भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए 'जीत' लेकर आए हैं गुजरात के चुनाव परिणाम
आज प्रधानमन्त्री ने जब गुजरात की जीत पर पार्टी कार्यकर्ताओं को सम्बोन्धित किया तो उनकी आवाज़ में वो स्वाभाविक खुशी, चहक और आत्मविश्वास गायब थे जो उनके भाषणों की पहचान है। उनकी आवाज़ में एक सोज था। लग रहा था जैसे मोदी जी किसी बड़ी लड़ाई को बमुश्किल जीत कर आए हैं और उन्हें खुद भी इस जीत का विश्वास नहीं हो पा रहा। बाद में उनका गुजरात के लोगों से माफी मांगना, 'विकास ही जीतेगा' जैसे नारे लगवाना और सारे गुजरातियों को जाति-समुदाय से ऊपर उठकर साथ आने को कहना, बयां करता हैं कि सच में यह उनके लिए भी बहुत बड़ी लड़ाई थी और कहीं ना कहीं उन्हें अपने होमटाउन में अपनी ज़मीन दरकने का अन्देशा भी था और शायद यहीं वजह रही कि उन्होंने इस कदर अपनी ताकत चुनाव प्रचार में झोंक दी, कि विकास की धार से भरे स्तरीय भाषणों में व्यक्तिगत मुद्दों और आरोप-प्रत्यारोपों के कारण स्तरहीनता सुनाई देने लगी। नरेन्द्र मोदी जी आत्ममुग्ध नेता ज़रूर हैं लेकिन उन्हें खुद की काबिलियत और जनता की समझदारी को लेकर कोई गुमान नहीं है। दो दशक तक गुजरात में रह चुकने के बाद वो गुजराती दिमाग और अक्लमन्दी को खूब जानते हैं, और यह...