुर्ते खरीदने पर एक फ्री मिल जाएगा आप दो कुर्ते खरीद लेते हैं। एक किलो चीनी मुफ्त पाने के लालच में ज़रूरत ना होने पर भी 2000 रुपए की खरीददारी कर लेते हैं। सेल के चक्कर में या आगे लाभ लेने के चक्कर में वो सामान खरीद लेते हैं जिसकी आपको ज़रूरत ही नहीं। अगर आप ध्यान दें तो वास्तव में यह ऑफर्स आपको ज्यादा खरीदने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। बचत के चक्कर में आप इन लुभावने ऑफर्स के जाल में फंसकर दरअसल ज्यादा पैसे खर्च करके आ जाते हैं। भूलिए मत इन सुपरमार्केट की सफलता ज्यादा से ज्यादा सामान बेचने पर ही निर्भर है।

12-   संबंधित उत्पाद आस-पास रखे जाते हैं- ग्राहकों को इम्पल्सिव खरीददारी के लिए प्रेरित करने के लिए सुपरमार्केट में एक दूसरे से संबंधित उत्पादों को आस-पास ही रखा जाता है ताकि ग्राहक अगर एक उत्पाद ले तो दूसरा उत्पाद लेने के लिए भी प्रेरित हो जाए। जैसे दूध के पास ही ब्रेड और बटर भी होता है और ग्राहक- अरे यार यह ब्रेड- बटर भी ले लेते हैं, सोचकर वो सामान खरीदते हैं जो वो खरीदने के लिए नहीं आए होते।

13-   शॉपर कार्ड यानि कस्टमर के फिर से आने की गारंटी- एक्जिट काउंटर या बिलिंग काउंटर पर आती है, कस्टमर कार्ड की
बारी। जिसे आपको यह कहकर दिया जाता है कि इसका कोई मूल्य नहीं और इस पर आपको पेबैक प्वॉइन्ट्स या कुछ डिस्काउन्ट मिलेगा। लेकिन याद कीजिए यह डिस्काउन्ट या पेबैक प्वॉइन्ट्स आपको कभी भी उसी समय की खरीददारी पर नहीं मिलते बल्कि अगली बार की खरीददारी के लिए काम आने वाले होते हैं। यानि यह शॉपर कार्ड आपने एक बार ले लिया तो अगली बार ज्यादा डिस्काउन्ट और पेबैक प्वॉइन्ट के लोभ में आपका वहां आना तय है। और एक सबसे ज़रूरी बात जो शायद आप नहीं जानते कि इस शॉपर कार्ड के ज़रिए आपका सारा डेटा कि आपने क्या खरीदा, कितने पैसों का खरीदा समेत आपका मोबाइल नंबर तक कंपनी को उपलब्ध हो जाता है जिसका उपयोग वो आगे मार्केटिंग की रणनीतियां बनाने में करती हैं।


14-   एमआरपी का खेल-  आपने अक्सर सुपरमार्केट के ऑफर्स देखे होंगे कि सामान एमआरपी से कम दामों में उपलब्ध। तो हम आपको बता दें कि बहुत से सामान खासकर खाने-पीने की चीज़े जिनमें दूध या ब्रेड बटर जैसे कुछ उत्पादों को छोड़ दिया जाए, तो वो आपको आपके पड़ौस वाली दुकान पर भी एमआरपी से कम मूल्य में ही मिलते हैं। उत्पाद पर छपी एमआरपी यानि अधिकतम बिक्री मूल्य में सभी का प्रॉफिट जुड़ा होता है। यह किसी भी चीज़ का अधिकतम मूल्य होता है जिससे ज्यादा मूल्य में उस उत्पाद को नहीं बेचा जा सकता, ना कि असली मूल्य। सुपर मार्केट आपको एमआरपी से कम मूल्य में सामान बेचने का लालच देकर असल में तो लोकल दुकानदार से ज्यादा कीमत में सामान बेच देते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर आधा किलो सूजी का मूल्य पैकेट पर छपा है 32 रुपए तो लोकल दुकानदार वो बिना आपके कहे आपको 25 से 28 रुपए में दे देगा। जबकि सुपरमार्केट में बैनर पर लिखा होगा- सूजी का मूल्य 32 रुपए, सुपरमार्केट मूल्य 30 रुपए। और आप बड़ी खुशी-खुशी एमआरपी से दो रुपए कम में सूजी खरीद कर ले आते हैं और खुश होते हैं कि हमने तो सस्ती शॉपिंग कर ली। बल्कि सच तो यह है कि सुपरमार्केट की ऐसी तरकीबों के कारण आजकल अन्य खुदरा दुकानदारों ने भी एमआरपी पर ही चीज़े देनी शुरू कर दी हैं।

