इनकी ज़िन्दगी का एक ही मकसद है स्वदेशी किस्मों और बीज़ों को बचाना और किसानों को जैविक खेती की तरफ लौटाना- मिलिए भारत की बीजमाता से




बीयाने बैंक, कोंभाकणे.., लाल स्याही से लिखी इस इबारत वाले काठ के दरवाज़े को ठेलते हुए जब आप अन्दर पहुंचते हैं तो कहीं कच्ची मिट्टी के घड़ों में रखी धान की किस्में दिखती हैं, कहीं टांड से लटकी हुए मटर और तोरी की स्थानीय फसलें तो कहीं लकड़ी की अल्मारियों में करीने से सजे कांच के जारों में रखे दालों, सब्ज़ियों, दलहनों, तिलहन और सेम के बीज। जी हां, आप देश के पहले स्वदेशी किस्मों की फसलों के बीज बैंक में हैं।
इस बैंक में 53 तरह की फसलों की 114 स्वदेशी किस्मों के बीजों को पारम्परिक आदिवासी तरीकों से संग्रहित किया गया है। देश के अपनी तरह के इस पहले बैंक के पीछे जो व्यक्तित्व है वो हैं श्रीमती राहिबाई सोमा पोपेरे।

सादी महाराष्ट्रियन साड़ी में दिखने वाली इस महिला किसान ने अपनी मेहनत और दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर जैव विविधता को कायम रखने, स्वदेशी किस्मों को बचाने और स्थानीय लोगों की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने की दिशा में अभूतपूर्व काम किया है। यहां के लोग इन्हें बीजमाता कहकर पुकारते हैं। इन्हें वर्ष 2020 के प्रतिष्ठित पद्मश्री सम्मान से भी नवाज़ा गया है।  





54 वर्षीय राहिबाई पोपेरे, अहमदनगर, महाराष्ट्र के गांव कोंभाकणे की निवासी हैं। यह स्थानीय महादेव कोली आदिवासी संप्रदाय से हैं। 17 साल की उम्र में शादी होने के बाद राहिबाई जब यहां आईं तो उनके ससुराल की सात एकड़ भूमि में से केवल 3 एकड़ पर मानसून आधारित कृषि होती थी। बाकी समय परिवार के सदस्य एक चीनी मिल में मजदूरी किया करते थे। राहिबाई ने पारम्परिक तरीके से खेती करने का निश्चय किया। उन्होंने अपने खेत में ही जलकुण्ड बनाए और यहां सब्ज़िया उगानी शुरू की। इसी दौरान उन्होंने देखा कि लगातार संकरित बीज़ों और रासायनिक खाद की खेती करने के कारण गांव के बच्चों में बीमारियां और कुपोषण के मामले बढ़ रहे हैं। स्थानीय किसान लगातार स्वदेशी किस्मों को छोड़कर संकरित बीजों से खेती कर रहे थे और इसकी वजह से धीरे धीरे स्थानीय किस्में खत्म हो रहीं थी।



बस यहीं से राहिबाई के जीवन को मकसद मिला। उन्होंने बड़े जतन से स्वदेशी बीजों और फसलों को संग्रहित करना शुरू किया और साथ ही जैविक खेती के लिए भी लोगों को प्रेरित करने लगीं। उन्होंने लोगों को रासायनिक खाद और पेस्टिसाइड्स के खतरे के बारे में भी आगाह करना शुरू किया। शुरूआत मुश्किल थी, लोग उनकी कोशिशों का मज़ाक भी उड़ाते थे, लेकिन जैसे जैसे उन्होंने खुद जैविक खेती के ज़रिए स्वदेशी बीजों से अच्छी उपज लेनी शुरु की, उनकी मेहनत का फल मिलने लगा, आस-पास के लोग भी उनकी मुहिम से जुड़ने लगे। आज आधे से ज़्यादा स्थानीय किसान उनकी जैसी खेती कर रहे हैं।

पोपेरे बताती हैं कि पहले किसान बैंक से उधार लेकर संकरित बीज खरीदते थे। रासायनिक खाद और पेस्टिसाइड्स भी लेने पड़ते थे। लेकिन हम उन्हें अपने बैंक से इस शर्त पर बीज देते हैं कि उपज के बाद वो दोगुने बीज वापस करेंगे। स्वदेशी बीजों का इस्तमाल करने से रासायनिक खाद की भी ज़रूरत नहीं पड़ती और किसानों की सालाना लगभग 5000 रुपए की बचत होती है।



फसलों की स्थानीय किस्मों को खोजना, उनका रोपण करना, उनके बीजों को इकट्ठा करना, दूसरों को उन्हें बोने के लिए प्रेरित करना और उनके माध्यम से बीजों को फिर से इकट्ठा करना अब उनका जुनून बन गया है। किसान उनके बैंक में स्वदेशी किस्मों के बीजों को लेने और खेती की पारम्परिक तकनीकों को 
समझने के लिए अक्सर आते हैं। 
उनकी देखादेखी आसपास के गांवों के लोगों ने भी इस तरह को सीड बैन्क्स शुरू किए हैं। कई संस्थाएं भी उनकी सहायता के लिए आगे आई हैं। राहिबाई किसानों और छात्रों को बीच चुनने, मिट्टी की उपज बढ़ाने के तरीके और पेस्ट मैनेजमेन्ट के तरीकों के बारे में प्रशिक्षित भी करती हैं। 

अशिक्षित होने के बावजूद अपनी लगन और मेहनत के चलते राहिबाई ने एग्रोबायोडाइवर्सिटी, जंगली खाद्य स्त्रोतों और पारम्परिक कृषि के तरीकों के बारे में सीखा हैं। उन्होंने लगभग 50 एकड़ की भूमि को संरक्षित करके उसमें 17 तरह की विभिन्न फसलों को उगाने में सफलता पाई है। साथ ही घर के पिछवाड़े एक किचिन गार्डन भी स्थापित किया है। जिसमें 32 अलग- अलग फसलों की 122 किस्में हैं। पोपेरे अब तक अहमदनगर के 3500 किसानों को फसलों की विविधता और जंगली खाद्य स्त्रोतों को संरक्षित रखने इसका प्रशिक्षण दे चुकी हैं। आदिवासी परिवारों की खाद्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए राहिबाई 25,000 घरों में किचिन गार्डन बनाने की योजना पर काम कर रही हैं।

हर इंसान खुद ही अपनी ज़िन्दगी का निर्धारक हैमें विश्वास करने वाली पोपेरे का नाम बीबीसी की 2018 की टॉप 100 महिलाओं में शामिल हैं साथ ही उन्हें 2019 के नारी शक्ति सम्मान से भी सम्मानित किया गया है।                                                       



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