छात्र क्या-क्या जानते हैं... स्कूलों के टॉयलेट्स में जाकर जानिए...
चलिए, आपको
शौचालयों की सैर करायी जाए। जी नहीं, हम जगह-जगह, सड़कों पर मौजूद सार्वजनिक शौचालयों की बात नहीं
कर रहे, हम बात कर रहे हैं पब्लिक स्कूलों के टॉयलेट्स की। जहां स्कूलों में पढ़ने वाले
छात्र-छात्राएं उन बातों को अभिव्यक्त करते हैं जो स्कूलों में और आम लोगों के बीच
में बोलना या कहना प्रतिबंधित है., बुरा माना जाता है।
पब्लिक स्कूलों के टॉयलेट्स
की दीवारों की यह सच्चाई हमे बताई पूर्वी दिल्ली के एक बेहद प्रतिष्ठित स्कूल में दसवीं कक्षा को अंग्रेजी पढ़ाने वाली एक अध्यापिका
ने। अपनी आंखो देखी और किशोर वय के बच्चों के साथ स्कूल में हुए अनुभवों को बांटते
हुए उन्होंने बताया कि किस तरह उन के स्कूल के बच्चे अपनी वाइल्ड फैन्टेसीज को टॉयलेट्स
की दीवारों पर व्यक्त करते हैं।
आज के दौर में जब सभी माता पिता अपने बच्चों को
पब्लिक स्कूलों में पढ़ाने की चाह रखते है, तो यह जानना
रोचक है कि पढ़ाई, स्मार्टनेस और आत्मविश्वास के साथ साथ ये बच्चे और क्या सीख रहे हैं और अभिव्यक्त कर रहे हैं। अगर आप भी इस भ्रम में हैं कि यह सिर्फ
अच्छा सीख रहे हैं तो ऐसा नहीं हैं, इसकी सबसे बड़ी मिसाल है टॉयलेट्स की दीवारों पर पैन-पैंसिल और चॉक से उकेरी गई भद्दी भद्दी गालियां और अश्लील भाषा में
किए गए प्यार के इज़हार। जहां तक आपकी सोच भी नहीं जाती ऐसी ऐसी बातें इन टॉयलेट्स
की दीवारों पर नुमायां होती हैं और इन्हें लिखने वाले होते हैं छात्र-छात्राएं
हम बहुत बड़े बच्चों की बात
नहीं कर रहे हैं। यहां सिर्फ छठी कक्षा से दसवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों की बात
हो रही है। और यह भी स्पष्ट कर दें कि इन मामलों में लड़के और लड़कियां दोनों ही
शामिल होते हैं।आपको जानकर हैरानी होगी कि 12 से 16 साल की उम्र के बीच के यह बच्चे बहुत कुछ या यूं कहें कि सबकुछ समझते और जानते हैं। इस उम्र में गर्लफ्रैंड और बॉयफ्रेंड बनाना इनकी इज्जत का सवाल होता है। ग्रामर अच्छी हो ना हो, अंग्रेजी में लव लैटर लिखना और प्यार का इजहार करना, और वो भी टॉयलेट की दीवारों पर, इन्हें बहुत अच्छी तरह से आता है।
दिल्ली के सबसे प्रतिष्ठत पब्लिक स्कूलों में से एक की छात्रा, जो इसी साल सीनियर स्कूल यानि छठी कक्षा में पहुंची है, बड़े शान से बताती है कि उसकी कक्षा की आधी से ज्यादा लड़कियों के ब्यायफ्रेंड्स और लड़कों की गर्लफ्रेंड्स हैं। क्लास में खुलेआम प्यार की बातें होती हैं और टॉयलेट की दीवारों पर बहुत गन्दी गन्दी बातें लिखी रहती हैं। चूंकि उसकी पहुंच सिर्फ गर्ल्स टॉयलेट तक है तो उसने हमें यह बताया कि वहां तो गन्दी बातें लिखी ही रहती हैं, पर उसने सुना है कि बॉयज़ टॉयलेट्स में भी दीवारों पर काफी कुछ गन्दा गन्दा लिखा रहता है।
नोएडा के सबसे अच्छे दस