15-   कुछ सामानों पर पचास प्रतिशत की छूट लेकिन वैट अलग से- कई बार आपको इस तरह के ऑफर मिलते हैं कि कुछ विशेष सामानों, खासकर कपड़ों पर 50 फीसदी की छूट और नीचे बहुत छोटे अक्षरों में लिखा होता है- वैट अलग से लगेगा। आप तो 50 फीसदी की छूट का लाभ पाने के लिए वहां आ जाते हैं और बहुत सी चीज़े खरीद लेते हैं लेकिन जब बिलिंग होती है तब आपको पता चलता है कि उसमें वैट भी जोड़ा गया है जो एमआरपी पर लिया जाता है। यानि 400 रुपए की चीज़ आपको 50 फीसदी डिस्काउंट के बाद मिली 200 रुपए में, और आपने इतना ही मूल्य समझकर इसे खरीद लिया। लेकिन अब बिलिंग के समय इस पर लगता है वैट, यानि 400 रूपए पर 5 फीसदी... मतलब 20 रुपए। और अब वो चीज़ आपको पड़ती है 220 रुपए की। वैट का यह खेल जब तक आपको समझ में आता है तब तक अक्सर आप बिलिंग काउंटर पर होते हैं और लौटने या सामान वापस रखने की गुंजाइश बहुत कम होती है और आप ज्यादा पैसे अदा करके वो सामान ले लेते हैं। ये कुछ छिपी हुई शर्तें होती हैं जो बिग बाज़ार के लुभावने ऑफर्स के आगे आपको दिखती नहीं।


16-  

जंक सामान पर मिलने वाले वैल्यू प्वॉइन्ट्स का सच- और अब बात करते हैं बिग बाज़ार की एक बहुत बड़ी स्कीम जंक बेचो और सामान खरीदो स्कीम की। जिसे लेकर लोग बेहद उत्साहित रहते हैं। पास के कबाड़ी की दुकान से कहीं ज्यादा मूल्य पर बिग बाज़ार में कबाड़ बिकने का लोभ ऐसा होता है कि लोग ढूंढ ढूंढ कर घर से कबाड़ इकट्ठा करते हैं और उसे बेचकर बिग बाज़ार से वैल्यू प्वॉइन्ट्सके कूपन लेकर आते हैं। यह कूपन इस तरह से होते हैं कि कूपन के मूल्य से चार गुना खरीददारी करने पर आपको छूट मिलती है और यह छूट कुछ सामानों पर ही मिलती है। पर अब आप ज़रा देखें, आपने रद्दी वाले को सामान बेचा, आपको तुरंत पैसे मिल गए और आप उनको खर्च करने के लिए आज़ाद हो। लेकिन आपने अपनी कबाड़ बिग बाज़ार में बेचा, आपको पैसे नहीं मिले बल्कि मिले वैल्यू प्वॉइंट्स के कूपन। अप इन कूपन का लाभ भी आपको तभी मिलेगा जब आप चार गुना पैसे और बिग बाज़ार में खर्च करोगे। यानि एक तो आपकी दोबारा बिग बाज़ार में आने की गारंटी हो गई दूसरे यह भी पक्का हो गया कि आपको कूपन का लाभ पाना है तो और ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे.. अब ज़रा सोचिए कबाड़ से असली फायदा कौन कमा रहा है..?  

तो अगली बार जब आप सुपरमार्केट जाएं तो इन चीज़ों को खुद नोटिस करें। अपने मन को काबू में रखें और अपनी जेब ढीली होने से खुद को बचाएं।




Comments

Popular posts from this blog

सृष्टि से पहले सत् नहीं था, असत् भी नहीं, छिपा था क्या, कहां किसने ढका था....: ऋगवेद के सूक्तों का हिन्दी अनुवाद है यह अमर गीत

क्या आपने बन्ना-बन्नी, लांगुरिया और खेल के गीतों का मज़ा लिया है. लेडीज़ संगीत का मतलब केवल डीजे पर डांस करना नहीं है..

भुवाल रियासत के सन्यासी राजा की कहानी, जो मौत के 12 साल बाद फिर लौट आयाः भारत के इतिहास में जड़ा अद्भुत, अनोखा और रहस्यमयी सच