यथार्थ....

-श्यामली याद है, अरे वो कॉलेज की मोस्ट स्टायलिश गर्ल...।

-श्यामली...(नाम लेते ही पीयूष के दिमाग में कॉलेज की तस्वीर ताज़ा हो गई। श्यामली- सांचे में ढला फिगर, लंबे, घने बाल, बड़ी- बड़ी आंखे, खूबसूरत मुस्कान... सभी उसको पसंद करते थे। वो खुद भी उससे शादी करना चाहता था, पर वो कह भी नहीं पाया और ग्रेजूएशन के तुरंत बाद उसकी शादी हो गई)... हां हां याद है। बिल्कुल याद है। 
-इन पांच सालों में दुनिया बदल गई उसकी। डेढ़ साल में एक्सीडेंट में हसबेंड की डेथ हो गई। ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया। चार साल से छोटी-मोटी नौकरियां करके खुद और अपने बेटे को पाल रही है। तुम तो बड़े ओहदे पर हो, उसकी कहीं नौकरी लगवा दो...
-हां हां क्यों नहीं, मेरी ही सेक्रेटरी की जगह खाली है। तन्ख्वाह भी अच्छी मिलेगी। कल बुला लो उसे। 

(दूसरे दिन श्यामली से मिलने की खुशी में पीयूष जल्दी ऑफिस पहुंच गया।) 

बारह बजे श्यामली आई। पांच सालों में काफी मोटी हो चुकी थी। पति के गुज़रने के बाद रोज़ी रोटी कमाने की फिक्र में लगी श्यामली के चेहरे पर समय से पहले झुर्रिया दिखने लगी थी। खूबसूरत हंसी की जगह उदासी भरी फीकी मुस्कान ने ले ली थी। पतली सी चोटी और साधारण सूती साड़ी में श्यामली पीयूष की यादों से बिल्कुल अलग, बेहद आम दिख रही थी। शानदार ऑफिस में असहज बैठी 
श्यामली सकुचाते हुए बोली- कल सीमा का फोन आया था। बता रही थी तुम मुझे अपने यहां सेक्रेटरी रख लोगे....?

पीयूष- हां मैंने सोचा था, लेकिन मेरे बॉस ने मना कर दिया। कहा तुम्हारी क्वालिफिकेशन नहीं हैं...। मुझे कुछ काम है तुम चाय पीकर जाना....(आंखे चुराते हुए पीयूष निकल गया)

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