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Showing posts from August, 2013

Madras Cafe- A great, gripping, gruesome tale of war & conspiracy

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Madras Cafe- a film that chronicles incidents leading to assassination of former PM..,  a film that unveils how our national security agencies like RAW act to combat national threats..., a film that reveals modus operandi of ferocious rebel outfits & peace keeping forces..., a film that reinforces a simple truth that the most vulnerable & helpless victims of any war are innocent people.., a movie that shows clashes of ambitions amongst rebel leaders very clearly..., a movie that is so fast paced and thrilling that it keeps you glued with your seat till the last frame appears... and an Indian movie that reminds you of a Hollywood war movie...  Well, I saw Madras Cafe yesterday & found it very interesting and  thrilling watch with an honest intention & theme to dig truth as deep as possible. The movie starts with Major Vikram's (played by John Abrahm) confession of his guilt over his failure ...

चौरासी कोसी से चौरासी कोस दूर अयोध्यावासी..बेवजह पिसी जनता, रोजी रोटी की जुगाड़ मुश्किल

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विहिप द्वारा चौरासी कोसी परिक्रमा करने की मांग उठाने और सपा सरकार द्वारा उसे रोकने का प्रबंध करने के बीच अयोध्या के आम आदमी का भविष्य एक बार फिर अधर में है। सड़कों पर पुलिस वालों का पहरा, राजनेताओं की हलचल, लगातार कम होते पर्यटक और इन सबके बीच पिसती स्थानीय जनता...  अयोध्या और फैज़ाबाद के लोगों के लिए रोजी-रोटी कमाना मुहाल हो गया है। रामलला के दर्शन करने या घूमने आने वाली जनता से होने वाली कमाई पर टिकी शहर की अर्थव्यवस्था चरमराने लगी है। दुकाने बंद पड़ी हैं या ग्राहकों से खाली...और यह सारा हंगामा उस चौरासी कोसी परिक्रमा को लेकर हो रहा है जिसका ना तो अभी वक्त है और ना ही स्थानीय जनता से रत्ती भर भी समर्थन।     छावनी बना शहर, स्थानीय लोगों के लिए रोजी-रोटी कमाना हुआ मुश्किल रामेश्वर दास की सरयू नदी के पास एक छोटी सी पूजा सामग्री की दुकान है, जो उसकी रोज़ी रोटी का एकमात्र साधन है। इस दुकान से ही रामेश्वर अपने पांच लोगों वाले परिवार का पेट पाल रहा है... अपनी बीमार मां का इलाज करा रहा है। बेटे को हाईस्कूल में पढ़ा रहा है और बेटी की शादी की तैयारी कर रहा है...

शरीर और मन को एक सूत्र में बांध देता है योग

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योग के साथ मेरे अनुभव योग में जाकर ही अपने शरीर और मन की शक्ति को जाना जा सकता है लम्बे और सुखी जीवन की कुंजी है प्राणायाम मंत्र और योग-निद्रा तनाव दूर करके मन में खुशी भर देते हैं योग क्या है, इसे कैसे करते हैं, इसके क्या फायदे हैं, इसके बारे में सुना ज़रूर था लेकिन अब से एक साल पहले तक कभी भी किसी योग्य गुरू के सानिध्य में योग करने का मौका नहीं मिला। फिर यह भी सुन रखा था कि योग के लिए योग्य गुरु अत्यन्त आवश्यक है। अगर गलत तरीके से योग किया जाए तो नुकसान ज़्यादा होता है फायदा कम... और चूंकि यहां घर के आसपास कोई अच्छा योग संस्थान नहीं था नहीं इसलिए योग करने का मौका ही नहीं मिला। जब भी वज़न घटाने का मन हूआ जिम ही जाना पड़ा। काफी दिनों तक भी जब कोई परिणाम नहीं मिले मैंने जिम बीच में ही छोड़ दिया और योगा कक्षा की तलाश शुरू की। आखिरकार पास ही में बापू नेचर क्योर अस्पताल में योग कक्षाओं का पता चला और मैंने उसमें जाना शुरू कर दिया.... पहली ही क्लास में योग करते हुए इतना ज़्यादा अच्छा लगा कि मैंने उसी समय ठान लिया कि अब योगा ही करना है... जैसे जैसे मैं योगा करती गई, इसे जानती गई, ...

Ek Ruka hua Faisla...

