दो बूंद ज़िंदगी की..या दो बूंद अपंगता की...?
पोलियो टीकाकरण अभियान में भाग लीजिए, बच्चों को दीजिए बस दो बूंद ज़िंदगी की... आपने बहुत बार बॉलीवुड महानायक अमिताभ बच्चन को टीवी पर यह संदेश देते सुना होगा। लगभग दो दशकों से भारत को पूर्ण रूप से पोलियो मुक्त देश बनाने के लिए पोलियो टीकाकरण अभियान जोर-शोर से चलाया जा रहा है। साल में दो बार या कभी तीन या चार बार ओरल पोलियो की दो बूंदे पिलाने का अभियान चलाया जाता है जिसमें पूरे देश के लोग बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। देश पोलियो मुक्त राष्ट्र बनने जा रहा है। पिछले दो सालो से भारत में एक भी पोलियो का मामला नहीं आया.....यह सब बहुत लुभावनी बातें है लेकिन इन सबके पीछे एक बेहद खतरनाक सच्चाई छिपी है।
क्या आप जानते हैं कि भले ही हिन्दुस्तान में पोलियो खत्म हो रहा है लेकिन पोलियो से मिलती-जुलती, लेकिन उससे कहीं ज्यादा खतरनाक "नॉन पोलियो एक्यूट फ्लैसिड पैरालिसिस (एएफपी)" के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं और जिसका कारण पोलियो टीकाकरण अभियान के तहत बच्चों को पिलाई जा रहीं पोलियो वैक्सीन की वो दो बूंदे हैं जिनमें कमज़ोर लेकिन ज़िन्दा पोलियो वायरस उपस्थित रहता है।
2012 में प्रकाशित एक रिसर्च पेपर में यह साफ किया गया है कि भारत के बच्चों को दी जा रही पोलियो वैक्सीन के बढ़ने के अनुपात में ही एक्यूट फ्लैसि़ड पैरालिसिस के मामले भी लगातार बढ़ रहे हैं।
क्या है नॉन पोलियो एक्यूट फ्लैसिड पैरालिसिस
नॉन पोलियो एक्यूट फ्लैसिड पैरालिसिस यानि एएफपी, पोलियो की तरह ही एक बीमारी है जो नर्वस सिस्टम पर हमला करके व्यक्ति के शरीर के अंगो को जीवन भर के लिए लकवाग्रस्त कर देती है और बहुत से मामलों में मौत का भी कारण बनती है। इसके प्रभाव पोलियो से मिलते जुलते हैं लेकिन वास्तव में यह पोलियो से कहीं ज्यादा घातक और अनियंत्रित बीमारी है। फिलहाल भारत में विश्व में सबसे ज्यादा नॉन पोलियो एएफपी के मामलों की दर दर्ज की गई है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़े गवाह हैं-
विश्व स्वास्थ्य संगठन के राष्ट्रीय पोलियो सर्विलांस प्रोजेक्ट के आंकड़ों के मुताबिक
- वर्ष 2003 में भारत में लगभग आठ हज़ार एएफपी के मामले दर्ज किए गए
- इसके अगले साल यह आंकड़ा 12,000 मामलों तक पहुंच गया
- 2005 में 26,000 और 2007 में 40,000 से भी ज्यादा इस तरह के मामले भारत में देखने को मिले
- जबकि 2011 में 60,000 से ज्यादा नॉन पोलियो एएफपी के मामले सामने आए।
- भारत में इस तरह के सबसे ज्यादा मामले बिहार और उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए हैं
- 2012 में पूरे देश में पाए गए 53,000 एएफपी के मामलों में 61 फीसदी मामले बिहार और उत्तर प्रदेश से थे
- फिलहाल भारत में अनुमान से 12 फीसदी ज्यादा एएफपी के मामले हैं और ओरल पोलियो वैक्सीन की लगातार बढ़ती खुराकों के अनुपात में हैं।
