बचपन की कविताएं... किसी कविता से जुड़ी कहानी, किसी कविता से जुड़ी रीत, किसी कविता से जुड़ी प्रीत... खो ना जाएं कहीं, इसलिए संजो कर रख ली हैं... :-)
बचपन की कविताएं ऐसी ही होती हैं, जिनमें कहीं तीर होता है और कहीं तुक्का। कहीं कोई भी शब्द, लय या तान अपने आप आकर जुड़ जाती है। यह कविताएं हमें अपने बड़ो से मिली, उन्हें उनके बड़ों से और उन्हें उनके बड़ो से.. और पता नहीं कहां से हमारे बच्चे भी इन्हें खूब सीखते और गाते हैं। किसी किसी कविता में तो शब्दों का भी कोई मेल नहीं, कोई मतलब नहीं बनता.. बस फिर भी लय है, ताल है और मस्ती है... मतलब से मतलब भी किसे है.. इन्हें बोलने और गाने का आनंद ही सबसे बड़ी चीज़ है...
बचपन की गाड़ी वाली कविता
पान बीड़ी सिगरेट, गाड़ी आई लेट
गाड़ी ने दी सीटी, दो मरे टीटी,
टीटी ने दिया तार, दो मरे थानेदार,
थानेदार ने दी अर्जी, दो मरे दर्जी,
दर्जी ने सिला सूट, दो मरे ऊंट,
ऊंट ने पिया पानी, दो मर गए राजा और रानी..
और खतम हुई कहानी...
(जब बच्चे कहानी सुनने की बहुत जिद किया करते थे, तो अक्सर उन्हें यह कविता दादियां या नानियां सुना दिया करती थीं। )
मोटू पेट
मोटू पेट, सड़क पर लेट,
आ गई गाड़ी,फट गया पेट,
गाड़ी का नंबर एक सौ एक,
गाड़ी पहुंची इंडिया गेट,
इंडिया गेट से आई आवाज़,
चाचा नेहरू जिन्दाबाद
(शायद हमारी पाठ्य पुस्तक का हिस्सा थी यह कविता। बड़ी मजेदार..)
टेसू- झांझी के गीत
-मेरा टेसू यहीं अड़ा, खाने को मांगे दही बड़ा
दही बड़े में मिर्चे बहुत, मेरे टेसू के नखरे बहुत
-टेसू राजा बीच बाजार, खड़े हुए ले रहे अनार
एक अनार में कितने दाने, जितने कम्बल में है खाने।
कम्बल में है कितने खाने, भेड़ भला क्यों लगी बताने।
एक झुंड में भेड़ें कितनी, एक पेड़ पर पत्ते जितनी।
एक पेड़ पर कितने पत्ते, जितने गोपी के घर लत्ते।
गोपी के घर लत्ते कितने, कलकत्ते में कुत्ते जितने...
एक लाख बीस हज़ार, दाने वाला एक अनार..
टेसू राजा कहे पुकार, लाओ मुझको दे दो चार।
-टेसू रे टेसू घंटार बजईयो,
दस नगरी सौ गांव बसईयो
बस गई नगरी बस गए मोर..
बूढ़ी डुकरिया ले गए चोर.
चोरन के घर खेती भई
खाय डुकरिया मोटी भई।
मोटी हैके पीहर गई।
पीहर में मिले भाई- भौजाई।
सबने मिलकर दई बधाई
ताली वाला गेम
पता नहीं इसकी शुरूआत कब और कैसे हुई, लेकिन आज भी कहीं दो बच्चे आपको लय में एक दूसरे के साथ ताली बजाते और इस गेम को खेलते मिल जाएंगे। इसकी कविता बड़ी अलग है...भानुमती के पिटारे जैसी.. जिसमें हिरन है, धागा है, पत्ते हैं, रसमलाई है, नानी है और समोसे भी...
आओ मिलो, शीलो शालो,
कच्चा धागा, रेस लगा लो।
दस पत्ते तोड़े, एक पत्ता कच्चा।
हिरन का बच्चा,
हिरन गया पानी में,
पकड़ा उसकी नानी ने,
नानी को मनाएंगे,
रसमलाई खाएंगे।
रसमलाई अच्छी,
उसमें से निकली मच्छी।
मच्छी में कांटा।
तेरा मेरा चांटा।
चांटा पड़ा ज़ोर से,
सबने खाए समोसे।
समोसे बड़े अच्छे,
नानाजी नमस्ते...।
अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो
अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो
अस्सी नब्बे पूरे सौ
सौ में लगा धागा
चोर निकल के भागा
पट्टी सुखाने वाली कविता
हमारे मम्मी पापा, दादा-दादी के समय में कॉपी किताबों पर नहीं बल्कि लकड़ी की पट्टियों पर पढ़ाई करवाई जाती थी। स्लेट से कुछ अलग इन पट्टियों पर खड़िया से लिखा जाता था और फिर इस लिखे को मिटाने के लिए गीले कपड़े से पोंछते थे। जब पट्टी गीली हो जाती थी तो सारे बच्चे मिलकर उसे धूप में सुखाते थे और यह कविता गाते थे...
राजा आया, महल चिनाया
महल के ऊपर झंडा गड़वाया
झंडा गया टूट, राजा गया रूठ
सूख सूख पट्टी, चंदन गट्टी
झंडा फिर लगाएंगे, राजा को मनाएंगे।
गिनती सिखाने वाली कविता
जैसे आज के बच्चों को गिनती सिखाने के लिए 'वन टू बक्कल माई शू' जैसी अंग्रेजी कविताएं हैं, वैसे ही पहले लोग एक से दस तक की गिनती ऐसी कविताओं से सीखा करते थे..
एक बड़े राजे का बेटा,
दो दिन से भूखा लेटा
तीन महात्मा सुनकर आए
चार दवा की पुड़िया लाए
पांच मिनट में गरम कराए
छै-छै घंटे बाद पिलाए
सात मिनट में नैना खोले
आठ मिनट नानी से बोले,
नौ मिनट में उठकर आए
दस मिनट में ऊधम मचाएं..
और अंत में सबको चिढ़ाने वाली यह कविता... सबने गाई होगी और अभी भी गाते होंगे...
बदतमीज,
खद्दर की कमीज
लट्ठे का पजामा,
बंदर तेरा मामा..
अगर आपको भी बचपन की ऐसी मजेदार कविताएं याद हैं तो शेयर करें :-)
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