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Ek ruka hua Faisla (A delayed verdict)... Saw this fabulous movie once again today. Whenever I see this movie it makes me introspect my own acts, counteracts & judgements. Almost all the times it happens that our decisions & judgements are based on conceived notions. What we learn from our observations become our experiences, experiences become beliefs & beliefs definitely interfere with our pragmatism & neutrality to judge situations & people........   Ek ruka hua Faisla ..... When I saw this movie.. many of my doubts cleared. One must watch this movie to understand complexities of thoughts, nature & one's responses towards something or someone.. & most importantly to understand the fundamentals of our judgement. The movie gives a fantastic message that no one in this world is pure & in perfect neutral condition to judge a misdeed conducted by some x, y, z person. The movie is a jurors' room drama. Their hesitations...

लोग अछूतों की तरह व्यवहार करते हैं हमसे.. पानी पिलाना तो दूर तमीज़ से बात तक नहीं करते...

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यह लोग मेरे घर आते हैं आपके यहां भी ज़रूर आते होंगे.. कभी कोई चिट्ठी लेकर, कभी रिश्तेदारों द्वारा भेजे गए उपहार लेकर तो कभी आपके द्वारा वेबसाइट या टीवी से मंगाए गए सामान को लेकर। लेकिन कभी आपने इन पर गौर किया है। कितनी ही बार ऐसा हुआ होगा कि जब ये आप के घर की घंटी बजाते हैं तो आप झुंझला पड़ते हैं कि यहीं समय मिला था आने का... आप इन्हें हमेशा गेट के बाहर रखते हैं, कई बार तो आप इन पर अपना गुस्सा भी उतारते हैं... शायद ही हमारे मन में कभी खयाल आता होगा कि यह भी हमारे जैसे पढ़े लिखे इंसान है, इनकी भी इज़्जत है और प्यार और तमीज़ से बोला जाना इन्हें भी अच्छा लगता है.... आरामैक्स कूरियर कंपनी के फील्ड ऑफिसर कुलदीप  हमने जब होम शॉप एट्टीन का सामान पहुंचाने वाले दो डिलीवरी बॉयज़ से बात की तब उनकी ज़िंदगी और हम लोगों द्वारा अनजाने या जान बूझ कर इनके अपमान किए जाने का आभास हुआ। इनकी ज़िंदगी मोटरसाइकिल पर कटती है। होम शॉप एट्टीन का सामान कस्टमर तक पहुंचाने वाली कूरियर कंपनी आरामैक्स के फील्ड ऑफिसर या आम भाषा में कहें तो डिलीवरी बॉयज़ सुबह नौ बजे से कूरियर पहुंचाने का अपना काम शुरू कर द...

आसाराम बापू की एक भक्त की अंधश्रद्धा की कहानी

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आज टीवी पर आसाराम बापू से जुड़ी खबर देखी तो हाल ही में आसाराम बापू की भक्त से हुई एक मुलाकात याद आ गई। सोचा आप सब से साझा करूं। बात एक महीने पहले की है, मेरे एक जानने वाले हैं। आसाराम बापू के भक्त हैं। हर साल नए वर्ष पर उनके द्वारा छपवाए गए आसाराम बापू के उपदेशों के कैलेंडर हमारे यहां  उपहार स्वरूप आते हैं। लगभग दो महीने पहले उनके नए घर में जाने का मौका मिला। आधुनिक गैजेट्स और सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण घर। सुघड़ पत्नी जो घर का हर काम खुद करती हैं और दो बेहद प्यारे बच्चे। घर के ड्रॉइंग रूप में आसाराम बापू की एक बड़ी सी तस्वीर लगी थी। चूंकि हमारे साथ भी दो बच्चे गए थे तो वो वहां पहुंचते ही परिचित के बच्चों के साथ दूसरे कमरे में चले गए। नाश्ते और चाय से फुरसत के बाद बच्चों के कक्ष में जाकर देखा तो, हैरान रह गई... उनके बच्चों के साथ मेरा बेटा और भतीजी दोनों लैपटॉप पर आसाराम बापू के प्रवचन देख रहे थे...  कोई ढाई घंटे हम वहां रहे। उस दौरान परिचित की पत्नी की सुघड़ता और परिचित के घर की साज सज्जा की तारीफ करते रहे। घर था ही इतना साफ और सजा ...

बिहार की नदियां और चचरी का साथ...

