भारत कैश से लैस हुआ तो लुप्त हो जाएंगी यह कलाएं, रीतियां और रस्म-ओ-रिवाज़

मोदी जी का क्या है, बड़ी बेफिक्री से नवम्बर की एक रात नेशनल चैनल पर नुमायां हो गए और जारी कर दिया 500 और 1000 के नोटों के रद्दी हो जाने का ऐलान। पूरा देश सन्न... यह क्या कर गए प्रधानमंत्री जी। कमाल की बात यह है कि पूरा का पूरा 9 नवम्बर का दिन निकल गया, न एक भी विपक्षी दल का बयान आया और ना किसी न्यूज़ एंकर को इस फैसले के विरुद्ध बोलते सुना गया। भई सद्मे से उबरने में वक्त तो लगता है ना...।

लोगों को लगा था कोई नहीं, यह नोट जा रहे हैं तो क्या नए आ जाएंगे, और कुछ दिनों में नए नोटो से वहीं पुराना खेल, पुरानी आदतें शुरू कर देंगे। गृहणियां जिनका सालों का जमा धन एक ऐलान के झटके में निकल गया, सोच रही थीं कि उनकी कला तो ज़िन्दा है, नोट फिर जमा कर लेंगी। लेकिन हाय रे मोदी जी के मन की बात ना जानी उन्होंने..। प्रधानमंत्री जी तो कैश से लैस इकोनॉमी लागू करने की मंशा रखते हैं।

यह तुगलकी फरमान जारी करने से पहले ज़रा सोच तो लिया होता प्रधानमंत्री जी कि जो कैश ही ना रहा तो हिन्दुस्तान की संस्कृति में रची-बसी बहुत सी कलाएं और रस्म-ओ-रिवाज़ तो लुप्त ही हो जाएंगे। आपके तो आगे-पीछे कोई है नहीं, ना ही आपको 'दुनियादारी' निभानी है और ना ही 'व्यावहारिकता' से कोई मतलब है जो दोनों चीज़े ही हिन्दुस्तान में बिना कैश मुमकिन नहीं।  कुछ-एक नए रचनात्मक कारोबारों के बारे में भी सोच लिया होता जो बन्द हो सकते हैं।

आपको क्या मालूम प्रधानमंत्री जी कि यह जो रुपया है ना वो  'लिक्विड मनी' जैसी टर्मिनोलॉजी से कहीं ऊपर की चीज़ है। यह कैश हर भारतीय की दिनचर्या, रस्मो-रिवाज़ों, कलाओं और संस्कृति में बिल्कुल उस तरह रचा-बसा है जैसे कि हर सुबह उठकर ब्रश करने की आदत। और अगर भारतीय कैश से लेस हो जाएंगे तो भारतीयता का रंग भी बदल जाएगा। 

-सबसे खराब असर होगा हिन्दुस्तान की बेहद खर्चीली, शाही शादियों पर जिनकी बहुत सारी रीतें केवल कैश पर ही टिकी हैं। बारातों की  तो रौनक ही चली जाएगी। ना तो मुंह में नोट दबाकर नागिन डांस करने की कला जीवित रहेगी और ना नाचते बारातियों पर नोट लुटाने का मज़ा रह जाएगा। 

लेडीज़ संगीत के दौरान बहुओं पर 500 के नोट वारने वाली बुआएं और चाचियां भूतकाल की बात बन कर रह जाएंगी।

 विदा होकर जा रही बेटी की कार के पीछे सिक्के उछालने की रीत भी कल की बात हो जाएगी। 

बनिया शादियों में एक रीत होती है जबकि फेरों के समय दुल्हन ससुर जी द्वारा बनाई गई एक थैली में से जीजाजी के लिए मुट्ठी भर कर नोट या सिक्के निकालती है, अब उस रस्म के भी विदा होने का समय है। 

