पर्यटकों के लिए बहुत मुश्किल भरा है मनाली का सफर
-जाम से जूझने के लिए तैयार रहिए
-जेब में अतिरिक्त पैसे लेकर जाईए
-बहुत गंदगी है इन पहाड़ो मे
-टॉयलेट और पीने का पानी... भूल जाईए...
जी हां, यहां के अधिकारियों ने पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए रोहतांग दर्रे तक जाने वाले वाहनों की संख्या तो बढ़ा दी है, ग्रीन टैक्स और कंजेशन जैसे टैक्स जमा करने के लिए उचित कदम तो उठा लिए हैं लेकिन पर्यटकों को सुविधाएं देने के लिए एक भी मजबूत कदम नहीं उठाया गया है। ये परेशानियां हमने खुद जून माह में वहां की यात्रा के दौरान देखी और महसूस की हैं। अगर आप भी वहां जाने वाले हैं तो हम आपको बताते हैं आपको क्या-क्या परेशानियां झेलनी पड़ सकती हैं-
ट्रैफिक, ट्रैफिक ट्रैफिक- जाम में होंगे 4 से 7 घंटे होंगे बरबाद
जाम की समस्या पूरे मनाली में ही बहुत ज्यादा है। माल रोड के आसपास के इलाके जहां अधिकतर होटेल्स हैं वहां तो काफी जाम लगता है। पीक सीजन में छोटी जगह होने के बावजूद आपको किसी भी जगह घूमने पहुंचने के लिए अमूमन 2 से ढाई घंटे लग जाते हैं। यह तो रहा मनाली शहर का हाल.., लेकिन ट्रैफिक की समस्या से सबसे ज्यादा तब दो चार होना पड़ता है जब आप मनाली से रोहतांग जाने के लिए निकलते हैं। यहां से रोहतांग दर्रा 51 किलोमीटर है। जहां ज्यादा से ज्यादा एक घंटे में पहुंचा जा सकता है, पर ऐसा शायद सर्दियों में ही संभव होता होगा। मई-जून के पीक सीजन में तो हाल ऐसा है कि मनाली से रोहतांग पास तक 51 किलोमीटर का सफर तय करने में अगर आपका भाग्य अच्छा है तो 4 से 5 घंटे लग जाते हैं और अच्छा नहीं है तब तो 7-8 घंटे भी मामूली बात है... और ऐसा तब होता है जब यहां बाकायदा कंजेशन टैक्स लिया जाता है।
ट्रैफिक रेगुलेशन की कोई व्यवस्था नहीं
टेढ़े-मेढ़े संकरे पहाड़ी हाईवे पर चढ़ते समय आपको रास्ते में कहीं भी कोई ट्रैफिक पुलिसमेन ट्रैफिक को रेगुलेट कराता हुआ नहीं मिलेगा। गुलाबा तक बर्फ नहीं मिलती लेकिन गुलाबा के बाद जगह-जगह बर्फ मिलनी शुरू हो जाती हैं। तो बहुत से टैक्सी वाले जाम और ट्रैफिक के कारण रास्ते में कहीं भी जहां थोड़ी बहुत बर्फ हो, गाड़ी लगाकर खड़े हो जाते हैं, जिसके कारण वहां पहले से ही संकरा रास्ता और संकरा हो जाता है और ट्रैफिक जाम हो जाता है। इसके अलावा जहां यात्री रुके हैं वहां भी कई जगह चने भटूरे के खोमचे वाले, अस्थाई बिस्कुट चिप्स, पानी आदि के विक्रेता सड़क के किनारे खड़े