स्कूलों में से एक में कार्यरत अध्यापिका से जब हमने इस बारे में पूछा तो उन्होंने
बताया कि प्राइमरी और सीनियर स्कूलों में पढ़ने वाले इन बच्चों की अश्लील भाषा की
जानकारी और गालियों के ज्ञान का भंडार कितना बड़ा है यह अगर जानना है तो बस एक बार
गर्ल्स और बॉएज टायलेट के चक्कर काट लीजिए। इनकी दीवारों पर आपको इतनी ज्यादा
गन्दी बाते लिखी मिलेंगी कि बड़े से बड़ा आदमी भी एक बार को चकरा जाए कि 12 से 16
साल की उम्र के बच्चे ऐसी सोच भी रख सकते हैं, और अगर रख भी ली तो उसे इस तरह से
दीवारों पर व्यक्त भी कर सकते हैं।
यह हाल सिर्फ दिल्ली का ही
नहीं बल्कि अन्य राज्यों में भी प्रतिष्ठित स्कूलों में भी तस्वीर कुछ ऐसी ही है। लखनऊ के एक प्रतिष्ठित कॉन्वेन्ट स्कूल की अध्यापिका से
जब इस बारे में बात हुई तो उन्होंने भी इन बातों का समर्थन करते हुए कहा- “हमारे यहां तो खासतौर से टॉयलेट स्टाफ को हिदायत दी गई है कि वह इस बात का
खयाल रखे कि बच्चे टॉयलेट में कुछ उल्टा सीधा ना लिखें और लिखा दिखे तो तुरन्त साफ कर दें, लेकिन फिर भी कई बार बच्चे
कारिस्तानी करके निकल जाते हैं।“
छात्रों की अभिव्यक्ति से आगे बढ़ें तो एक
बात और निकल कर सामने आई कि इस उम्र के बच्चो में सिगरेट और शराब पीने का शौक भी
बढ़ रहा है। खासतौर पर छठी कक्षा से लेकर
दसवी कक्षा तक के छात्रों जिनका एज ग्रुप 12 से 16 साल तक होता है, सिगरेट पीने के
शौकीन बन जाते हैं और इस उम्र के ज्यादातर बच्चे कम से कम एक बार शराब को चख चुके
होते हैं।
दरअसल जो बात इन्हें इन
आदतों की ओर ले जा रही है वो है कूल गाय बनने की चाह। स्लैंग या इंग्लिश के गन्दे
शब्दों का आम भाषा में प्रयोग करना इन्हें कूल गर्ल्स और कूल डूड बनाता है। मैक
डॉनल्ड, पिज्जा हट को पसंद करने वाले, मैगी से भूख और पैप्सी कोला से प्यास बुझाने
वाले यह छात्र दिल्ली के लगभग हर पब्लिक स्कूल की पहचान बन चुके हैं। अंग्रेजी और
हिन्दी के शब्दों से मिलकर बनी एक नई भाषा- हिंग्लिश में फर्राटेदार ढंग से बोलने
वाले यह छात्र कूल होने को सबसे बड़ी क्वालिटी मानते हैं। कक्षाएं बंक करके कैंटीन
में बैठना या ग्राउंड में घूमना ये अपनी शान समझते हैं। फेसबुक पर इनके अकाउंट्स
अवश्य पाए जाते हैं। और इनकी अभिव्यक्ति के लिए सबसे उपयुक्त जगह होती है स्कूल के
टॉयलेट्स।
पब्लिक स्कूलों के कूल
डूड्स की पहचान-
पैंट से आधी बाहर निकली हुई
शर्टएक तरफ खिंची हुई टाई
बैग्स पर लगे हुए ग्राफिक स्टिकर्स
फर्राटेदार हिंग्लिश में बातचीत
एक गर्लफ्रैंड और एक दर्जन गर्ल फैन्स
अंग्रेजी फिल्मों के शौकीन
नए गैजेट्स के शौकीन
और ऐसी होती है कूल गर्ल्स-
घुटनों से ऊंची स्कर्ट्सबैग्स की जिप से लगे की रिंग्स या बैग्स पर लगे स्टिकर्स
मोड़ कर पहने गई जुराबें
फर्राटेदार हिंग्लिश में बातचीत
अंग्रेजी फिल्मों का शौक
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