लक्ष्मी को मिल गई मोहब्बत..!

 आलोक को उसकी मासूमियत और हिम्मत के आगे उसका तेजाब से झुलसा चेहरा कहीं नज़र नहीं आता। स्टॉप एसिड अटैक कैम्पेन के ज़रिए साथ आए आलोक और लक्ष्मी कहते हैं.. ज़िंदगी भर साथ रहेंगे...



लक्ष्मी की ज़िंदगी में मोहब्बत बन कर आए हैं आलोक दीक्षित। स्पॉट एसिड कैम्पेन के ज़रिए एसिड अटैक का शिकार बनी लड़कियों की सहायता करने वाले और लोगों में इसके प्रति जागरूकता जगाने वाले आलोक दीक्षित की लक्ष्मी से मुलाकात 2012 में हुई थी। और कुछ ही महीनों में दोनों के बीच प्यार ने जड़े जमा लीं।

हम और आप जैसे लोगों को कुछ अजीब लग सकता है... आज के ज़माने में जब खूबसूरती को किसी भी रिश्ते के लिए बहुत बड़ी चीज़ माना जाता है, ऐसे में 25 साल के आलोक ने लक्ष्मी  के तेजाब से जले चेहरे को नकारते हुए उसकी खूबसीरत से प्यार किया। वहीं लड़कों की फितरत और ज़माने की अच्छाईयों से विश्वास खो चुकी 24 साल की लक्ष्मी को भी आलोक के निडर व्यक्तित्व और स्पष्टता ने फिर से ज़िंदगी से प्यार करना सिखा दिया।   

इन दोनों का प्यार बहुत खूबसूरत है। हमने जब इस रिश्ते के बारे में जानने के लिए इनसे मुलाकात की तो यह दोनों पूरे समय साथ ही बैठे रहे। पूरी बातचीत के दौरान कभी लक्ष्मी आलोक को समझा रही थीं, तो कभी आलोक लक्ष्मी को। दोनों एक दूसरे को थाम रहे थे, सही कर रहे थे, समझा रहे थे, बीच में रोक रहे थे और प्यार से डपट भी रहे थे...। दोनों, खासतौर से लक्ष्मी तो अपने प्यार की शुरुआत के दिनों के बार में बात करती हुई बेहद उत्साहित थी। उनसे हुई बातचीत के कुछ खास अंश उन्हीं की ज़ुबानी आपके लिए-

लक्ष्मी (आलोक का हाथ पकड़ कर)- सब इनसे बहुत डरते थे। यह बहुत कम बोलते थे ना और बाबा टाइप भी थे। जब सुप्रीम कोर्ट में हमारा केस चल रहा था तो सब लोग आपस में गले मिले। लेकिन इनको गले लगाने की हिम्मत किसी में नहीं हो रही थी। तब मैं ज़बरदस्ती इनसे गले मिली।

आलोक- जब 17 मई 2013 को यह पहली बार हमसे मिलने आई थी तो हमें बड़ा अच्छा लगा। इसने औरों की तरह चेहरा नहीं ढका हुआ था। बड़ी हिम्मत से बातें कर रही थी। फिर जब यह कैम्पेन से जुड़ गई तो फिर हम रोज़ मिलने लगे। हमारी मीटिंग में कई बार लोग बातें करते रहते थे और हम एक ही कमरे में बैठे फोन पकड़कर आपस में वॉट्स अप पर चैटिंग करते रहते थे।

लक्ष्मी- एक बार ना क्या हुआ मैं बाहर थी और यह अन्दर काम कर रहे थे। मैं खांस रही थी तो इन्होंने काढ़ा बनाया और मुझे दिया। तब पहली बार इन्होंने मुझसे कहा- लक्ष्मी यह सब जो हमारे बीच हो रहा है ना सही नहीं हो रहा...। यह ऐसे कहे जा रहे थे और मेरे मन में लड्डू फुट रहे थे। (आलोक मुस्कुराते हुए लक्ष्मी से कहते हैं- लक्ष्मी लड्डू फुटते नहीं हैं, फूटते हैं...)

आलोक- (लक्ष्मी के सिर पर हाथ रखते हुए)- हमने भी नहीं सोचा था ऐसा कुछ होगा पर क्या करें अब तो हो गया। हमें इनकी मासूमियत बहुत पसंद है। यह बिल्कुल बच्चों जैसी हैं। और बहुत हिम्मत वाली हैं। किसी से डरती नहीं।

लक्ष्मी (सामने एक कमरे की तरफ इशारा करते हुए)- वो रूम देख रही हैं। वो हमारे प्यार का गवाह है। वहां इन्होंने हमें 7 अगस्त 2013 को प्रपोज़ किया था।

आलोक- हम तो कानपुर से हैं। पहले पहल मम्मी पापा को परेशानी हुई थी कि हम लक्ष्मी को पसंद करते हैं लेकिन उन्हें मालूम था कि हम उनकी सुनने वाले तो हैं नहीं। वहीं करेंगे जो करना है, तो अब उन्होंने भी धीरे-धीरे लक्ष्मी को अपनाना शुरु कर दिया है। बाकी रिश्तेदारों से हमें कोई मतलब नहीं।

लक्ष्मी- भले ही हमारी औपचारिक शादी नहीं हुई लेकिन हम दोनों तो खुद को शादीशुदा ही मानते हैं। हमें साथ रहने के लिए किसी सामाजिक बंधन की ज़रूरत नहीं हैं। मैं इन्हें प्यार करती हूं, यह मुझे प्यार करते हैं, बस यहीं ज़रूरी है।

आलोक- हमें बच्चे-वच्चे करने हुए, परिवार बनाना हुआ, तो उसके लिए शादी की क्या ज़रूरत है। हम तो बल्कि इसके लिए भी कैम्पेन चलाने वाले हैं कि दो प्यार करने वालों को साथ रहने के लिए, परिवार बनाने के लिए शादी की ज़रूरत नहीं है। मर्ज़ी होनी चाहिए बस।

लक्ष्मी (आलोक का हाथ कसकर पकड़ते हुए) यह मुझे छोड़कर कभी जा ही नहीं सकते। मैं जाने ही नहीं दूंगी और यह कभी जाएंगे भी नहीं।

आलोक (लक्ष्मी की तरफ देखते हुए मुस्कुराते हुए) हां बाबू हमें पता है तुम नहीं जाने दोगी। हम भी तुम्हें नहीं जाने देंगे...।


और मैं... बुत बनी, चेहरे पर मुस्कान लिए इन दोनों की देख रही थी...इनकी बातें सुन रही थी और सोच कर रही थी... प्यार क्या ऐसा होता है...? हां प्यार ऐसा ही होता है...। पता नहीं आगे जाकर यह रिश्ता क्या रंग ले लेकिन फिलहाल तो इसमें सिर्फ प्यार का रंग है और वो हर कोई महसूस कर सकता है।  

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