इनसे मिलिए....3000 रुपए में कृपा बेचने वाले निर्मल बाबा !!!!


लाल रंग की बड़ी स्टेज पर फूलों की मालाओं की सजावट, दोनों तरफ शानदार मेजे, एक तरफ की मेज पर फूल और दूसरी तरफ की मेज पर बिसलरी की पानी की बोतल और कांच का गिलास... बीचो-बीच सिंहासननुमा वृहद् कुर्सी पर अधलेटे, सिल्क का कुर्ता पहने और बढ़िया शॉल कंधे पर डाले निर्मल बाबाजी....

बाबाजी के समागम में पूरा हॉल भरा हुआ है, कुर्सियों पर बाबाजी के भक्तों में लगभग सभी सभ्रांत, सम्पन्न परिवारों के पढ़े लिखे लोग...  और हाथों में माइक लेकर अपनी परेशानियां "पूज्य निर्मल बाबा" को बताते भक्तगण....और वहीं हॉल के चारों ओर मौजूद काले कपड़े पहने और गले में लाल फीते वाला आइडेंटिटी कार्ड डाले बाउंसर नुमा दिखने वाले बाबाजी के ब़ॉडीगार्ड्स।


निर्मल बाबा के दरबार में भक्त एक-एक कर के माइक पकड़कर अपनी परेशानी पूछते हैं और बाबा कभी काले रंग का बैग रखने की सलाह में तो कभी गरीबों को कुल्फी खिलाने की बात कहकर तो कभी किसी भक्त को होटल में खाना खाने की आज्ञा देकर दोनों हाथों से "कृपा" बांटते हैं.... ।

निर्मल बाबा की बात और बाबाओं से बिल्कुल अलग है। इनके समागम में ऐसे कोई ऐरा-गैरा नहीं जा सकता। बाबाजी के समागम में जाने का पास 3000 रूपए का मिलता है और उसके लिए पहले से बुकिंग करानी पड़ती है वो भी फोन या इंटरनेट पर। यहीं नहीं अगर आपकी परेशानी खत्म हो जाए तो अपनी मासिक आय का दसवां हिस्सा भी बाबाजी को देना पड़ता है। बाबाजी ने अपना खाता नंबर नेट पर डाला हुआ है और बाबा इन्कम टैक्स रिटर्न भी भरते हैं ताकि किसी सवाल की कोई गुंजाइश ना रहे।
अब यह बात अलग है कि बाबा के दो खाते हैं एक भक्तों के लिए जिसकी जानकारी सबको है और एक बाबा का अपना निजी खाता जिसकी जानकारी बाबा और उनके परिवार के अलावा किसी को नहीं। आज के इंटलैक्चुअल इंसान को बाबा का इस तरह कृपा बरसाना और मज़ेदार बातें करना अखर सकता है लेकिन बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें बाबा के पेड समागम में आकर मुश्किलों से निजात मिलती है।

 बाबाजी की सलाहों की दुनिया दीवानी है। अपने सिंहासन पर अधलेटे बाबाजी जब अपना सीधा हाथ उठाकर भक्तगणों को आशीष देते हैं और चुटीले अंदाज़ में अजीब लगने वाली सलाहें बताते हैं तो भक्त प्रसन्न हो उठते हैं। निर्मल बाबा के नाम की जय-जयकार गूंजने लगती है।

बाबा की सलाहें होती ही ऐसी हैं...
पीर की मज़ार पर परफ्यूम चढ़ाओ तो घर में शांति बनी रहेगी। ...गरीबों को कुल्फी बांटोगे तो सारा कर्ज़ा उतर जाएगा। ...जिस होटेल में रात को खाना खाया था, वहीं जाकर दोबारा खाना खाओगे तो घर में कभी अन्न की कमी नहीं पड़ेगी। वाइफ को फेस क्रीम लाकर दोगे तो घरेलू परेशानियों से छुटकारा मिलेगा। बड़ी लोहे की कढ़ाई में कुछ भी बना कर गरीबों को वितरित करोगे तो कर्जें से मुक्ति मिल जाएगी।

बाबा के भक्तगणों की परेशानियां भी ऐसी होती हैं... मेरे बेटे को यूएसए का वीज़ा नहीं मिल रहा, आपकी कृपा हो जाए तो मिल जाएगा बाबाजी..., बेटी को विदेश पढ़ने भेजा है वहां कोई भारतीय परिवार मिल जाए जहां वो रह सकें...., मुझे इंटरव्यू में पास करवा दो बाबा..., नौकरी में प्रमोशन दिलवा दो बाबा....एक्ज़ाम में अच्छे नंबर नहीं आ रहे बाबा...

और बाबा, कभी सिल्क का स्कार्फ पहनने की सलाह देकर, कभी अच्छे टेलर से सूट सिलवाने की बात कहकर और कभी माता को चौड़े गोटे वाली चुन्नी चढ़ाने की सलाह देकर लोगों को कृपा बांटते हैं।

 और वो लोग जो शायद ऑटो वालों से दस रुपए ज्यादा मांगने पर मारपीट पर उतर आते होंगे या सब्ज़ी वाले से दो रुपए के लिए लड़ाई करते होंगे.. बड़े आराम से, बल्कि खुशी-खुशी बाबा की कृपा पाने और उनके समागम में आने के लिए 3000 रुपए की टिकिट खरीद लेते हैं, कृपा पात्र होने पर उन्हें अपनी मासिक आय का हिस्सा देने को तैयार हो जाते हैं और यहीं नहीं दशवंत के नाम पर भी "स्वेच्छा" से दान देने में आगे रहते हैं। मतलब बाबा कृपा दे रहे हों या ना दे रहे हों, दोनों हाथों से कृपा बटोर ज़रूर रहे हैं... :-)

तीसरी आंख रखने वाले बाबाजी की यूएसपी या कहें टैग लाइन है...
"यंत्र चले ना तंत्र- मंत्र, ना रहे दुःखो का घेरा, भाग्य उदय हो जाएगा, जब हो निर्मल बाबा आर्शीवाद तेरा। "

बाबाजी पर बहुत से न्यूज़ चैनल स्टोरी कर चुके हैं, अखबार खबरे छाप चुके हैं। बाबा की कृपाएं और बाबा के समागम संदेह के घेरे में हैं।  यहां तक कहां जा चुका है कि बाबा पैसे देकर अपने समागम में लोगों सवाल पुछवाने के लिए बुलवाते हैं। लेकिन यह भी सच है कि यहीं न्यूज़ चैनल्स बाबा के समागम दिखाकर और अखबार बाबा के विज्ञापनों को छापकर बाबा से पैसा भी बना रहे हैं। आप न्यूज़ चैनल्स लगाकर देख लीजिए किसी ना किसी चैनल पर किसी ना किसी समय बाबा जी का समागम दिख ही जाएगा।

अब लोग भोली-भाली जनता को मूर्ख कह सकते हैं जिनके पास परेशानियां बहुत हैं और बाबा के पास वो अपनी परेशानियों का हल ढूंढने पहुंच जाते हैं या फिर न्यूज़ चैनल्स को चालाक कह सकते हैं जो उनकी असलियत पर खबरे दिखाते हैं और उन्हीं से पैसा भी कमाते हैं।

अब यह आपके विवेक पर है कि किसे सही माने और किसे गलत....? मेरे अपने अनुभव की कहें तो एक बात पक्की है कि अगर आप दुखी है तो एक बार बाबा का समागम देख कर जी भर कर हंस ज़रूर सकते हैं।

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