वो आते हैं...
-बेबी जी आप ऑपरेशन के लिए चली जाईए, क्यों बार बार नर्स को वापस भेज रही हैं...?
-लेकिन बेबी जी, आपके शरीर में सैप्टिक फैल सकता है, आपका ऑपरेशन होना ज़रूरी है। मालकिन को दिल्ली से आने में देर लग सकती है। मान जाईए बेबीजी, कहते हुए गोपाल काका की आंखे छलक आईं...
-कहा ना नहीं जाऊंगी, आज मम्मी को ही आना पड़ेगा, चाहे मैं मर जाऊं पर उनसे मिलने के बाद ही जाऊंगी। ... कहते हुए सिमरन ने मुंह फेर लिया।
गोपाल काका रोते हुए बाहर आए। सामने से महेश बाबू आते दिख गए। "बाबूजी आप आ गए। बेबी जी से मिल लीजिए, उन्हें अब तो बताना ही पड़ेगा, वो ऑपरेशन के लिए नहीं जा रहीं...."
-लेकिन यह नहीं हो सकता गोपाल, सिमरन कमज़ोर है हम उसे नहीं बता सकते...
तभी रूम का दरवाज़ा खुला और सिमरन स्ट्रैचर पर बाहर आती दिखाई दी। पास से गुज़री तो पापा और गोपाल काका को देखकर बोली... मैंने कहा था ना, मम्मी आएंगी। वो मुझसे मिलकर चली गईं।
क्या....! गोपाल काका और महेश बाबू दोनों अवाक... ऐसा कैसे हो सकता है..
“अभी-अभी तो महेश बाबू श्यामली की बॉडी को आग देकर आ रहे हैं...पुलिस वाले बता रहे थे, वो अस्पताल पहुंचने की जल्दी में गाड़ी बहुत तेज़ चला रही थी... ट्रक ने टक्कर मारी तो वहीं उसकी तुरंत मौत हो गई... फिर वो कैसे आ सकती है... ?????”
तभी गोपाल का हाथ महेश बाबू के हाथों को दबाने लगा, …....ऐसा होता है बाबूजी, कभी कभी लोग मरने के बाद भी जा नहीं पाते, कोई काम अधूरा रह जाता है...मालकिन भी शायद इसलिए आई होंगी एक बार... ताकि बेबी जी की जान बच सकें...
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