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पूर्वोत्तर भारत में जब-जब सावन-भादों में नदियों का बेकाबू बहाव गांव के दो हिस्से कर डालता है तब-तब गांवों को जोड़ता है चचरी.... बिहार के सुदूर ग्रामीण इलाकों में जबसे ग्रामों के बीच में नदियां बह रही हैं तब से गामीणों की नैया पार लगा रहा है चचरी....., 2008 में कोसी मैया के विकराल रूप और प्रलय के बाद जब राज्य के जिले पानी में डूब गए और सड़के बह गई तब भी यहां के निवासियों का सहारा बना चचरी.... लोगों को सड़क से, बच्चों को स्कूल से, पनिहारिनों को कूंए से, गांव को मुखिया से, बहुओं को मायके से और बीमार को दवाखाने से जोड़ने का काम बरसों से कर रहा है 'चचरी'.... बिहार के एक गांव में नदी पार करने के लिए बना बांस का चचरी पुल  इतना वर्णन पढ़ने के बाद आप में से बहुत से लोग सोच रहे होंगे कि आज तो माथा घुमा दिया लेखिका ने... चचरी...चचरी..चचरी की कचर-कचर लगा रखी है पर आखिर यह चचरी है क्या यह भी तो पता चले। तो जानिए चचरी क्या है....  हममें से कुछ एक लोग तो इस ना...

अद्भुद वास्तुकला और रहस्यों से भरा इमामबाड़ा- भूल-भुलैया की सुरंगे दूसरे राज्यों तक फैली हैं और बावली में दफ्न है खज़ाने का राज़

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लखनऊ का बड़ा इमामबाड़ा सत्रहवीं शताब्दी की वास्तुकला और नवाबी ज़माने की इमारतों के सुरक्षा इंतज़ामात संबंधी निर्माण का बेहद शानदार नमूना है.... गोमती नदी के किनारे बने बड़े इमामबाड़े में कई फीट चौड़ी दीवारे हैं, दीवारों में गलियारे हैं, गलियारों में दसियों दरवाज़े हैं, सैकड़ों झरोखे हैं जो जानने वालों से कुछ छिपाते नहीं और देखने वालों को कुछ दिखाते भी नहीं। इमामबाड़ा की मोटी दीवारों के कान भी हैं जो कहीं भी होने वाली हल्की सी आहट दूर तक सुन लेते हैं। कहते हैं कि यहां की भूलभुलैया और शाही बावली से बहुत सी सुरंगे निकलती हैं जो लखनऊ से बाहर अन्य राज्यों तक जाती हैं... और इन्हीं में कहीं दफ़्न है नबाब आसफ उद्दौला का अकूत खज़ाना... जिसका राज़ आजतक कभी किसी को नहीं मिला है। इमामबाड़े का बाहरी भाग या दरवाज़ा आज हम आपको लखनऊ की शान कहलाए जाने वाले इसी बड़े इमामबाड़े की सैर करवा रहे हैं। लखनऊ जाएं तो यहां ज़रूर जाएं और एक गाइड को साथ लेकर जाएं तभी आप इस इमामबाड़े की खूबियों से वाकिफ हो सकते हैं, और यहां की अनगिनत वास्तु विशेषताओं को जान और समझ सकते हैं। इमामबाड़े का निर्माण 1784 मे...

'भद्रा' है रक्षाबंधन की तारीख संबंधी भ्रम का कारण

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भाई-बहनों के स्नेह के प्रतीक रक्षाबंधन त्यौहार को लेकर इस वर्ष काफी भ्रम की स्थिति है। जहां बहुत सी जगह रक्षाबंधन की छुट्टी 20 अगस्त को घोषित की गई है वहीं अन्य जगहों या राज्यों में 21 अगस्त को राखी के त्यौहार मनाने की बात चल रही है। रक्षाबंधन को लेकर यह भ्रम की स्थिति क्यों है इस बारे में जब हमने पास ही के मंदिर के पंडित जी रघुराम शास्त्री जी से बात की तो उन्होंने बताया कि इस त्यौहार को लेकर भ्रम की यह स्थिति भद्रा योग के कारण हैं। दरअसल रक्षाबंधन का त्यौहार श्रावण मास यानि सावन महीने की पूर्णिमा (फुल मून डे) को मनाया जाता है जो कि इस साल 20 अगस्त को होगी। इस दिन सुबह 10.23 पर पूर्णिमा लगेगी  जो 21 अगस्त को सुबह 7.25 बजे तक रहेगी। तो कायदे से रक्षाबंधन 20 तारीख को ही मनाया जाना चाहिए। लेकिन परेशानी यह है कि 20 अगस्त को पूर्णिमा के साथ ही भद्रा योग भी शुरू हो रहा है जो रात्रि 8.48 बजे तक रहेगा। और भद्रा योग में राखी बांधना शुभ नहीं माना जाता। यहीं वजह है कि रक्षाबंधन इस बार 20 तारीख की रात को 8.48 के बाद या फिर 21 तारीख को सुबह साढ़े सात बजे से पहले मनाया जाएगा। क्या...