- 2011 में भारत में चलाया गया पोलियो मुक्ति अभियान साढ़े सैंतालीस हज़ार पोलियो टीका प्रेरित पक्षाघात (पोलियो वैक्सीन इंड्यूस्ड पैरालिसिस) से हुई मौतों का कारण बना।
यह डाटा ऑनलाइन उपलब्ध है इसमें साफ दिख रहा है कि एक्यूट फ्लैसिड पैरालिसिस की दर विभिन्न क्षेत्रों में वितरित पोलियो वैक्सीन खुराकों के सीधे अनुपात में है |
पोलियो टीकाकरण अभियान के साथ बढ़ रही हैं बच्चों में पोलियो जैसी बीमारी
इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल एथिक्स में सेंट स्टीफन्स अस्पताल, दिल्ली की डॉक्टर नीतू वशिष्ठ और डॉक्टर जैकब पुलियल द्वारा प्रकाशित एक ताज़े रिसर्च पेपर ने पूरे विश्व में हंगामा कर दिया। इस पेपर में बताया गया है कि जितनी तेज़ी से बच्चों को ज़िदंगी की दो बूंदे दी जा रही है उतनी ही तेज़ी से पोलियो जैसी घातक बीमारी एक्यूट फ्लैसिड पैरालिसिस फैल रही है। 2011 में हज़ारो पोलियो जैसी बीमारी के मामले उन बच्चों से जुड़े हुए थे जिन्होंने इस साल पोलियो की बार-बार खुराके ली थी।
इस रिसर्च के अनुसार -
" भारत पिछले एक साल से पोलियो मुक्त है लेकिन नॉन पोलियो एक्यूट फ्लैसिड पैरालिसिस के मामलों में बहुत ज़्यादा वृद्धि देखी गई है। 2011 में एएफपी के 47,500 अतिरिक्त मामले हुए। चिकित्सकीय तौर पर पोलियो जैसी, लेकिन पोलियो से दोगुनी घातक और संक्रामक एएफपी के मामले बच्चों को दी गई ओरल पोलियो वैक्सीन के सीधे अनुपात में थे। हांलाकि यह आंकड़े पोलियो सर्विलांस सिस्टम द्वारा इकट्ठे किए गए थे लेकिन इनकी कभी विवेचना नहीं की गई।"
ज़िन्दा पोलियो वायरस वाली ओरल पोलियो वैक्सीन के ज़रिए असंख्य बच्चो और बड़ों में वैक्सीन स्ट्रेन पोलियो पैदा हो रहा है। एक अनुमान के अनुसार, हर साल लगभग 180 भारतीय बच्चे वैक्सीन से जुड़े पोलियो पक्षाघात का शिकार बनते हैं।
क्या है ओरल पोलियो वैक्सीन (ओवीपी) और क्यों है यह खतरनाक
क्या आप जानते हैं कि जिस ओरल पोलियो वैक्सीन की खुराकें आप अपने बच्चों को नियमित तौर पर पिलाते हैं, उनमें है क्या...
दरअसल इन ओरल पोलियो वैक्सीन में 2002 में वैज्ञानिकों द्वारा प्रयोगशाला में बनाए गए कृत्रिम पोलियो वायरस को डाला जाता है। यह पोलियो वायरस शक्ति में प्राकृतिक पोलियो वायरस से कमज़ोर होता है लेकिन यह ज़िन्दा वायरस होता है।
ओरल वैक्सीन से शरीर में पहुंचने के बाद यह ज़िन्दा पोलियो वायरस आपके गले में एक से दो हफ्ते रह सकता है और उसके बाद अगर यह मल के ज़रिए आपके शरीर से निकल जाता है तो उसमें भी यह दो महीने तक बना रह सकता है।
भारत जैसे देशों में जहां सीवेज की व्यवस्था ठीक नहीं है, वहां मल के द्वारा निकले पोलियो वायरस का पानी को दूषित करना बहुत आसान होता है। यह आसानी से पानी के ज़रिए एक जगह से दूसरी जगह विचरता रहता है और अपने नए शिकार ढूंढ लेता है। और चूंकि यह लैब में बना कृत्रिम वायरस है इसका प्रभाव और ज्यादा घातक होता है।
