"जनरल के नहीं होते तो आज सीआरपीएफ के जवान होते.." आरक्षण के अवसर और ऊंची जाति में पैदा होने की पीड़ा


यह आगरा के रोहित तिवारी हैं, उम्र 21 साल, जाति से पंडित। आपको हैरानी होगी लेकिन ऊंची जाति में पैदा होने का दंश रोहित के चेहरे और आवाज़ में साफ पढ़ा जा सकता है। यूं तो इनका आगरा में पेठे का हब माने जाने वाले नूरी गेट में अपना पुश्तैनी पेठे का कारखाना हैं, लेकिन आज के मार्केटिंग और दिखावे के दौर का आलम यह है कि पेठा क्वालिटी से नहीं ब्रांड से बिकता है जिसके चलते अपना खुद का बढ़िया पेठा बनाने के बावजूद रोहित के पेठों को अच्छा दाम नहीं मिलता। यही वजह है कि बड़ा भाई एमबीए करके नौकरी कर रहा है और रोहित सरकारी नौकरी नहीं मिलने की वजह से अपनी फैक्ट्री को चलाने के लिए मजबूर हैं।
जब हमने इस मजबूरी का कारण पूछा तो रोहित ने बोला "नाम में जनरल जुड़ा था, जनरल के नहीं होते तो आज सीआरपीएफ के जवान होते।" रोहित के स्वर में अपनी जनरल कैटेगरी के लिए इतनी हिकारत थी कि कोई भी हैरान रह जाता। कारण- उसका सराकारी नौकरी करने का बहुत मन था। सीआरपीएफ के लिए आवेदन किया था, जहां फिज़िकल फिटनेस टेस्ट, मेडिकल टेस्ट सब पास कर लिया। अन्त में एक्ज़ाम हुआ जिसमें जनरल कैटेगरी की कटऑफ 83.8 परसेंट थी जबकि रोहित के केवल 83.3 परसेंट आए थे। 0.5 परसेंट कम होने की वजह से रोहित को नहीं लिया गया और आरक्षित वर्ग से 75 फीसदी नंबर लाने वालों को दाखिला दे दिया गया। रोहित सीआरपीएफ जवान नहीं बन सका.... जी हां, आरक्षरण का एक पहलू यह भी है।

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