रहते हैं और उनसे सामान खरीदने की भीड़ के कारण भी अक्सर ट्रैफिक जाम हो जाता है और यह एक के बाद एक बढ़ता हुआ नीचे तक पहुंच जाता है। इस समय पूरे ट्रैफिक को कंट्रोल करने के लिए यहां कोई इंतज़ाम नहीं होता और ना ही इस तरह कहीं भी गाड़ी रोककर खड़े हो जाने वाले लोगों के खिलाफ कोई कार्यवाही होती है जिसके कारण ट्रैफिक जाम हमेशा ही यहां की बड़ी समस्या रहता है। अगर आप पीक सीजन में यहां पहुंचे हैं तो बेहतर है आप ही अपनी गाड़ी से उतर कर ट्रैफिक नियंत्रित करवा लें, तो शायद आप समय पर पहुंच जाए, वरना तो खुदा मालिक है। क्योंकि यह पहाड़ी संकरी सड़क है। एक बार ट्रेफिक जाम में फंसे तो ना आप आगे जा सकते हैं और ना ही पीछे। आपको ट्रैफिक क्लीयर होने का इंतज़ार करना पड़ता है।
गुलाबा टैक्स बैरियर पर तीन से चार घंटे का इंतज़ार- रास्ते में गुलाबा टैक्स बैरियर पड़ता है जहां आपसे कंजेशन टैक्स मैनुअली वसूला जाता है। इस टैक्स बैरियर पर कम से कम आपको 3 से 4 घंटे इंतज़ार करना पड़ता है।
कहीं नहीं है पार्किंग व्यवस्था
रोहतांग जाते समय कहीं कोई पार्किंग व्यवस्था नहीं हैं। मरही और ब्यास में भी पार्किंग सुविधा नहीं है। लोग सड़कों के किनारे अपनी गाड़ियां खड़ी करते हैं जिसके कारण अक्सर ट्रैफिक जाम हो जाता है। जब अक्सर रोहतांग पास के आस-पास बर्फ साफ नहीं हुई होती तो यह लोग ब्यास नाले तक ही जाने की अनुमति देते हैं। वहां से रोहतांग दर्रा 16 किमी रह जाता है। आगे मरही पर भी पार्किंग बनाने की बात है लेकिन दरअसल पार्किंग कहीं नहीं है।
इसके अलावा जो अन्य समस्याएं यहां पर्यटकों को झेलनी पड़ती हैं वो हैं-
· टॉयलेट्स, पीने का पानी और डस्टबिन जैसी बेसिक सुविधाएं नदारद
· स्नोसूट की महंगी कीमत (ग्लब्स सबसे ज्यादा ज़रूरी)
· कोई वॉर्निंग साइन नहीं
· गंदगी, बेहद गंदगी, काली बर्फ
· पहाड़ पर बहुत ज्यादा भीड़-भाड़
· महंगा खाना (50 रुपए की मैगी, 40 रुपए की पानी की बोतल)
सरकारी रिकॉर्ड्स के मुताबिक गर्मियों में यहां हर दिन 25 से 30 हज़ार पर्यटक आते हैं। सालाना ये तादाद 40 लाख है। पर्यटकों से मिलने वाले टैक्स से अच्छी खासी आय होने के बावजूद प्रशासन ने उनकी बेहतरी की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है।