भारत जैसे देशों में जहां सीवेज की व्यवस्था ठीक नहीं है, वहां मल के द्वारा निकले पोलियो वायरस का पानी को दूषित करना बहुत आसान होता है। यह आसानी से पानी के ज़रिए एक जगह से दूसरी जगह विचरता रहता है और अपने नए शिकार ढूंढ लेता है। और चूंकि यह लैब में बना कृत्रिम वायरस है इसका प्रभाव और ज्यादा घातक होता है।
पहले जहां इस बीमारी का संक्रमण उन बच्चों से होता था जिनको वैक्सीन नहीं लगी होती थी वहीं अब यह बीमारी उन बच्चों से फैल रही है जिनका ओरल पोलियो वैक्सीन पिलाकर टीकाकरण किया गया है।
अमेरिका रोक चुका है ओरल पोलियो वैक्सीन का प्रयोग
ओवीपी के खतरों से वाकिफ होने के बाद लगभग 35 अन्य धनवान देशों ने भी अगले सालों में ओरल पोलियो वैक्सीन का इस्तमाल रोककर इनऐक्टिव पोलियो वैक्सीन(आईवीपी) का प्रयोग करना शुरू कर दिया।
आईवीपी में निष्क्रिय पोलियो वायरस होता है इसलिए इसके द्वारा दुबारा बीमारी फैलने का खतरा नहीं रहता। लेकिन चूंकि एक तो यह इंजेक्शन के ज़रिए दी जाने वाली वैक्सीन है और दूसरे यह ओरल पोलियो वैक्सीन से दोगुनी कीमत पर मिलती है इसलिए तीसरी दुनिया के देश या यूं कहिए की गरीब देश अभी भी सस्ती ओरल पोलियो वैक्सीन को ही टीकाकरण अभियान के तहत वितरित करते हैं।
वैसे भी एक बच्चे को इंजेक्शन लगाने से कहीं आसान है उसके मुंह में पोलियो वैक्सीन की दो बूंदे डालना। पर चूंकि इनमें जिन्दा वायरस होते हैं, इनसे हमेशा लोगों में वैक्सीन स्ट्रेन पोलियो होने का खतरा बना रहता है। खासतौर से उन लोगों में जिन्हें स्वास्थ्य समस्याएं हैं, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी नहीं या जो कुपोषण का शिकार हैं मतलब ऐसे लोगों में जिनकी संख्या भारत जैसे देशों में बहुत अधिक होती है।
खतरों के बावजूद ओरल पोलियो अभियान को प्रोत्साहित कर रही हैं वैश्विक स्वास्थ्य एजेंसिया
यह बेहद हैरानी की बात यह है कि ओवीपी से होने वाले खतरों और चिकित्सा समुदाय की चिंताओ के बावजूद पोलियो वैक्सीन उत्पादक और वैश्विक स्वास्थ्य एजेंसिया ओरल पोलियो वैक्सीन अभियान को और तेज़ी के साथ प्रोत्साहित करने में लगे हूए हैं। इसके ऊपर रोक लगाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे।
1991 में फेडरल सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रीवेन्शन (सीडीसी) ने प्रकाशित किया था कि जिन्दा वायरस वाली पोलियो वैक्सीन अमेरिका में पोलियो फैलने का मुख्य कारण बन चुकी है। 1979 से जितने भी पोलियो के मामले आए हैं वो सभी ओरल पोलियो वैक्सीन के कारण हुए हैं। इसकी वजह से 540 मौते हुई और 6,364 लोगों को पोलियो घात का सामना करना पड़ा। इन रिपोर्ट्स के बाद ही वर्ष 2000 में अमेरिका के इम्यूनाइजेशन कार्यक्रम से ओरल पोलियो वैक्सीन को हटाया गया।
ओवीपी के खतरों से वाकिफ होने के बाद लगभग 35 अन्य धनवान देशों ने भी अगले सालों में ओरल पोलियो वैक्सीन का इस्तमाल रोककर इनऐक्टिव पोलियो वैक्सीन(आईवीपी) का प्रयोग करना शुरू कर दिया।
