अगर कन्हैया को ज़मानत मिल जाने से कुछ लोगों को जीत का अहसास हो रहा है तो ज़रा पढ़ लीजिए क्या कहता है जज प्रतिभा रानी का बेल ऑर्डर ..


  "देश विरोधी नारे लगाना नहीं है फ्रीडम ऑफ स्पीच"
, "यह एक तरह का इन्फेक्शन है जिसे महामारी बनने से पहले निंयत्रित किया जाना ज़रूरी है"
 "अगर इन्फेक्शन फैलकर गैंगरीन बन जाए तो उस भाग को काटना ही एकमात्र इलाज बचता है "




कन्हैया के समर्थन में उतरे जेएनयू छात्र-छात्राएं, अध्यापक, राजनीतिक दल और उन्हें मासूम बताने वाले कुछ चैनल्स भले ही यह सोच कर खुश हो लें कि कन्हैया को ज़मानत मिल गई है और यह उनकी जीत है, लेकिन सच्चाई यह है कि हाईकोर्ट जज प्रतिभा रानी द्वारा कन्हैया को दिए गए बेल ऑर्डर में बहुत सी बातें ऐसी हैं जो स्पष्ट करती हैं कि कन्हैया को क्लीन चिट नहीं दी गई है। 

ऑर्डर में साफ तौर पर लिखा गया है कि देशविरोधी नारे लगाने को फ्रीडम ऑफ स्पीच के तौर पर नहीं देखा जा सकता। जज ने इस तरह के माहौल के लिए जेएनयू टीचर्स को भी जिम्मेदार माना है और उन्हें यूनिवर्सिटी में अच्छा माहौल बनाने की ताकीद की है। जज ने उन सभी अन्य छात्र-छात्राओं को भी अपना आचरण सुधारने की सलाह दी है जिनके नारे लगाते और अफज़ल गुरू के पोस्टर पकड़े फोटोग्राफ्स रिकॉर्ड पर हैं। यह ऑर्डर उन लोगों के लिए भी एक जवाब है जो जेएनयू में लगाए गए नारों को फ्रीडम ऑफ स्पीच कहकर उनकी और उन्हें लगाने वालों की वकालत कर रहे हैं। जज ने बुद्धिजीवी समझी जाने वाली जेएनयू फैकल्टी को भी हिदायत दी है। 

बेल ऑर्डर के मुख्य भाग आप यहां पढ़ सकते हैं- 

41- इस तरह के लोग यूनिवर्सिटी कैम्पस के सुविधाजनक वातावरण में इस तरह के नारे लगाने की स्वतंत्रता का मज़ा लेते हैं  लेकिन उन्हें यह अहसास नहीं है कि वो केवल इसलिए सुरक्षित वातावरण में हैं क्योंकि हमारी सेनाएं विश्व में सबसे ज्यादा ऊंचाई पर स्थित उस युद्धक्षेत्र में तैनात हैं जहां पर ऑक्सीजन की भी इतनी ज़्यादा कमी है कि जो लोग अफज़ल गुरु और मकबूल भट्ट के पोस्टर्स को अपने सीने से लगाकर, उनके शहीद होने की बात करते हुए राष्ट्र विरोधी नारे लगा रहे थे, वो शायद उस स्थिति में एक घंटे भी नहीं रह पाएंगे। 

42- जिस तरह के नारे लगाए गए वो उन शहीदों के परिवारों को हतोत्साहित कर सकते हैं जिनके बच्चे  तिरंगे से लिपटे हुए ताबूतों में घर लौट कर आए हैं।

43- याचिकाकर्ता भारतीय संविधान (No.558/2016 Page 20 of 23 India) के अनुच्छेद 19(अ) के भाग -।।। में लिखित भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत अपने अधिकार का दावा करता है। लेकिन उसे यह भी याद कराया जाना चाहिए कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51अ के भाग-चार के अन्तर्गत हर नागरिक के मूल कर्तव्यों को भी इस तथ्य के साथ उल्लिखित किया गया है कि अधिकार एवं कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।  

44- याचिकाकर्ता बुद्धिजीवी वर्ग से हैं और बुद्धिजीवियों का गढ़ माने जाने वाले जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के इंटरनेशनल स्कूल ऑफ स्टडीज़ से पीएचडी कर रहा है। उसकी अपनी राजनीतिक संबद्धता या विचारधारा हो सकती है जिसे आगे बढ़ाने का भी उसे पूरा अधिकार है लेकिन यह हमारे संविधान के दायरे में रहकर ही हो सकता है। उन सभी छात्रों को जिनकी अफज़ल गुरू और मकबूल भट्ट की तस्वीरों वाले पोस्टर्स पकड़े हुए फोटोग्राफ्स रिकॉर्ड में हैं, को इन नारों में व्यक्त हो रही भावनाएं या विरोध का आत्मनिरीक्षण करने की ज़रूरत है 

45- जेएनयू के अध्यापको को भी छात्रों को सही दिशा में ले जाने की अपनी भूमिका निभानी है जिससे कि वे राष्ट्र के विकास में भागीदार बन सकें और वो उद्देश्य और विजन प्राप्त कर सकें जिसके लिए जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी। 

46-  जेएनयू का प्रबंधन करने वाले लोगों को ना केवल उन छात्रों जिन्होंने उस अफज़ल गुरू की बरसी पर नारे लगाए जिसे कि संसद पर हमले का दोषी पाया गया था, के दिमाग में चल रहे राष्ट्रविरोधी दृष्टिकोण के पीछे का कारण ढूंढने की ज़रूरत है बल्कि इस संबंध में सुधारात्मक कदम भी उठाने की ज़रूरत है जिससे कि इस घटना की पुनुरावृत्ति ना हो। 

47- इस मामले की जांच शुरूआती दौर में है। जेएनयू के कुछ छात्रों, जिन्होंने कि इस कार्यक्रम का आयोजन किया और इसमें भाग लिया, द्वारा लगाए गए नारों में व्यक्त विचारों को संविधान में निहित  (W.P.(Crl.) No.558/2016 page 21 of 23) भाषण और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार के तहत संरक्षित करने का दावा नहीं किया जा सकता। मैं इसे एक तरह का संक्रमण मानती हूं जिससे कुछ छात्र ग्रस्त हैं और जिसे महामारी बनने से पहले नियंत्रित/ उपचार करने की आवश्यकता है। 


48- जब कोई संक्रमण किसी अंग में फैलता है तो उसे एंटीबायोटिक दवाएं देकर सही करने की कोशिश की जाती है और यदि ये दवाएं काम नहीं करती, तो दूसरी पक्तिं का इलाज करना पड़ता है। कभी-कभी इसके लिए सर्जरी की भी आवश्यकता होती है। लेकिन अगर संक्रमण इतना फैल जाए कि गैंग्रीन का रूप ले ले, तो उस अंग को काटना ही एकमात्र इलाज है। 


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