दुनिया के सबसे तेज़ इंसान का क्रिकेट प्रेम... टीम पाकिस्तान और वकार यूनिस के फैन थे बोल्ट

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विश्व के सबसे तेज़ और खेल इतिहास के सफलतम धावक बन चुके उसैन सेंट लियो बोल्ट की दौड़ की पूरी दुनिया फैन बन चुकी है। लेकिन शायद आप नहीं जानते, पूरी दुनिया के करोड़ो खेल प्रेमियों के दिलों पर राज़ करने वाले उसैन बोल्ट दरअसल क्रिकेट और वकार यूनिस के फैन हैं। 21 अगस्त 1986 को जमैका के ट्रिलॉनी में जन्मे बोल्ट को बचपन से क्रिकेट खेलने का बेहद शौक था। बचपन में बोल्ट अपना सारा खाली समय अपने भाई के साथ सड़क पर क्रिकेट और फुटबॉल खेलने में गुज़ारते थे। बड़े होकर वो धावक नहीं बल्कि तेज़ गेंदबाज़ बनना चाहते थे।  बचपन से ही पाकिस्तानी क्रिकेट टीम बोल्ट की प्रिय टीम रही है। खेल चाहे किन्हीं भी दो देशों के बीच हो रहा हो, बोल्ट हमेशा ही पाकिस्तानी टीम का समर्थन करते थे।  पाकिस्तान क्रिकेट टीम में उनके आदर्श तेज़ गेंदबाज़ वकार यूनिस हुआ करते थे। बोल्ट, वकार यूनिस की तरह ही एक सफल तेज़ गेंदबाज़ बनने का सपना देखा करते थे। एक इंटरव्यू में बोल्ट ने कहा था कि अगर वो एथलीट नहीं होते तो निश्चित तौर पर एक वकार यूनिस की तरह एक तेज़ गेंदबाज़ होते।  बल्लेबाज़ों में बोल्ट, भारत क...

करोड़ो खर्च होने के बावजूद रोजी-रोटी के लिए भटक रहे हैं कोसी बाढ़ पीड़ित लाखों बेघर

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कभी कहीं पढ़ा था कि जब कोई आपदा आती है तो वह पुरानी जड़ों को उखाड़कर नए निर्माण के रास्ते साथ लेकर आती है। प्राकृतिक आपदा, युद्ध या किसी त्रासदी में लाखो लोग जान से हाथ धोते है, घर उजड़ते हैं तो यह भी सच है कि इसमें बहुत से लोगों के महल भी खड़े हो जाते हैं। आप सोच रहे होंगे मैं यह क्यों कह रही हूं... दरअसल आज मैं ऐसी ही एक आपदा और उससे हुई तबाही और निर्माण की कहानी आपको सुनाने जा रही हूं। 2008 में बिहार की कोसी नदी का तटबंध टूटने से आई बाढ़ की तस्वीर कोसी नदी का नाम सुना है। उत्तर भारत में रहने वाले लोग शायद इस नदी से अनजान हों लेकिन पूर्वी भारत के बाशिंदे, खासकर बिहार के लोग इससे अच्छी तरह परिचित होंगे। और आपको अगर याद हो तो आज से ठीक पांच साल पहले, आज ही के दिन (18 अगस्त 2008 को) कोसी नदी पर बना बांध टूट गया था जिससे बिहार के पांच जिलों सुपौल, मधेपुरा, सहरसा, अररिया और पूर्णिया के साढ़े नौ सौ से अधिक गांव पूरी तरह से पानी में डूब गए थे। लाखों लोग बेघर हो गए थे। सैकड़ो लोगों ने अपनी जान गंवाई थी और कई हज़ारों की संख्या में ...

एक विवाह ऐसा भी...