आईवीपी में निष्क्रिय पोलियो वायरस होता है इसलिए इसके द्वारा दुबारा बीमारी फैलने का खतरा नहीं रहता। लेकिन चूंकि एक तो यह इंजेक्शन के ज़रिए दी जाने वाली वैक्सीन है और दूसरे यह ओरल पोलियो वैक्सीन से दोगुनी कीमत पर मिलती है इसलिए तीसरी दुनिया के देश या यूं कहिए की गरीब देश अभी भी सस्ती ओरल पोलियो वैक्सीन को ही टीकाकरण अभियान के तहत वितरित करते हैं।
वैसे भी एक बच्चे को इंजेक्शन लगाने से कहीं आसान है उसके मुंह में पोलियो वैक्सीन की दो बूंदे डालना। पर चूंकि इनमें जिन्दा वायरस होते हैं, इनसे हमेशा लोगों में वैक्सीन स्ट्रेन पोलियो होने का खतरा बना रहता है। खासतौर से उन लोगों में जिन्हें स्वास्थ्य समस्याएं हैं, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी नहीं या जो कुपोषण का शिकार हैं मतलब ऐसे लोगों में जिनकी संख्या भारत जैसे देशों में बहुत अधिक होती है।
खतरों के बावजूद ओरल पोलियो अभियान को प्रोत्साहित कर रही हैं वैश्विक स्वास्थ्य एजेंसिया
यह बेहद हैरानी की बात यह है कि ओवीपी से होने वाले खतरों और चिकित्सा समुदाय की चिंताओ के बावजूद पोलियो वैक्सीन उत्पादक और वैश्विक स्वास्थ्य एजेंसिया ओरल पोलियो वैक्सीन अभियान को और तेज़ी के साथ प्रोत्साहित करने में लगे हूए हैं। इसके ऊपर रोक लगाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे।
बल्कि बिल एंड मेलिन्डा गेट्स फाउंडेशन द्वारा तो इसको तीसरे विश्व के देशों में और ज्यादा बढ़ावा दिया जा रहा है। आपको बता दें कि बिल गेट्स ने इस प्रोजेक्ट पर बहुत ज्यादा पैसा लगाया है। हांलाकि उनका कहना है कि वो पूरे विश्व से पोलियो को खत्म करना चाहते हैं लेकिन यह बात भी सोचने की हैं कि खुद उनके देश में ओवीपी का प्रयोग रोक दिए जाने के बावजूद खुद बिल गेट्स विकासशील देशों में ओरल पोलियो वैक्सीन के ही इस्तमाल के पक्षधर हैं।
उन्हीं की फाउंडेशन द्वारा 2011 में भारत में उच्च शक्ति की पोलियो वैक्सीन शुरू की गई थी जिसके बाद एएफपी के मामलों में बहुत ज़्यादा बढ़ोत्तरी हुई है।
भारत में पोलियो टीकाकरण अभियान के अठारह साल-
वैश्विक पोलियो मुक्त पहल (पोलियो ग्लोबल इरैडिकेशन इनीशिएटिव) की शुरूआत 1988 में विश्व स्वास्थ्य संगठन, रोटरी इंटरनेशनल, यूनिसेफ और अमेरिकी रोग नियंत्रण एवं रोक केन्द्र (सीडीसी) द्वारा की गई थी जिसके तहत विश्व भर में भारी पोलियो टीकाकरण अभियान चलाया गया। हांलाकि उस वक्त भारत में पोलियो का प्रकोप इतना ज़्यादा नहीं था लेकिन फिर भी भारत ने इस मुहिम में शामिल होने के लिए मंज़ूरी दी।
रिपोर्ट के अनुसार भारतीय सरकार ने पूरे भारत में 200 मिलियन घरों में 2.3 मिलियन पोलियो टीका लगाने वालों को भेजा जिसके तहत 5 साल या उससे कम उम्र के लगभग 170 मिलियन भारतीय बच्चों को पोलियो दवा पिलाई गई।
यह अभियान इस तेज़ी से यहां चलाया जा रहा है कि कई बार तो ज़रूरत से ज्यादा खुराकें बच्चों को दे दी जाती हैं। यहीं कारण है कि यहां पोलियो तो खत्म होने की कगार पर आ गया लेकिन पोलियो वैक्सीन के कारण प्रकट होने वाली एक्यूट फ्लैसिड पैरालिसिस जड़े जमाने लगी।
