खुशरंग-ए-फितरत



रंग-ए-ईमानदारी
वक्त- अप्रेल 2004 का कोई दिन, सुबह लगभग नौ बजे का वक्त, नोएडा सेक्टर 8

खट खट (दरवाज़ा खुला)
 नमस्ते अंकल जी,
नमस्ते बेटा, मैंने पहचाना नहीं,
पहली लड़की- अंकल यह आपका बल्ब है, आपके घर के बाहर लगा हुआ था... हम यहीं पास में किराए पर रहते हैं।
दूसरी लड़की-  अंकल एक्चुली कल रात को ग्यारह बजे के लगभग जब लाइट फ्लक्चुएट कर रही थी ना, तब हमारे कमरे का बल्ब फ्यूज़ हो गया था। दूसरा बल्ब था नहीं हमारे पास। हम नीचे देखने भी आए थे कि कोई दुकान खुली हो तो..। लेकिन कोई दुकान नहीं खुली थी, तो आपके घर के बाहर लगा बल्ब दिख गया और हम इसे उतार कर ले गए।

पहली लड़़की- अब हमारा काम हो गया अंकल, हमने नया बल्ब खरीद लिया है, इसलिए आपका बल्ब वापस करने आए हैं।
(और बल्ब वापिस करके स्वाभिमान से भरी दोनों लड़कियां अपने कमरे को लौट चली, पीछे अंकल को भौचक छोड़..)
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रंग-ए-उसूल
वक्त- फरवरी 2002 का कोई दिन, सेंट्रल जेल, भोपाल से होकर अखबार के दफ्तर में पहुंचना

सर- तुमने जेल की लेडी वॉर्डन से बातों-बातों में कुछ पूछा इस बारे में कि जेल में क्या होता है?
लड़की- जी सर, वो लड़की नई नई वॉर्डन बनी है, उसे अभी ज्यादा कुछ पता नहीं है, लेकिन फिर भी उससे मेरी दोस्ती हो गई और उसने मुझे काफी सारी बातें बताई जो कि जेल में होती हैं।

सर- तो उस पर रिपोर्ट तैयार करों।
लड़की- रिपोर्ट, मतलब सर?
सर- अरे उस लड़की ने जो बातें बताईं, उन सबको लिखकर एक बढ़िया रिपोर्ट तैयार करों, कल के पेपर में छापेंगे।
लड़की- नहीं सर, उसने मुझे दोस्त समझकर सारी बातें बताईं हैं, मुझे अपने घर ले जाकर चाय-नाश्ता कराया,  मैं उसे धोखा नहीं दे सकती।
सर- (मुस्कुराते हुए), अरे पागल लड़की, यह धोखा नहीं है, अखबार में अनऑफिशियल सोर्सेज से रिपोर्टिंग ऐसे ही की जाती है..।
लड़की- की जाती होगी सर, मैं ऐसा नहीं करूंगी। जेलर ने मुझे उससे मिलवाया था, हमारे पेपर का नाम भी उसे मालूम है, अब अगर हमारे पेपर में वो सारी बातें छपेंगी तो जेलर को समझ आ जाएगा कि ......... ने ही बताई होंगी। फिर बेकार में उसके लिए परेशानी नहीं होगी,,? और फिर मेरी और उसकी दोस्ती खराब हो जाएगी, मैं ऐसा नहीं कर सकती।
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रंग-ए-बेफिक्री

वक्त- साल 1996 के किसी महीने का कोई दिन, स्वामीबाग, आगरा का गेट

दो लड़कियों की गेट से निकलती साइकिलें, अचानक से एक लड़की की साइकिल फिसली और वो साइकिल समेत गिर पड़ी और फिर उससे टकराकर दूसरी भी गिर पड़ी...

साइकिलें सड़क पर पड़ी छोड़ दोनों लड़कियां उठ कर ज़ोर ज़ोर से हंसने लगी, पेट पकड़कर...वहीं साइकिलों के पास पलोथी मार कर बैठ गईं और हंसने लगी...., अपने गिरने पर खुद पर ही हंस रही थी दोनों।

गेट का चौकीदार आया, और एक लड़की के कंधे को हिलाते हुए बोला... बेटा, साइकिल उठा लो और साइड में बैठ कर हंस लो, तुम लोगों की वजह से ट्रेफिक रुक रहा है...।

दोनों लड़कियों ने घूम कर देखा... गेट के दोनों तरफ स्कूटर, साइकिल और मोपेड पर लोग रुके हुए थे और बीच में पड़ी साइकिलों और उनके पास ज़मीन में बैठी हंसती हुई लड़कियों को घूर रहे थे...।

लड़कियां सॉरी- सॉरी बोलती हुई उठी, साइकिलें उठाई, उन्हें लेकर साइड में आईं, स्टैंड पर लगाया और फिर... दोनों का हंसना फिर चालू....।
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रंग-ए- दोस्ती


वक्त- साल 1995 के किसी महीने का कोई दिन, दोपहर का समय, कमलानगर, आगरा

साइकिलों पर जाती तीन सहेलियां, उनमें से एक टॉम ब्यॉय

टॉम ब्यॉय लड़की सामने से आते सिलेंडर वाले से टकराई.., दोनों की साइकिलें गिर पड़ी,
गुस्से में भन्नाते सिलेंडर वाले ने टॉम ब्यॉय लड़की को कॉलर पकड़कर उठाया और बोला, साले साइकिल चलानी नहीं आती तो चलाता क्यों हैं...?
टॉम ब्यॉय लड़की ने कॉलर पर से सिलेंडर वाले के हाथ हटाए और बोली, भाई साहब आपको लड़कियों से बात करने की तमीज़ नहीं है....?

सिलेंडर वाले को सांप सूंघ गया, हैरानी से टॉम ब्यॉय लड़की को देखते हुए पीछे हुआ, अपनी साइकिल छोड़ उसकी साइकिल उठाई और उसे पकड़ाते हुए बोला,  साइकिल देख के चलाया करो बहनजी...।

टॉम ब्यॉय लड़की ने सिलेंडर वाले को घूरते हुए उससे साइकिल लीं और अपनी दोनों सहेलियों के पास पहुंची जो अभी भी दूर खड़ी हंस रहीं थीं...। सिलेंडर वाला अभी भी उस लड़की को हैरानी से देख रहा था....।

पास पहुंचकर टॉम ब्यॉय लड़की ने अपनी हंसती हुई सहेलियों से पूछा.., तुम लोगों को शरम नहीं आती, तुम्हारी दोस्त वहां गिर गई, एक आदमी उससे बदतमीज़ी कर रहा है, और तुम यहां खड़े होकर हंस रही हो..।

एक सहेली का जवाब- क्यों तुझे ही बड़ा लड़का बनने का शौक है ना, तुझे हमारी ज़रूरत कहां से पड़ गई।
दूसरी सहेली- और बेटा वैसे तो बड़ा लड़का जैसा बन कर घूमती है, आज लड़ाई हुई तो अपना लड़की होना याद आ गया...।
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