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आज की यह कहानी दुनिया के सबसे खूबसूरत जज़्बे "प्यार" के नाम...। हममें से बहुत से ऐसे लोग हैं जिनका प्यार पर से यकीं उठ चुका है जो यथार्थवादिता की बातें करते हैं, स्वार्थ की बातें करते हैं और इसमें विश्वास रखते हैं कि प्यार नाम की चीज़ इस दुनिया में रही ही नहीं हैं... लेकिन सच तो यह है कि प्यार की भावना इस दुनिया में ज़िंदा है और वो भी पूरी शिद्दत के साथ.... दीपक और शिखा  दीपक और शिखा की यह जोड़ी प्यार की जीती जागती मिसाल है। फैज़ाबाद में रहने वाले 28 साल के दीपक पाठक सिपला में बतौर एरिया मैनेजर काम करते हैं और इन्होंने अपनी पत्नी शिखा से प्रेमविवाह किया है। दीपक एक ब्राह्मण हैं और उनकी पत्नी शिखा 'यादव'... और साथ ही कैंसर की मरीज़। जी हां, आपने ठीक पढ़ा।  शिखा को शादी के पहले से ब्रेस्ट कैंसर है। हर 20 दिन बाद उनकी कीमोथैरेपी होती है जिसमें 35,000 रूपए का खर्चा आता है और 25,000 रूपए महीना कमाने वाले दीपक पाठक अपनी पत्नी के लिए किसी भी तरह पैसों का इंतज़ाम करके यह खर्च वहन करते हैं और शिखा का इलाज नाबाद चल रहा है। यह दोनों आठ साल पहले बैंगलोर के कॉलेज में मिले...

'शहीद' नहीं हैं भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू

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आज के टाइम्स ऑफ इंडिया में एक खबर पढ़ी और पढ़ कर काफी हैरानी हुई कि देश की आज़ादी के लिए हंसते-हंसते फांसी पर झूल जाने वाले भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव की गिनती शहीदों में नहीं होती। जी हां यहीं सच है। गृह मंत्रालय के रिकॉर्ड्स में आजतक इन तीनों में से एक को भी शहीद घोषित नहीं किया गया है। तुम शहीद नहीं हुए...  इसी साल अप्रैल माह में गृह मंत्रालय में डाली गई एक आरटीआई में यह पूछा गया था कि भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को कब शहीद घोषित किया गया और अगर नहीं किया गया तो इसके लिए मंत्रालय क्या कर रहा है जिसके जवाब में मंत्रालय ने कहा कि उनके पास एक भी ऐसा रिकॉर्ड नहीं है जिससे यह पता चलता हो कि इन तीनों को कभी भी शहीद घोषित किया गया था। इस जवाब में यह भी कहा गया था कि मंत्रालय के पास यह जानकारी भी नहीं है कि इस मामले में सरकार कोई कदम उठा रही है या नहीं।  अब भगत सिंह के रिश्तेदार (grandnephew) यादवेन्द्र सिंह इस मामले पर गृह मंत्रालय के अधिकारियों और यहां तक कि राष्ट्रपति से भी मिलने की तैयारी कर रहे हैं। अगर कोई भी इस मामले पर कुछ करने को तैयार नहीं होता तो यादवेन्द्र इन त...

मेघालय में महिलाओं की सत्ताः पुरुषों को ब्याहकर लाती हैं महिलाएं, घर की संपत्ति पर है बेटियों का हक

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इस समाज में घर की बागडोर महिलाओं के हाथ में होती है। शादी के बाद लड़की को नहीं, बल्कि लड़के को पत्नी के घर यानि अपने ससुराल जाना होता है। वंश महिलाओं के नाम से चलता है और लड़कियों के पैदा होने पर खुशी मनाई जाती है.... हम किसी और ग्रह की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि यह मातृसत्तात्मक व्यवस्था यहीं अपने ही देश के मेघालय राज्य में देखने को मिलती है। हमने भी इसके बारे में अपने मेघालय भ्रमण के दौरान ही जाना। इसी वर्ष उत्तर दक्षिण भारत की सैर के दौरान जब हम अपनी गाड़ी से शिलॉंग जा रहे थे तो पूरी दुनिया से अलग ऐसा नज़ारा देखने को मिला जो अब तक कहीं भी और कभी भी नहीं देखा था। सड़क के दोनों ओर बनी हर दुकान में दुकानदार के रुप में महिला विराजमान थी। चाहे वो कपड़ों की दुकान हो, मसालों की, फलों की, पान-बीड़ी-सिग्रेट की या फिर जगह जगह बने ढाबे हों, हर कहीं हमें दुकानदार के रूप में एक औरत के ही दर्शन हुए। अगर पुरुष कहीं थे भी तो वो या तो दुकानों के बाहर एक कोने में उपेक्षित से बैठे हुए मसाला खा रहे थे या फिर कहीं-कहीं ढाबो...