1952 में जब यह बीमारी अपने चरम पर थी तब इसने अमेरिका में 24,000 से ज्यादा लोगो को मारा या अपाहिज बना था लेकिन भारत में हुए पोलियो टीकाकरण अभियान ने तो सिर्फ साल 2011 में ही 47,500 लोगों को अपाहिज बना दिया या उनकी जान ले ली।
हमेशा चलता रहेगा पोलियो उन्मूलन अभियान
इंडियन जर्नल में छपी रिपोर्ट के अनुसार भले ही विश्व स्वास्थ्य संगठन और बिल गेट्स पोलियो को जड़ से समाप्त करने की मुहिम के लिेए विश्व भर से समर्थन जुटाने में लगे हैं लेकिन सच यह है कि पोलियो को जड़ से समाप्त करना असंभव है।
2002 में वैज्ञानिक प्रयोगशाला में पोलियोवायरस बना चुके हैं। अब यह विलुप्त नहीं हो सकता क्योंकि इसके जीनोम का क्रम पता लगाया जा चुका है और इसे कभी भी प्रयोगशाला में तैयार किया जा सकता है। वास्तविकता यह है कि 18 साल पहले पोलियो को नष्ट करने के लिए शुरू किया गया यह अभियान किसी ना किसी रूप में हमेशा चलता रहेगा।
उन्हीं की फाउंडेशन द्वारा 2011 में भारत में उच्च शक्ति की पोलियो वैक्सीन शुरू की गई थी जिसके बाद एएफपी के मामलों में बहुत ज़्यादा बढ़ोत्तरी हुई है।
भारत में पोलियो टीकाकरण अभियान के अठारह साल-
वैश्विक पोलियो मुक्त पहल (पोलियो ग्लोबल इरैडिकेशन इनीशिएटिव) की शुरूआत 1988 में विश्व स्वास्थ्य संगठन, रोटरी इंटरनेशनल, यूनिसेफ और अमेरिकी रोग नियंत्रण एवं रोक केन्द्र (सीडीसी) द्वारा की गई थी जिसके तहत विश्व भर में भारी पोलियो टीकाकरण अभियान चलाया गया। हांलाकि उस वक्त भारत में पोलियो का प्रकोप इतना ज़्यादा नहीं था लेकिन फिर भी भारत ने इस मुहिम में शामिल होने के लिए मंज़ूरी दी।
रिपोर्ट के अनुसार भारतीय सरकार ने पूरे भारत में 200 मिलियन घरों में 2.3 मिलियन पोलियो टीका लगाने वालों को भेजा जिसके तहत 5 साल या उससे कम उम्र के लगभग 170 मिलियन भारतीय बच्चों को पोलियो दवा पिलाई गई।
यह अभियान इस तेज़ी से यहां चलाया जा रहा है कि कई बार तो ज़रूरत से ज्यादा खुराकें बच्चों को दे दी जाती हैं। यहीं कारण है कि यहां पोलियो तो खत्म होने की कगार पर आ गया लेकिन पोलियो वैक्सीन के कारण प्रकट होने वाली एक्यूट फ्लैसिड पैरालिसिस जड़े जमाने लगी।
1952 में जब यह बीमारी अपने चरम पर थी तब इसने अमेरिका में 24,000 से ज्यादा लोगो को मारा या अपाहिज बना था लेकिन भारत में हुए पोलियो टीकाकरण अभियान ने तो सिर्फ साल 2011 में ही 47,500 लोगों को अपाहिज बना दिया या उनकी जान ले ली।
हमेशा चलता रहेगा पोलियो उन्मूलन अभियान
2002 में वैज्ञानिक प्रयोगशाला में पोलियोवायरस बना चुके हैं। अब यह विलुप्त नहीं हो सकता क्योंकि इसके जीनोम का क्रम पता लगाया जा चुका है और इसे कभी भी प्रयोगशाला में तैयार किया जा सकता है। वास्तविकता यह है कि 18 साल पहले पोलियो को नष्ट करने के लिए शुरू किया गया यह अभियान किसी ना किसी रूप में हमेशा चलता रहेगा।
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