नज़रिया
सीन-1- त्रिपाठी जी का घर
-चलो जल्दी तैयार हो जाओ। डॉक्टर साहब को वेट कराना अच्छा नहीं लगता।
-उनके लिए क्या ले चलें? केले ठीक रहेंगे...?
-अरे क्या बात करती हो। केले जैसे सस्ते फल ले जाना अच्छा लगता है क्या इतने बड़े आदमी के घर। सेब और अंगूर लेलो और एक किलो मिठाई भी ले लेना। दोस्त अब बड़ा आदमी हो गया है, उसके घर ढंग से जाएंगे।
(दो महीने बाद)
सीन-2 डॉक्टर साहब का घर
-इतनी जल्दी क्यों तैयार हो गए? आराम से चलेंगे। और उनके लिए केले ले लेना वो हमेशा कुछ ना कुछ लेकर आते हैं। हम खाली हाथ जाएंगे तो अच्छा नहीं लगेगा।
-लेकिन केले, अच्छे लगेंगे क्या। कोई ढंग के फल या मिठाई ले लेते हैं। फिर आपके इतने पुराने दोस्त से होली मिलने जा रहे हैं।
-ठीक है यार। इतना मत सोचो। ऐसी कोई बहुत बड़ी चीज़ नहीं है वो। उसके घर जा रहे हैं यहीं कम हैं क्या।
-चलो जल्दी तैयार हो जाओ। डॉक्टर साहब को वेट कराना अच्छा नहीं लगता।
-उनके लिए क्या ले चलें? केले ठीक रहेंगे...?
-अरे क्या बात करती हो। केले जैसे सस्ते फल ले जाना अच्छा लगता है क्या इतने बड़े आदमी के घर। सेब और अंगूर लेलो और एक किलो मिठाई भी ले लेना। दोस्त अब बड़ा आदमी हो गया है, उसके घर ढंग से जाएंगे।
(दो महीने बाद)
सीन-2 डॉक्टर साहब का घर
-इतनी जल्दी क्यों तैयार हो गए? आराम से चलेंगे। और उनके लिए केले ले लेना वो हमेशा कुछ ना कुछ लेकर आते हैं। हम खाली हाथ जाएंगे तो अच्छा नहीं लगेगा।
-लेकिन केले, अच्छे लगेंगे क्या। कोई ढंग के फल या मिठाई ले लेते हैं। फिर आपके इतने पुराने दोस्त से होली मिलने जा रहे हैं।
-ठीक है यार। इतना मत सोचो। ऐसी कोई बहुत बड़ी चीज़ नहीं है वो। उसके घर जा रहे हैं यहीं कम हैं क्या।
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