दिल्ली से पहुंचे एक ड्राइवर रुष्ट स्वर में कहते हैं कि हमेशा ही यहां यह ड्रामा चलता रहता है कभी यह लोग बाहर के वाहनों को रोहतांग पास जाने के लिए परमीशन देनी बंद कर देते हैं औक कभी परमीशन मिलती है। जब परमीशन बंद हो जाती है तो हमें यहीं की प्राइवेट सूमो या टैक्सी अरेंज करके उसमें अपनी सवारियों को ऊपर भेजना पड़ता है जिसमें कई बार ये लोग मनमाना किराया वसूलते हैं। एक अन्य एक लोकल टैक्सी ड्राइवर ने नाम ना बताने की शर्त पर हमें और बहुत सी बातें बताई। उसने हमें बताया कि पीक सीज़न में ऊपर 8-9 हज़ार गाड़ियां तक चली जाती हैं। यहां गुलाबा और मरही पर जहां टैक्स बैरियर लगे हैं वहां कहीं भी सीसीटीवी कैमरा वगैरह नहीं लगाए गए हैं। बस एक कच्ची पर्ची काट कर दे दी जाती है। यह सब खेल अधिकारियों की जानकारी में और उनकी मर्जी से हो रहा है। इसके अलावा टैक्स का करोड़ो रुपया बैंक में जमा है लेकिन उस टैक्स से अभी तक मनाली रोहतांग हाईवे को और बेहतर बनाने और वहां पर्यटकों को सुविधा देने के लिए इस्तेमाल नहीं किया गया है।
मनाली में जाते समय देने पड़ते हैं यह टैक्स- मनाली में घुसते ही क्लात बैरियर के पास ग्रीन टैक्स लिया जाता है। जो हर प्राइवेट गाड़ी, कमर्शियल गाड़ी से लिया जाता है। छोटी कारों के लिए यह टैक्स 200 रुपए है, बड़ी गाड़ियों जैसे इनोवा और ट्रैवलर आदि के लिए 300 रुपए और बसों के लिए 500 रुपए।
वशिष्ठ बैरियर पर 100 रुपए की डोनेशन स्लिप
अब अगर आप रोहतांग पास के लिए निकलते हैं तो गुलाबा बैरियर से पहले वशिष्ठ बैरियर पर ‘हिमाचल टैक्सी ऑपरेटर यूनियन’ का बैरियर लगा मिलता है जो हर कमर्शियल वाहन की 100 रुपए की पर्ची काटते हैं। यह गुलाबी रंग की पर्ची है जिसपर अक्सर डोनेशन स्लिप लिखा रहता है। चंडीगढ़ से आए एक ट्रैवलर वाले ने हमें बताया कि पता नहीं यह किस तरह का टैक्स है। इसके बारे में कहीं कोई जानकारी नहीं है लेकिन फिर भी यहां के यूनियन वाले इस तरह की धांधली करके टैक्स लेते हैं। इसके बारे में कई बार अधिकारियों से शिकायत करने के बावजूद कोई कार्यवाई नहीं होती।
· हिडिम्बा मंदिर और वशिष्ठ मंदिर पर सरकारी पार्किंग है लेकिन वो इतनी छोटी है कि वहां बड़ी गाड़ियां नहीं आती, इसलिए मजबूरन बड़ी गाड़ियों को प्राइवेट पार्किंग में गाड़ी पार्क करनी पड़ती है जिसकी फीस 70 रुपए है।
पर्यटकों की जुबानी रोहतांग पास का सफर
बेसिक सुविधाएं तक नहीं