सबसे खेद का विषय होगा उन 'वुड बी' दूल्हों के लिए जिन्होंने अपने बड़े भाईयों और रिश्तेदारों को बड़ी उमंग से 100 और 500 के नोटों से बनी मालाएं पहनाईं थी और खुद ऐसी ही माला एक दिन पहनने का अरमान दिल में सजाया था, और अब उनका वो अरमान कभी पूरा नहीं हो पाएगा। 

- लोगों को एक दूसरे को लिफाफे देने की कला भी दम तोड़ देगी। उन कलाकारों का क्या होगा जो बड़ी तफ्सील से शादियों और अन्य समारोहों में देने के लिए सुंदर सजावटी लिफाफे तैयार करते हैं जिनमें रखकर रुपयों का आदान प्रदान हो सके। जब रुपए ही नहीं रहेगें तो सजावटी लिफाफों का कारोबार तो ठप्प समझिए। 

- हर भारतीय की आदतों में शुमार पूजा-पाठ पर भी बहुत असर पड़ने वाला है। अब आरती में चढ़ावे के रूप में चढ़ाने के लिए रुपए नहीं होंगे। नवरात्रों में कन्याएं पूजे जाते वक्त जजमान हाथ में मोबाइल लेकर एक-एक कन्या-लांगुर के पास जाएंगे और सबसे उनके पेटीएम अकाउंट की डीटेल लेते हुए एक-एक करके सब के खातों में 10-10 या बीस-बीस रुपए ट्रांसफर करते जाएंगे और साथ ही हर कन्या को हलवा चने भी पकड़ाते जाएंगे। 

-और ज़रा कल्पना कीजिए भारत के भिखारी कौम के भविष्य की। अब तो उन्हें भीख मांगने के लिए मोबाइल के साथ पेटीएम एकाउन्ट रखना पड़ेगा। क्या नज़ारा होगा वो भी जबकि चौराहों पर छोटे-छोटे बच्चे, दिव्यांग भिखारी और दुधमुंहे बच्चों को कमर में दबाएं महिलाएं आती-जाती कारों के शीशे खटखटाएंगे और हाथ में पकड़े मोबाइल के पेटीएम एकाउन्ट में भीख के पैसे ट्रांसफर करने को कहेंगे। जब मन्दिरों के बाहर बैठे हर भिखारी के हाथ में मोबाइल होगा और वो हर आने जाने वाले से अपने मोबाइल के मोबीक्यू वॉलेट में पैसे ट्रांसफर करने की गुहार करेंगे। 

-शनिवार को डिब्बे में तेल डालकर घूमते बच्चों को भी शनिदेव के लिए पैसे नहीं मनी ट्रांसफर लेकर गुज़ारा करना पड़ेगा। 

-सोना तो पहले ही बैंको के लॉकरों में पहुंच गया है, अब अगर रुपया भी नहीं रहा तो तिजोरियों का कारोबार भी बुरी तरह से प्रभावित होगा। लोग तिजोरियां खरीदना हो छोड़ देंगे या फिर काफी कम कर देंगे। 

यह तो केवल छोटे से उदाहरण भर है लेकिन सच तो यह है कि कैश नहीं रहा तो भारत के त्योहारों और उत्सवों की रौनक भी नहींं रहेगी, ना मंदिरों की, ना डांस बारों की, ना शादियों की, ना जागरणों की। क्या मज़ा ऐसे गणेश उत्सवों और जुलूसों का जहां मूर्तियों पर नोटों की बारिश ना हो। कैसे होंगे वो मंदिर जिनके प्रांगणों से कैश बॉक्स गायब हो जाएंगे। सरकारी दफ्तरों में काम करवाने के लिए फाइलों पर भार रखवाना क्या बन्द हो जाएगा? मायावती कैसे नोटों की माला पहनेगी?... माताजी एवं पिताजी, आप लोग तो खासतौर पर कमर कस लीजिए। बच्चों के जेबखर्च के लिए भी मोबाइल की ज़रूरत आने वाली है..।


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