यह सोचकर आए थे कि रोहतांग दर्रे की प्राकृतिक खूबसूरती और बर्फीली हवाओं का आनंद लेंगे, नेचर की सुंदरता देखने को मिलेगी, लेकिन मनाली रोहतांग हाईवे पर आए तो हमें मिला केवल जाम, जाम और जाम... किसी तरह ब्यास नाले तक पहुंचे तो वहां की हालत भी इतनी खराब...। काली बर्फ हैं यहां...। इतनी गंदगी तो कहीं और नहीं देखी। ...सबसे बुरी बात तो यह हैं कि यह पहले पहाड़ मैंने देखे हैं जो इतने प्रसिद्ध है, हर साल लाखों पर्यटक यहां आते हैं लेकिन फिर भी प्रशासन ने पेयजल, डस्टबिन और टॉयलेट्स जैसी बेसिक सुविधाएं तक नहीं मुहैया कराई हैं...। इतनी ऊंचाई पर आकर एक टॉयलेट तक नहीं, लोग गाड़ियों के पीछे टॉयलेट जाने को मजबूर हैं... और फिर जब पर्यटक यहां से चले जाएंगे तो सरकार हम पर्यटकों पर इल्ज़ाम लगा देगी कि यहां पर गंदगी तो बाहर से आए पर्यटक करके जाते हैं..। अरे भई कम से कम बेसिक सुविधाएं तो दो...। जब वहीं नहीं दोगे तो बेचारा पर्यटक क्या करेगा।
–बृजेश दहिया, 10 जून 2014 को रोहतक, हरियाणा से रोहतांग पास घूमने पहुंचे एक पर्यटक
–बृजेश दहिया, 10 जून 2014 को रोहतक, हरियाणा से रोहतांग पास घूमने पहुंचे एक पर्यटक
सरकार कन्जेशन टैक्स तो ले रही है, लेकिन जाम से निजात दिलाने के लिए कोई इंतज़ाम नहीं
मनाली अपने आपमें बहुत खूबसूरत है। इतनी उम्मीद से गर्मियों की छुट्टियों में यहां आए थे, लेकिन यहां के प्रशासन से मुझे सख्त शिकायत है जिसने यहां के हाल सुधारने के लिए कोई भी काम नहीं किया है। हम लोग 6 बजे के होटल से निकले थे। 7 बजे तक नेहरुकुंड पहुंच गए थे, उसके बाद भी ब्यास नाला आते-आते सवा दो बज गए। मतलब लगभग 6-7 घंटे हमारे जाम में ही खराब हो गए। यहां के हालात इतने खराब है... जब यहां के प्रशासन को मालूम है कि यह पीक सीजन है, पर्यटक आते हैं तो इन्हें कम से कम ऐसी व्यवस्था तो करनी चाहिए कि जाम ना लगे। अरे भाई आप कन्जेशन टेक्स भी ले रहे हो और लोगों को कन्जेशन से छुटकारा दिलाने के लिए ट्रेफिक पुलिसवाले तक आपने डेप्यूट नहीं कर रखे...। मतलब अगर पर्यटक यहां आए तो जाम में ही उसका पूरा दिन बर्बाद हो जाए। अगर पहाड़ पर ज्यादा जगह नहीं है तो आप क्यों ज्यादा लोगों को वहां जाने के लिए परमिट करते हो। आप सबके लिए टोकन इश्यू करो कि 200 से ज्यादा लोग नहीं जाएंगे, या 400 से ज्यादा लोग नहीं जाएंगे। लेकिन ऐसा हैल जैसा हाल तो मत करो कि इंसान जाम में अपने 6-7 घंटे खराब कर दे। मैं तो किसी को नहीं बोलूंगी कि वो मनाली जाए... अगर यहां आना है तो पीक सीजन में तो बिल्कुल ना आओ। बेहतर है सर्दियों में आओ तब शायद हालात ठीक होते होंगे।
समीक्षा अग्रवाल, 10 जून 2014 को रोहतांग दर्रा घूमने पहुंची लखनऊ की पर्यटक
सब तरफ गंदगी का आलम और सुविधाएं भी नहीं..
ऊपर के हाल भी बेहाल हैं यहां के तो। कहीं कोई पार्किंग व्यवस्था नहीं। सब जगह गंदगी इतनी है..., बर्फ एक दूसरे पर फेंकने का मन भी नहीं कर रहा। बर्फ तो सफेद होती है, इतनी काली और गंदी बर्फ तो मैंने यहीं देखी है। यहां खाना भी इतना महंगा है। 10 रुपए वाली मैगी 50 रुपए में बिक रही है। पानी की बोतल 40 रुपए में। भैया हिल स्टेशन आए हैं या किसी फाइव स्टार होटल में डिनर करने आए है...? टॉयलेट्स हैं नहीं...। ऊपर आने जाने और रुकने में इंसान को 5-6 घंटे लगेंगे तो वो क्या एक बार टॉयलेट भी नहीं जाएगा। यहां तो पूरे रास्ते में, पूरे मनाली रोहतांग हाईवे पर कहीं एक भी टॉयलेट नहीं है। अव्यवस्था इतनी कि संकरी रोड होने के बावजूद जिसका जहां मन है गाड़ी पार्क करे दे रहा है, तो जाम तो लगेगा ही। यह तो यहां के प्रशासन की गलती है। भई यहां पुलिसवालों का इंतज़ाम करना चाहिए जो ट्रैफिक व्यवस्था ठीक कराएं। सबकुछ भगवान भरोसे चल रहा है। हिमाचल सरकार को केवल टूरिस्ट्स के पैसों से मतलब है, बाकी सुविधाओं के नाम पर तो ठेंगा दिखा दिया है सरकार ने।
-रोहिताश चन्द्र गुप्ता, 10 जून 2014 को दिल्ली से रोहतांग दर्रा घूमने पहुंचे एक पर्यटक
अधिकारियों की भी सुनिए-
राकेश कंवर, डेप्यूटी कमिश्नर, कुल्लू
हमें अभी तक पार्किंग बनाने के लिए ज़मीन ट्रांसफर नही की गई है। हमें बस उसी का इंतज़ार है। एक बार लैंड ट्रांसफर हो जाए उसके बाद हम रोहतांग हाईवे पर गुलाबा के पास पार्किंग बनाएंगे। जहां तक ट्रैफिक की बात है वो एक परेशानी है इसमें कोई शक नहीं है। लेकिन हम उसके लिए भी कदम उठाने की कोशिश कर रहे हैं। हम कोठी से रोहतांग पास के बीच लगभग 70 होमगार्ड्स और 3 राइडर्स को तैनात करने की सोच रहे हैं जो ट्रैफिक कंट्रोल करेंगे। इसके अलावा हमने ईकोफ्रैंडली मोबाईल टॉयलेट्स का इंतज़ाम करने के लिए भी कदम उठा लिए हैं। पीने का पानी वगैरह भी जल्दी ही वहां शुरू हो जाएगा। जहां तक ज्यादा वाहन ऊपर जाने की बात है तो सरकार ने कोई तय नंबर नहीं दिया कि इतने लोग वहां जा सकते हैं लेकिन हम चेक रखते हैं कि ज्यादा लोग वहां ना जाए। आजकल लगभग 1300-1300 वाहन के दो बैचेज़ दिन में दो बार रोहतांग पास तक भेजे जा रहे हैं ताकि भीड़-भाड़ ज्यादा ना हो।
अश्विनी कुमार, पर्यटन अधिकारी
एक बार लैंड ट्रांसफर हो जाए उसके बाद हम मणि और गुलाबा में पार्किंग बनाएंगे। 95 बीघा ज़मीन ट्रांसफर होनी है। हमने टॉयलेट्स भी खरीद कर रख लिए हैं। लेकिन बस एक बार ग्रीन ट्राइब्यूनल का फैसला आ जाए, उसके बाद ही हम कुछ कर पाएंगे। उसके बाद ही हम लोगों को मार्केट भी अलॉट करेंगे ताकि खाने-पीने की चीज़ो वगैरह के दाम सही रहें और पर्यटकों से ज्यादा पैसे ना लिए जाएं और साथ ही उनके साथ दुर्वव्यहार भी ना हो। रोहतांग तक कभी भी दो-ढाई हज़ार से ज्यादा वाहन नहीं जाते और उनमें से आधे वाहन तो वो होते हैं जो लोकल लोगों के होते हैं या जिन्हें आगे लाहुल-स्पीति या लेह- लद्दाख तक जाना होता है। और जहां तक ब्यास नाले पर कोई वॉर्निंग साइन नहीं लगाने की बात है आजतक वहां कोई हादसा पेश नहीं आया। उस नाले का वॉल्यूम ही इतना नहीं है कि वहां बर्फ पिघलने का खतरा हो इसलिए वॉर्निंग साइन लगाने की कोई ज़रूरत नहीं है।
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